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व्यक्तित्व

श्रद्धांजलि

हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल
मनोहर पुरी


हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित डॉ. बालेश्वर अग्रवाल का लंबी बीमारी के बाद आज २३ मई २०१३ को नई दिल्ली में निधन हो गया। प्रारम्भ से ही उन्होंने अपना सर्वस्व समाज को अर्पित कर दिया था। वासुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत में अडिग विश्वास रखने वाले डॉ. अग्रवाल ने इसे अपने जीवन के पल पल में उतारा था।

पत्रकारों की नई नई पौध उगाने वाले बालेश्वर अग्रवाल का जन्म १८ जुलाई १९२१ को उड़ीसा के बालासोर नगर में हुआ। हाई स्कूल तक बिहार के हजारी बाग में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने इसी शहर में रह कर सेंट कोलम्बस से इन्टर मीडियेट पास किया और ऊँची शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी चले आए। बनारस में उन्होंने हिन्दू विश्व विद्यालय के इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया। १९४९ में इंजीनियरिंग की परीक्षा में उर्त्तीण हो कर किसी भी सामान्य युवक की भाँति रोजी रोटी से जुड़ने का प्रयास किया परन्तु विधाता ने उनके लिए कुछ और ही निश्चित किया हुआ था। ऐसी प्रतिभाएँ घर गृहस्थी में नहीं बँधा करतीं क्योंकि समाज और देश ही उनके लिए सबसे अधिक महत्व रखता है।

बालेश्वर जी ने भी समाज की सेवा में स्वयं को लगा दिया था। इस रास्ते पर जीवन के अन्तिम क्षण तक चलते हुए वह निरन्तर नई नई मंजिलें तय करते हुए आगे बढ़ते रहे थे। हिंदुस्तान समाचार से अलग होने के पश्चात उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद का काम सँभाला और साथ ही युगवार्ता प्रसंग सेवा के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े रहे। इन दोनों संस्थाओं के साथ भी मेरा सम्बन्ध प्रारम्भ से ही रहा है और बालेश्वर जी के साथ इस परिषद में मीडिया प्रभारी के रूप में कार्य करने के अवसर को मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ।

विदेशों से आने वाले प्रवासी भारतीयों की सुविधा के लिए नई दिल्ली में प्रवासी भवन का निर्माण करके उन्होंने इस क्षेत्र में एक उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार द्वारा ९ जनवरी को मनाये जाने वाले प्रवासी दिवस की सर्वप्रथम कल्पना बालेश्वर जी ने ही की थी। उन्होंने स्वयं भी अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग न्यास की स्थापना करके प्रतिवर्ष एक ऐसे भारतवंशी को सम्मानित करने का बीड़ा उठाया जो विदेषों में रहता हुआ भी भारतीय मूल के लोगों और भारत के मध्य एक सेतु का निर्माण करते हुए उनके कल्याणकारी कार्यों में जुटा रहे। न्यास की ओर से अब तक ७ भारतवंशी सम्मानित किये जा चुके है। इस न्यास का एक न्यासी होने के नाते भी मुझे बालेश्वर जी के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार जानने के अवसर निरन्तर मिलते रहते थे।

जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनका योगदान अतुलनीय रहा है। पत्रकारिता और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों के सन्दर्भ में किए गए उनके प्रयास सर्वविदित हैं। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उस समय एक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ जब १९५४ में नागरी लिपि में दूरमुद्रक ( टेलीप्रिन्टर) द्वारा पहली बार पटना और दिल्ली को इसके द्वारा सम्बद्ध किया गया। इस सेवा का शुभारम्भ स्व.राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ने किया था। यह पहला अवसर था जब हिन्दी के समाचार दूरमुद्रक के माध्यम से हिन्दी में भेजे जाने लगे। इससे पूर्व देश में पी.टी.आई. और यू.एन.आई के माध्यम से देश भर में अंग्रेजी भाषा में समाचार प्रेषित किए जाते थे और हिन्दी के समाचार पत्र उन समाचारों का अनुवाद करके छापने के लिए बाध्य थे।

श्री बालेश्वर अग्रवाल, जो उस समय हिंदुस्तान समाचार की पटना शाखा के प्रभारी थे इस स्थिति को असहनीय मान रहे थे। बालेश्वर जी हिन्दुस्तान समाचार के साथ उसके स्थापना काल से ही जुड़ गए थे। बाद में तो हिन्दुस्तान समाचार और बालेश्वर अग्रवाल के मध्य अद्वैत की ही स्थिति बन गई थी। बालेश्वर जी के बिना हिन्दुस्तान समाचार की कल्पना तक करना संभव नहीं रहा था। इसी प्रकार हिंदुस्तान समाचार के बिना बालेश्वर जी सम्पूर्ण दिखाई नहीं देते थे। दोनों को एक दूसरे का पूरक स्वीकार कर लिया गया था। १९४९ से लेकर १९८२ तक बालेश्वर जी के लिए हिन्दुस्तान समाचार ही सब कुछ था। इसमें काम करने वाले कर्मचारी ही उनका भरा पूरा परिवार था और इसकी उन्नति ही उनके जीवन का एक मात्र ध्येय।

देवनागरी के जिस दूरमुद्रक ने समाचार जगत में क्रान्ति की उसको वास्तविकता और व्यवहारिता के धरातल पर लाने का सारा श्रेय बालेश्वर अग्रवाल जी के नाम लिखा हुआ है। पटना को दिल्ली से जोड़ने के बाद इस क्रान्ति ने रुकने का नाम नहीं लिया। आज भले ही कम्प्यूटर और मोबाइल फोन के युग में हमें टेलीप्रिन्टर की बात करना कुछ अटपटा लगे परन्तु बालेश्वर जी ने वह युग देखा था जब समाचार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना एक बहुत बड़ी समस्या होती थी और वह भी देवनागरी लिपि में। बालेश्वर जी के इस एक सफल प्रयास से हिन्दी समाचार पत्रों के सम्पादकीय विभाग में काम करने वालों को अनुवादक की बजाय सम्पादक बना दिया। अब तक जो लोग केवल अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करके समाचार बनाते थे अब अपना समय समाचारों के सम्पादन में लगाने लगे। इस प्रकार बालेश्वर जी ने हिन्दी के सम्पादकों की कई पीढ़ियाँ तैयार करने में अपना योगदान दिया ।

हिन्दुस्तान समाचार ने जिन पत्रकारों को पत्रकारिता की प्रारम्भिक शिक्षा दी आज वे पत्रकार पूरी तरह से देश के पत्रकार जगत पर छाए हुए हैं। इस प्रकार यदि उन्हें हिन्दी पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी का भीष्म पितामह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज देश का शायद ही कोई ऐसा संस्थान हो जो हिन्दी में समाचार पत्र प्रकाशित करता हो और उसमें हिन्दुस्तान समाचार से आया हुआ कोई पत्रकार काम न कर रहा हो।

बालेश्वर जी ने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार एजेन्सी की भूमिका को भी नये आयाम दिए। हिन्दुस्तान समाचार से पूर्व देश के सभी समाचार पत्र अंग्रेजी की समाचार एजेन्सियों पर निर्भर रहने के लिए विवश थे। ये एजेन्सियाँ भले ही भारत में काम करती थीं परन्तु उन्हें भी अधिकांश समाचारों के लिए विदशी समाचार एजेन्सियों पर निर्भर रहना पड़ता था।

उनकी अनुशासनात्मक और नियमबद्ध कार्य करने की प्रणाली अनुकरणीय थी। व्यवहार से कठोर और कभी कभी रूखेपन की सीमा तक को छू लेने वाले बालेश्वर जी का मन अति निर्मल था। बालेश्वर जी हर कार्य ठीक समय पर करने के लिए प्रसिद्ध थे। गत ३०-३२ वर्षों से मैं उनके साथ रहा हूँ परन्तु मुझे ऐसा कोई अवसर याद नहीं आता जब बालेश्वर जी निर्धारित समय पर कोई कार्यक्रम प्रारम्भ न करवा पायें हों अथवा नियत समय पर वहाँ न पहुँचे हों जहाँ पहुँचने का वायदा उन्होंने किया हो। निर्धारित समय में होने वाला तनिक सा विलम्ब भी उन्हें विचलित कर देता था।

आज के इस आपाधापी के युग में जब हर व्यक्ति अपने सम्बन्धों को भुनाने में लगा है बालेश्वर जी निस्पृह रह कर अपना कार्य करते थें। देश के शीर्षस्थ नेताओं से उनके अति आत्मीय और घनिष्ठ सम्बंध थे परन्तु इसका कोई लाभ उन्होंने अपने लिए उठाने का प्रयास किया हो मुझे स्मरण नहीं। ऐसी तपस्वी और कर्मठ विभूति के साथ मेरा नित प्रति दिन का सम्पर्क रहना मुझे अपने कुछ पूर्व जन्मों के पुण्य का प्रताप ही लगता है। उनके न रहने से जीवन में आये इस अभाव की पूर्ति बिल्कुल भी संभव नहीं है। पत्रकारिकता जगत की इस अपूरणीय क्षति को बहुत सालों तक भरा नहीं जा सकेगा।

२७ मई २०१३

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