मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


साहित्यिक निबंध


विश्व में हिंदी फिर पहले स्थान पर
भाषा शोध अध्ययन २००७ का निष्कर्ष

- डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल


विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के संबंध में मैंने १९८१ से शोधकार्य करना शुरू किया था। इस शोध की पहली रिपोर्ट भारत सरकार की राजभाषा पत्रिका में १९९७ में प्रकाशित हुई थी। इस शोध अध्ययन को २००५ में अद्यतन किया गया। इस रिपोर्ट का सार विश्व के १८५ देशों में दैनिक समाचार पत्रों के इंटरनेट संस्करणों में प्रकाशित हुआ। इस रिपोर्ट को पुनः २००७ में अद्यतन किया गया है। अद्यतन शोध का संक्षिप्त सार प्रस्तुत है-

यद्यपि अब तक सभी यह मानते आए हैं कि मंदारिन जानने वाले विश्व में सबसे अधिक हैं। परंतु चीन में तो ७० अन्य उप भाषाएँ व बोलियाँ हैं जिनमें १०-१५ तो बड़ी संख्या में चीन में व विश्व के अनेक भागों में बोली जाती हैं। यहाँ तक कि मंदारिन के नाम पर तो उत्तरी चीन एवं दक्षिणी चीन के मत भेद साफ़ नज़र आते हैं। तिब्बती, कैंटोनीज, फुकीन, हक्का जैसी उप भाषाओं का वर्चस्व चीन में व इस के बाहर देखा जा सकता है। चीनी भाषा की लिपि होने पर विश्व के भाषाविदों ने समस्त चीनी बोलियों, उपबोलियों व चीनी भाषा परिवार को जोड़ कर इसकी संख्या १९९० में लगभग ७३० आँकी जो २००५ में बढ़कर लगभग ९०० मिलियन हुई व आज २००७ तक ९०० मिलियन है। २००५ के बाद इसमें मामूली वृद्धि हुई है।

हिंदी के विषय में आरंभ से ही विदेशियों की धारणा गलत रही है। संसार भर के भाषाविद् हिंदी के नाम पर सिर्फ़ 'खड़ी बोली' को ही हिंदी मानते आए हैं जबकि यह सच नहीं है। हिंदी की बोलियाँ भी इसमें शामिल की जानी चाहिए थी। साथ ही विदेशियों ने उर्दू को अलग भाषा के रूप में गिना है यह तो बिल्कुल ही गलत है। उर्दू अलग से भाषा नहीं है बल्कि हिंदी का ही एक रूप है। संसार का कोई भी भाषा विज्ञानी उर्दू को अलग कैसे मान सकता है? क्यों कि भाषा तो भाषिक संरचना से वर्गीकृत होती है। उर्दू की अलग से व्याकरण नहीं है। इसमें अधिकांश शब्द व व्याकरण व्यवस्था हिंदी की ही है। अतः हिंदी से इसे अलग भाषा मानना कतई युक्तिसंगत नहीं हैं। हिंदी की बोलियाँ और उर्दू बोलने वालों की संख्या मिला देने से विश्व में हिंदी जानने वाले १०२३ मिलियन से अधिक हैं जबकि मंदारिन जानने वाले केवल ९०० मिलियन से थोड़े से अधिक हैं। अर्थात मंदारिन जानने वालों से हिंदी जानने वाले १२३ मिलियन अधिक हैं। अतः यह सिद्ध हो गया है कि हिंदी जानने वाले विश्व में सर्वाधिक हैं।

हाल ही एक रिपोर्ट में यह दर्शाया गया था कि विश्व में चीनी भाषी एक अरब हैं। अर्थात १००० मिलियन हैं। यह संख्या सभी प्रकार की चीनी भाषा परिवार की भाषाओं को जोड़ कर निकाली गई हैं। यदि हिंदी में आर्य भाषा परिवार की भाषाओं को मिला दें तथा अन्य भाषाओं में प्रयुक्त हिंदी शब्दों की समानता को देखकर संख्या निकालें तो भी यह संख्या विश्व में २ अरब अर्थात (दो हज़ार मिलियन) होंगी। इसके लिए मैं एक छोटा-सा उदाहरण देना चाहूँगा। 'मलय' भाषा को ही लें, यह भाषा दक्षिणी थाईलैंड, फिलिपीन्स, सिंगापुर, पूर्वी सुमात्रा, बोर्नियो, नीदरलैंडस, ब्रूनई आदि देशों में बोली जाती है। इससे थोड़ा-सा परिवर्तन करके इसे ही भाषा इंडोनेशिया कहा जाता है जो इंडोनेशिया की भी राजभाषा है। यह भाषा हिंदी से काफ़ी मिलती जुलती है। लेकिन इसे हिंदी परिवार से बहुत दूर 'मलाया पोलिनेशियन' परिवार में गिना जाता है। आर्य भाषा परिवार में नहीं। जबकि हिंदी से साम्य होने के कारण इसे हिंदी में शामिल होना चाहिए था।

मलय भाषा में अधिकांश शब्द हिंदी और संस्कृत के हैं जैसे- पादरी, मनुष्य, लिम्मू (निंबू), बूमि (भूमि), दीवान, दुक (दुख), कपाल, हर्फ, गुरु, महा, मुफलिस, जवाब, हद, फलसफा, जंदला (जंगला), पाव, रोटी, फीता, ऊँट, तौलिया, सूखा, संसार, वक़्त, माफ़ सलामत आदि हज़ारों शब्द हैं। इसी प्रकार कहीं-कहीं तो वाक्य रचना भी समान है जैसे आपका नामा (मलय भाषा)= आपका नाम (हिंदी भाषा)? अपा खबर= क्या खबर? आदि। इसी प्रकार कंबोडिया की खमेर भाषा में ३००० से अधिक संस्कृत एवं भारतीय भाषाओं के शब्द हैं। इन भाषाओं को तथा भारत की अन्य भाषाओं के विदेशी रूपों को सम्मिलित करने से इसकी संख्या कितनी होगी आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं।

मेरा मानना है कि भाषा भाषियों की संख्या की गणना में एक ही मानदंड होना चाहिए। चीनी भाषा (मंदारिन) की गणना करते हुए चीनी लिपि में लिखी गई चीन की सभी भाषाओं को शामिल किया गया है जबकि ये बोलियाँ बोलने वाले दूसरी बोली को समझ ही नहीं पाते हैं फिर भी इन्हें मंदारिन में शामिल किया गया है जबकि हिंदी की बिल्कुल समान बोलियों, जैसे ब्रज, अवधि, भोजपुरी आदी को भी हिंदी बोलने वालों की संख्या से हटा दिया गया है। इस प्रकार विश्व के प्रकाशनों में हिंदी भाषियों की संख्या सिर्फ़ ३ या ४ करोड़ ही दर्शाई जाती है जबकि हिंदी जानने वाले विश्व में एक अरब से अधिक हैं अर्थात एक सौ तेईस मिलियन! चीनी भाषियों से एक सौ तेईस मिलियन अधिक!! सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ भारतीय प्रकाशनों में भी विदेशी विद्वानों की गणना के आधार पर ही आँकड़े छापे जा रहे हैं।

मेरे इस शोध का सारांश सन २००५ में जब भारतीय व विदेशी समाचार पत्रों के इंटरनेट संस्करणों के माध्यम से विश्व के १८५ देशों में प्रकाशित हुआ तो कई पोर्टलों ने इस पर इंटरनेट चैट कराया व पाठकों के विचार आमंत्रित किए। संसार में किसी भी विद्वान ने इसका खंडन नहीं किया। इस शोध रिपोर्ट के छपने के बाद कुछ विद्वानों ने कुछ देशों के अद्यतन आँकड़े उपलब्ध कराए मैं उनका आभारी हूँ। इन आँकड़ों को शोध रिपोर्ट २००७ में शामिल कर लिया गया है। इस आधार पर जून २००७ तक के आँकड़ों के आधार पर भी हिंदी भाषा, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा सिद्ध हुई है।

आज भारत और विश्व के कई प्रकाशन इसे मानने लगे हैं व हिंदी को प्रथम स्थान पर दिखाने लगे हैं। परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मेरा अनुरोध है कि संसार के हर प्रकाशन में हिंदी जानने वालों की संख्या १०२३ मिलियन दर्शाई जानी चाहिए व मंदारिन की संख्या ९०० मिलियन। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ को अविलंब हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा का दर्जा दे देना चाहिए।

  देश हिंदी-भाषी   देश हिंदी-भाषी
भारत ८०८०००००० ५५ जापान १७०००
पाकिस्तान १२००००००० ५६ युगांडा १६०००
बांग्लादेश ५६३३०००० ५७ रूस १६०००
नेपाल १६५००००० ५८ कोरिया १५०००
मलेशिया २६००००० ५९ स्वीट्ज़रलैंड १५०००
म्यांमार २५००००० ६० चीन १५०००
यूनाईटेड किंगडम २४००००० ६१ स्वीडेन १२०००
अमेरिका १५००००० ६२ सेशेल्स १२०००
दक्षिण अफ्रीका १५००००० ६३  लेबनान १२०००
१० सऊदी अरब १४५०००० ६४ ब्रुनई ११०००
१२ श्रीलंका ९५०००० ६५ बोस्तवाना ११०००
१३ कनाडा ९५०००० ६६ ऑस्ट्रिया ११०००
१४ यमन ९००००० ६७ सेंट विनसेंट १००००
१५ संयुक्त अरब इमारात ९००००० ६८ मालदीव १००००
१६ मॉरिशस ८००००० ६९ ग्रीस १००००
१७ भूटान ६६०००० ७० बेल्जियम ८०००
१८ फ़ीजी ४५०४३७ ७१ फिनलैंड ८०००
१९ त्रिनिडाड और टोबैगो ४५०००० ७२ इक्वाडोर ६५००
२० ओमान ४००००० ७३ ग्यूटमाल ६१००
२१ गुयाना ३६०००० ७४ नॉर्वे ६०००
२२ कुवैत ३५०००० ७५ घाना ६०००
२३ सिंगापुर ३००००० ७६ निकारागुआ ५०००
२४ सूरीनाम २५०००० ७७ विएतनाम ५०००
२५ नीदरलैंड २५०००० ७८ वैनेज़ुएला ५०००
२६ पैरागुआ १६२००० ७९ सूडान ५०००
२७ कतार १६०००० ८० सेंट लूसिया ५०००
२८ बाहरीन १५०००० ८१ प्युरटो रिको ५०००
२९ ईराक ११११०० ८२ जॉर्डन ५०००
३० थाइलैंड १००००० ८३ यूक्रेन ४०००
३१ फ़िलीपीन १००००० ८४ पनामा ४०००
३२ केनिया १००००० ८५ इजिप्ट ४०००
३३ ऑस्ट्रेलिया १००००० ८६ बारबाडोस ३०००
३४ मैक्सिको ९०००० ८७ दक्षिण कोरिया २६००
३५ जमैका ७५००० ८८ डेन्मार्क २५००
३६ तंज़ानिया ७०००० ८९ ब्राज़ील २२००
३७ जर्मनी ७०००० ९० ताइवान २०००
३८ न्यूजीलैंड ६०००० ९१ सीरिया २०००
३९ इटली ६०००० ९२ आयरर्लैंड २०००
४० पुर्तगाल ५०००० ९३ इरिट्रिया २०००
४१ इस्राइल ५०००० ९४ सेंट किटस और १५००
४२ इंडोनेशिया ५०००० ९५ पापुआन. जी. १५००
४३ फ्रांस ५०००० ९६ कज़ाकिस्तान १५००
४४ हांगकांग ४५००० ९७ सर्बिया ११००
४५ अफगानिस्तान ४२००० ९८ इथिओपिया ११००
४६ नाइजीरिया ३५००० ९९ वर्जिनिया १०००
४७ स्पेन ३०००० १०० उज़बेकिस्तान १०००
४८ मैडागास्कर ३०००० १०१ पोलैंड १०००
४९ मोज़ांबीक २५००० १०२ ईरान १०००
५० ज़ाम्बिया २२००० १०३ चिली १०००
५१ ज़िंबाग्वे २१००० १०४ बेलिज़ १०००
५२ लीबिया २०००० १०५ तिब्बती व भारतीय शरणार्थी ३०००००
५३ अर्जेंटीना १७५०० १०६ बाकी बचे देश १०००००
५४ पेरू १७०००   कुल मिलाकर १०२३३७४६३७

(बाकी देश जैसे- किरगिस्तान, टर्की, तज़ाकिस्तान, रोमानिया, मोरोक्को, लाओस, जीबौटी, चेकोस्लोवाकिया रिपब्लिक, सायप्रस, कोट डी'आयवोरी, कैमेरून, कंबोडिया, बुरूंडी, बेनिन, अज़रबाईजान, आर्मेनिया, स्लोवास्किया, उत्तर कोरिया, नामीबिया, मंगोलिया, ज़ांबिया, चैड, अंडरोरा, कोलंबिया, ट्यूनीशिया, डॉमिनीका, कॉमोरोस, वैनौटू, सोलोमोन आइलैंड, सेनेगल, माली, लिथुनिया, गुयाना-बिसाउ, क्रोएशिया, कोस्टारीका, बल्गेरिया, बेलारूस, अंगोला, अल्जेरिया इत्यादि)


(इस शोध को लेखक द्वारा भारत सरकार के प्रतिलिप्याधिकार पंजीयक (रजिस्ट्रार ऑफ कॉपीराइट) के यहाँ पंजीकृत कराया जा चुका है। अतः इसमें प्रयुक्त आँकड़ों का उल्लेख अपने नाम से करना कानूनन अवैध है।) --लेखक
९ जुलाई २००७
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।