मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


सामयिकी



रामचररित मानस
में वर्णित समाजवाद एवं साम्यवाद
डॉ. संजीव कुमार
 


आज सारी दुनियाँ में वादों का विवाद चल रहा है। इसी वादों के अंतर्गत समाजवाद या साम्यवाद आता हैं वादों का विवाद केवल एक ही विषय पर निर्भर करता है और यह कि जिस देश में जनतंत्र हो, उस देश में प्रजा की आर्थिक स्थिति कैसी हो? समाजवाद आर्थिक स्थिति की एक सीमा चाहती हे। उस सीमा के आगे की सम्पत्ति किसी की न रहे। साम्यवाद सारी जनता को बराबर रखना चाहती है। यह साम्यवादी अवस्था अनेक प्रकार की हो सकती हैं जैसे किसी देश की जनता खूब धनी हो, कोई गरीब ना रहे। लेकिन धन की सीमा बराबर रहे तो वह भी साम्यवाद कहा जाएगा। या फिर किसी देश की सारी जनता दरिद्र हो जाय, किसी के पास कुछ न रहे तो वह भी साम्यवाद कहा जाएगा।

जहाँ तक रामचरित मानस की बात है इसमें अन्य बातों के अलावा एक यह भी विषय है कि अवध के राजा राम और जनकपुर के राजा जनक की बेटी सीता का सम्बन्ध हुआ था। इस प्रकार दो राजाओं का मिलन इस मानस में पाया जाता है। मैं दोनों के राज्य में समाजवाद का चित्रण पाता हूँ जो कि आज के शासकों के मनोनुकूल तथा जनता के लिए लाभदायक है। पहले राजा जनक के राज्य के साम्यवाद की चर्चा करता हूँ।

भगवान राम की बरात साज कर जब राजा दशरथ जनकपुर पहुँचे तो बरातियों में धन के मालिक कुबेर, देवताओं के राजा इन्द्र भी उपस्थित थे। यहाँ एक बात मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ पूरे श्री रामचरित मानस में जहाँ भी नीच शब्द का प्रयोग कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास ने किया है सर्वत्र उसका एक ही अर्थ होता है। यानी नीच का अर्थ डोम जाति से है। जब बारात जनकपुर नगर में प्रवेश करने लगी तो नगर के बाहर डोम जाति का घर लोगों ने देखा, उसके पश्चात ग्राम वासियों का घर देखा। रास्ते में महाराज जनक के राज्य के अनेक नगरों को भी देखा था। यह प्रसंग बालकांड के २९९ वें दोहे में मिलता है, जो निम्नलिखित है। इसमें राजा जनक के राज्य भर का वर्णन है।
जेहि तेरहुति तेहि समय निहारी।
तेहि लघु लगहि भुवन दस चारी।।
जो सम्पदा नीच गृह सोहा।
सो विलोकि सुरनायक मोहा।।
अर्थात राजा जनक के राज्य में जो भी ग्राम या नगर थे, उन नगरों का प्रत्येक मकान ठीक उसी प्रकार का बना हुआ एवं शोभायमान था जैसा राजा जनक का मकान। सबसे गरीब डोम की सम्पत्ति देखकर राजा इन्द्र भी मोहित हो जाते हैं। अर्थात राजा इन्द्र अपने को धन में उस डोम के सामने बिल्कुल तुच्छ पा रहे हैं। इससे बढ़कर साम्यवाद का चित्र आज किसी भी साम्यवादी देशों में नहीं मिल सकता। इससे सिद्ध होता है कि राजा जनक के राज्य में पूर्ण साम्यवादी व्यवस्था थी। यह साम्यवाद सुखी साम्यवाद था तथा धर्म में लोगों को पूर्ण आस्था थी।

अब राम राज्य के समाजवाद का चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ राम राज्य में समाजवाद का दो प्रसंग मिलता है। पहला जब भरत जी भगवान राम को लौटाने के विचार से चित्रकूट गये। भगवान राम तो नहीं लौटे लेकिन अपनी खड़ाऊँ देकर भरत को विदा किया, उस समय राम ने भरत को राज्य चलाने के लिए कुछ अपना सुझाव दिया था। जो अयोध्याकाण्ड के ३०४ वें दोहा में पाया जाता है।
मुखिया मुखु से चाहिए, खान पान कहु एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।
यहाँ मुखिया शब्द से राजा को संबोध होता है। भगवान राम ने भरत को उपदेश दिया कि राजा को मुख की भाँति होना चाहिए। जैसे मुख में ही सब भोजन पहुँचता है, उसी प्रकार संपूर्ण राज्य की आय-आमदनी राज कोष में ही आनी चाहिए। परन्तु मुख जैसे खाई हुई वस्तु का एक कण भी अपने लिए नहीं रखता है। बल्कि कुचल कुचल कर ठीक करके ऐसे स्थान में पहुँचा देता है जहाँ से भाग के अनुसार सब अंगों का पालन पोषण होता रहता है। उसी तरह राजा को भी उचित है कि वह प्रजा का धन अपने स्वार्थ में न खर्च कर उसे प्रजा के ही कल्याण में, उनके पालन पोषण में लगा दिया करे। इस प्रकार राम राज्य में समाजवाद का सर्वोत्तम चित्र मिलता है। ऐसी व्यवस्था का ही नाम समाजवाद है कि समाज की सारी कमाई को समाज में लगा दिया जाय इससे बढ़कर दुनिया में कहीं भी सच्चा समाजवाद नहीं मिल सकता जो हमारे रामचरित मानस में पाया जाता है।

दूसरा प्रसंग भगवान राम के वन से लौटकर राज सिंहासन पर बैठने के बाद का है। श्रीरामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के ४९वें दोहे की निम्नलिखित छन्द की प्रथम पंक्ति से ही समाजवाद का पूर्ण समर्थन तथा पहले प्रसंग की पूरी पुष्टि होती है। यथा-
बजार रुचिर न बनई बरनत वस्तु बिनु गथ पाइए।
जहँ भूप रमा निवास तहँ की संपदा किमि गाइए।।
बैठे बजाए सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते।
सब सुखी सब सचरित्र सुन्दर नारि नर सिसु जरठ ने।
यहाँ गथ शब्द का अर्थ कीमत होता है।
अर्थ- सुन्दर बाजार है, जो वर्णन करते नहीं बनता वहाँ वस्तुएँ बिना मूल्य ही मिलती हैं इत्यादि।

जैसा कि पहले प्रसंग में वर्णित है कि राज्य की सारी आमदनी सरकार को मिले और सरकार निःशुल्क यथा योग्य लोगों को उनके लायक वितरण करें। ऐसा भगवान श्रीराम ने श्रीभरत जी को सलाह दी है और जब खुद राज करने लगे तो वैसा ही किया है। उनके राज्य में ऐसे-ऐसे अनेक विभाग खुले थे जहाँ से हर प्रकार की प्रयोज्यनीय वस्तुएँ जितना चाहिए सबको मिला करतीं थीं। ये सारी बातें रामचरित मानस में लिखी हैं।

आज दुनिया के लोग समाजवाद का निर्माता या जनक मार्क्स और लेनिन को मानते हैं। यह सरासर गलत है। यह समाजवाद हमारे यहाँ राम राज्य में पाया जाता था। यह तुलसी कृत मानस आज से लगभग ४५० वर्ष पहले लिखी गयी है। जबकि मार्क्स और लेनिन लगभग २५० वर्ष के पहले नहीं थे

महात्मा गाँधी आजादी के बाद राम राज्य लाने की कल्पना किया करते थे। यह समाजवाद उसी की देन है। गाँधी जी रामचरित मानस और गीता ग्रंथ को अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने राम राज का अर्थ भले ही नहीं लिखा परन्तु उनका राम राज समाजवाद जैसा ही था। अतः ऐसी समाजवादी व्यवस्था, जिसमें धर्म की रक्षा, सुखी जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता निहित हो, रामराज्य की ही देन है।

२२ अक्तूबर २०१२

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।