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संस्मरण



महेन्द्र कपूर : देशराग के अनूठे गायक
— सुनील मिश्र 



शास्त्रीय संगीत की परम्परा में राग देश एक महत्वपूर्ण राग है। देशभक्ति के गीतों की परंपरा में महेन्द्र कपूर का नाम भी उसी प्रकार महत्वपूर्ण है। देशप्रेम का हर गीत देश राग में नहीं होता, मगर जब भी हम महेन्द्र कपूर का जिक्र करते हैं तो हमारे जेहन में उनकी छवि बाकायदा देशराग के एक अहम् गायक के रूप में कौंधती है। यह वाकई सच है कि देशभक्ति और परम्परागत मूल्यों में जितने लोकप्रिय और अनूठे गाने महेन्द्र कपूर ने गाए हैं उतनी संख्या में उतने श्रेष्ठ गाने शायद किसी दूसरे गायक ने न गाए होंगे।

सुविख्यात पाश्र्व गायक महेन्द्र कपूर को मध्य प्रदेश शासन द्वारा सुगम संगीत के क्षेत्र में गायन व संगीत निर्देशन के लिए स्थापित लता मंगेशकर सम्मान से विभूषित किया गया है। महेन्द्र कपूर के नाम का स्मरण करते ही हमारे जेहन में एक ऐसे गायक की छवि कांैध जाती है जिसके गले की एक बड़ी सधी हुई रेंज हैं। एक ऐसा गायक जो मद्धिम स्वरों में भी उतनी ही खूबसूरती से गाता है जितना कि वो अपने ऊंचे सुरों के लिए जाना जाता है। एक ऐसा गायक जिसका नाम लेते ही हमारे मन में एक साथ तमाम वो गीत एक के बाद एक आने–जाने लगते हैं जिनका देश से वास्ता होता है, जिनका मान–मर्यादा से वास्ता होता है, जिनका संस्कारों से वास्ता होता है। महेन्द्र कपूर ने सिर्फ गायक बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी छवि बेहद सहज और शालीन इंसान की भी है। वे कहीं से भी किसी भी किस्म का अतिरेक करते नजर नहीं आते, बल्कि अपनी सीमाओं को लेकर वे बेहद अनुशासन के साथ अपने सुरों को साधते हैं।
सचमुच वे दिलों को जीत लेते हैं, जब वे गर्व से कहते हैं, जीते हैं उन्होंने देश तो क्या हमने तो दिलों को जीता है।

पंजाब से आई अपनी पीढ़ियों के होनहार और गुणी सुपुत्र महेन्द्र कपूर का जन्म मुम्बई में ९ जून, १९३४ को हुआ। व्यावसायिक घराने में जन्म लेने के बावजूद उनका संगीत के प्रति रूझान बचपन से ही रहा है। इसके लिए उनको अपने परिवार से प्रोत्साहन भी मिला। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात फिल्मी दुनिया में एक गायक के रूप में अपनी किस्मत आजमाने का प्रयत्न किया। वे बारह वर्ष की उम्र में ही स्वर्गीय मोहम्मद रफी के मुरीद हो गए थे। वे उनके घर भी जाया करते थे। रफी साहब ने उनको प्रोत्साहित भी किया। श्री महेन्द्र कपूर ने पण्डित तुलसीराम शर्मा, उस्ताज नियाद अहमद, मनोहर पोतदार, फैयाज अहमद, संगीत निर्देशक हुस्नलाल से शास्त्रीय एवं सुगम संगीत की बारिकियों को लगनपूर्वक सीखा। युवा होते ही उन्होंने प्रतिष्ठित आर्केस्ट्रा समूहों में गाना शुरू कर दिया था। उनको फिल्मों में गाने का अवसर मिला, सम्मुख बाबू उपाध्याय के जरिए जिन्होंने
उनसे पुरानी फिल्म ललकार में एक गीत गवाया।

यह भी योग ही कहा जाएगा कि उन्होंने तभी दीवाली की रात नाम की एक ऐसी फिल्म में पाश्र्व गायन किया जिसके हीरो तलत महमूद थे। उनकी लगन को प्रोत्साहित करने वाले मशहूर संगीतकार खैयाम भी थे जिन्होंने अनिल विश्वास के पास भेजा। अनिल दा ने उनको पंजाबी फिल्म हीरो में गाने का अवसर प्रदान किया। इस तरह उनको राह मिलना शुरू हो गई और उनके स्वभाव और विनम्रता के चलते अच्छे–अच्छे लोगों से मिलने के अवसर भी आए। इसी बीच उनको एक अवसर सी.  रामचंद्र ने दिया नवरंग में, जिसमें उन्होंने, आधा है चन्द्रमा रात आधी, गीत गाया। नौशाद ने उनसे जब अपनी फिल्म सोहनी महिवाल के लिए, चांद छुपा और तारे डूबे, गवाया तो उनको खूब सुर्खियां मिलीं। यह एक ऐसा अवसर था जब स्वयं महेन्द्र कपूर अपने में आत्मविश्वास महसूस कर रहे थे क्योंकि उनके सामने प्रतिष्ठित और प्रतिबद्ध संगीतकारों की ऐसी पीढ़ियां उपस्थित थीं जिनके लिए सुरीला सृजन जीवन मरण का प्रश्न रखता था। जब महेन्द्र कपूर को पहले पहल बी. आर. चोपड़ा मिले तब शायद उनको भी यह अहसास नहीं होगा कि एक दूसरे को दो ऐसे
शख्स मिलने जा रहे हैं जो आने वाले समय में शायद सांस भी एक साथ ही लेंगे। कमोबेश ऐसा ही बाद में हुआ भी।
 
बी. आर. चोपड़ा ने उनको सबसे पहले अपनी फिल्म धूल का फूल में गाने का अवसर दिया और उसके बाद तो वे बी. आर. कैम्प के एक अनिवार्य गायक ही बन गए। हमराज, वक्त, धुंध, आदमी और इन्सान, निकाह, इन्साफ का तराजू, पति, पत्नी और वो जैसी अनेक फिल्में और महाभारत जैसा विराट धारावाहिक तक इस बात के प्रमाण हैं कि महेन्द्र कपूर किस तरह बी. आर. चोपड़ा की सृजनशीलता के लगभग अनिवार्य से पर्याय बन गए। जिस तरह बी. आर. चोपड़ा की हर फिल्म में वे पाश्र्व गायन किया करते थे उसी तरह उनका जुड़ना मनोज कुमार से हुआ। मनोज कुमार एक ऐसे अभिनेता के रूप में तीन दशकों तक छाए रहे हैं जो एक प्रकार से हिन्दुस्तान के संस्कारी, सुशील और शालीन युवा का प्रतिनिधित्व अपनी फिल्मों में नायक के रूप में करते रहे। मनोज कुमार की बनाई हुई फिल्में शहीद, पूरब और पश्चिम, उपकार, रोटी कपड़ा और मकान और क्रान्ति वे फिल्में हैं जिनमें महेन्द्र कपूर के गाए हुए मेरा रंग दे बसन्ती चोला, है प्रीत जहाँ की रीत सदा मैं गीत वहाँ के गीत गाता हूँ, मेरे देश की धरती सोना उगले हीरे मोती, और नहीं, बस और नहीं
गम के प्याले और नहीं और अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे जैसे यादगार गीत गाए हैं।

यों तो महेन्द्र कपूर के गाए हुए गीतों और फिल्मों के नामों की एक बड़ी सूची हैं मगर फिर भी बंधन, जिस देश में गंगा बहती है, हरियाली और रास्ता, किस्मत, काजल, अनमोल मोती, सम्बन्ध, जब याद किसी की आती है, आए दिन बहार के, गोपी, बहारें फिर भी आएंगी जैसी लोकप्रिय गीत और संगीत से सजी उनकी फिल्में उनकी अनूठी गायन क्षमता का अनुपम उदाहरण है। महेन्द्र कपूर की गायन प्रतिभा बहुरंगी है। उन्होंने अपनी आवाज के भराव और स्वरों के विराटपन का बड़ा खूबसूरत इस्तेमाल अपने गायन में किया है। वे देशभक्ति प्रधान फिल्मों के गीतों के पसन्दीदा गायक रहे हैं। पौराणिक फिल्मों में भी वे, सन्तोषी मां ह्यजय सन्तोषी मांहृ और जब जब धरती पे धरम घटा तब तब प्रभु ने अवतार लिया ह्यहरिदर्शनहृ जैसे कितने ही गीत गा चुके हैं। फिल्म पूरब और पश्चिम में गाई उनकी आरती, ओम जय जगदीश हरे तो जैसे अपने रिद्म और अभिव्यक्ति के चलते एक तरह से सदाबहार महत्व रखने वाली है। वे, रघुपति राघव राजा
राम, पतित पावन सीता राम भी जिस अगाध श्रद्धा से गाते हैं वो अद्भुत हैं।

उनके गाए हुए कुछ ऐसे गीत भी स्मरण हो आते हैं जिसमें समय और समाज को परखने का बड़ा प्रयोगवादी और यथार्थपरक अनुभव गीतकारों ने बड़ी शिद्दत के साथ अभिव्यक्त किया था। उन गीतकारों के लिखे को जिस चुम्बकीय प्रभाव से महेन्द्र कपूर की आवाज सार्थक करती हैं वो बेहद प्रभावशाली और गहरे बेधने वाली है। उदाहरण के लिए रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा, है प्रीत जहाँ की रीत सदा मैं गीत वहाँ के गाता हूँ, अंधेरे में जो बैठे हैं नजर उन पर भी कुछ डालो अरे ओ रोशनी वालों, बदल जाए अगर माली चमन होता नहीं खाली बहारें फिर भी आती हैं, बहारें फिर भी आएंगी, संसार की हर शै का इतना ही फसाना है इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है, न मुंह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो गमों का दौर भी आए तो मुस्करा के जियो, जैसे अनेक गीतों का स्मरण किया जा सकता है। ऐसा नहीं कि महेन्द्र कपूर केवल पौराणिक, देशभक्ति प्रधान या प्रगतीवादी गीतों के ही गायक के रूप में
प्रतिष्ठित रहे हैं यह कोई उनकी सीमा नहीं है।

रूमानी गीतों में भी वे अपनी उन्हीं सम्भावनाओं और दक्षताओं से समां बांधने में सफल रहे हैं। तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ, किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है, नीले गगन के तले धरती का प्यार पले, ऐ जाने चमन तेरा गोरा बदन, आंखों में कयामत के बादल, ओठों में गजब की लाली है बंदा परवर कहिए किसकी तकदीर संवरने वाली है, आ जाओ आ भी जाओ, चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों, तू हुस्न हैं मैं इश्क हूँ तू मुझमें हैं मैं तुझमें हूँ, तुम अगर साथ देने का वादा करो मैं यूं ही मस्त नगमें लुटाता रहूँ जैसे कितने ही गीत होंगे, जिनमें महेन्द्र कपूर की आवाज अभिव्यक्ति का एक अलग ही रूमान रचती है। जिन गीतों का यहाँ उल्लेख है, योग से वे गीत मद्धिम प्रभाव के भी हैं और उनमें से कुछ द्रुत प्रभाव के भी हैं। मगर उनमें हमें एक प्रेमी का फलसफा, एक रोमांटिक वातावरण बड़े
शालीन अनुशासन के साथ नज़र आता है। 

देखा जाए तो महेन्द्र कपूर स्वयं अपनी पहचान हैं। उनकी सृजन यात्रा अत्यन्त संघर्ष और परिश्रम के साथ–साथ लगन और काबिलियत से मिले सार्थक यश की कहानी कहती है। महेन्द्र कपूर का व्यक्तित्व इन सबके बावजूद हमें सदैव अनथक और ताजगी से भरापूर दिखाई पड़ता है। उनकी मुस्कराहट, उनका सदैव सचेत और सहज दिखाई पड़ना ही निरन्तर उनकी गरिमा को समृद्ध करता चला आ रहा है। उन्होंने दस से भी अधिक भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं। सुनील दत्त और स्वर्गीय नरगिस दत्त के अजन्ता आर्टस ग्रुप के साथ उन्होंने देश भर में घूम–घूमकर फौजी जवानों के लिए कार्यक्रम किए हैं। लोग शायद यह न जानते होंगे कि शुरूआती समय में उनका नाटकों के प्रति गहरा रूझान था और विजय आनंद के ग्रुप में वे नाटकों से भी जुड़े रहे। उन्हें उनके गाए गीतों के लिए नेशनल अवार्ड, फिल्म फेयर अवार्ड, गुजरात राज्य के तीन अवार्ड और पद्मश्री तक से नवाजा गया है। इतने यश और सदीर्घ अनुभवों के बावजूद महेन्द्र कपूर जितने सहज और आत्मीय दिखाई पड़ते हैं, दरअसल वही उनका व्यक्तित्व है जो सम्मोहक भी है और प्रेरणादायी भी।

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