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त्रिनिडाड कार्निवालः
मर्यादा से मुक्ति का उत्सव
प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण


ट्रिनीडाड का कार्निवाल अपनी भव्यता, विशालता, रंगीनी और उन्मादित कर देनेवाले 'स्टील बैंडों' के संगीत के लिए अब विश्वविख्यात है। सच तो यह है कि कार्निवाल, कैलेप्सो और स्टील वैंड के बिना ट्रिनीडाड की कल्पना लगभग असंभव है। यों अनेक देशों में प्रतिवर्ष कार्निवाल मनाने की प्रथा है।
हमारे देश में, गोवा में प्रतिवर्ष क्रिसमस के अवसर पर कार्निवाल का आयोजन होता है। लेकिन ट्रिनीडाड का कार्निवाल कई दिनों तक चलता है और पूरा देश इसमें बड़े उत्साह से भाग लेता है। ट्रिनीडाडवासी अपने कार्निवाल को 'पृथ्वी पर महानतम प्रदर्शन' मानते हैं। यदि इस कार्निवाल की समता खोजनी ही हो तो ब्राज़ील कोरियों में मनाए जानेवाले कार्निवाल को ही इसके समकक्ष रखा जा सकता है।

यह कार्निवाल प्रतिवर्ष फरवरी या मार्च में आनेवाले 'ऐस वेडनसडे' से तीन दिन पूर्व शुरू होता है। ये तीन दिन 'कार्निवाल संडे', 'कार्निवाल मंडे' और 'कार्निवाल ट्यूजडे' के नाम से जाने जाते हैं। यों तो कार्निवाल की रौनक और तैयारियों की गहमागहमी लगभग पूरे वर्ष चलती रहता है लेकिन क्रिसमस के बाद से तो ट्रिनीडाड को फिज़ा में कार्निवाल का जादू घुलने लगता है। वातावरण में 'स्टील वेंड' का संगीत, और नए-नए केलेप्सो-गीतों की गूँज सुनाई देने लगती है।

कार्निवाल एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें पूरा ट्रिनीडाड प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। एक ऐसा उत्सव जिसमें भाग लेना राष्ट्रीय दायित्व समझा जाने लगा है क्यों कि इस कार्निवाल की विशालता का देखने दुनिया भर से सैलानी यहाँ पहुँचते हैं। विश्वभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है कार्निवाल। फलतः कार्निवाल का आयोजन पर्यटन-आय का साधन बन गया है। चूँकि पूरा देश इसमें भाग लेने गया है अतः यह स्वयं में एक बड़ा उद्योग भी बन गया है।

यहाँ कार्निवाल मनाने की प्रथा की शुरुआत अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में फ्रेंच उपनिवेशवादियों द्वारा की गई थी। कार्निवाल शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है तथा इसका मूल अर्थ है- माँस खाने से परहेज। यूरोप के कैथोलिक मतावलंबी कार्निवाल मनाने के बाद से 'लैंटिन काल' की शुरुआत करते हैं जिसका अंत ईस्टर के त्यौहार पर होता है। कार्निवाल के लिए एक फ्रेंच शब्द का प्रयोग होता है- 'मासकॅरेड' जिसे संक्षेप में 'मास प्ले करना' भी कहते हैं। अपने आरंभिक रूप में इस उत्सव को मनाने के लिए फ्रेंच उच्च वर्ग के लोग दास लोगों की सी वेश-भूषा धारण करके मैंडोलिन, गिटार, वायलिन जैसे वाद्य यंत्रों की संगीतमय धुनों के साथ सड़कों पर एक परेड की तरह निकलते थे। जब दास प्रथा समाप्त हो गई तो इस द्वीप में रहनेवाले अफ्रीकी समाज और मुक्त हुए दासों के साथ ही साथ स्पेनिश सेवकों की एक मिली-जुली संस्कृति ने कार्निवाल को अपना लिया और इसमें अफ्रिकन समाज के पौराणिक चरित्र, फ्रेंच लुटेरों और विदूषकों के चेहरे घुल मिल गए।

इन परेडों में लाठी चलाने के प्रदर्शन भी किए जाते थे जिन्हें 'कालिंदा' कहते थे लेकिन जिसे बाद में लड़ाई-झगड़े के कारण बंद कर दिया गया। इन प्रदर्शनों के समय अनेक प्रकार के जोशीले गीत गाए जाते थे जिनमें सामाजिक बुराइयों या व्यक्तियों पर व्यंग्य किए जाते थे। यही गीत अब 'केलिप्सो' के नाम के नाम से जाने जाते हैं जिसमें आज अफ्रीकन संगीत की लय प्रमुख हो गई है। बीच के वर्षों में कार्निवाल में संभ्रांत वर्ग के लोग कम ही भाग लेते थे लेकिन पिछले पचास वर्षों से इसमें एक बार फिर बदलाव आया है तथा आज ट्रिनीडाड का संपन्न और संभ्रांत वर्ग भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। यों तो पूरे ट्रिनीडाड के प्रमुख नगरों में कार्निवाल मनाया जाता है लेकिन मुख्य प्रदर्शन स्थल पोर्ट ऑफ स्पेन का 'क्वीन्स पार्क सवाना' ही रहता है जहाँ एक विशाल मंच पर असंख्य लोगों के सामने कार्निवाल-परेड में शामिल विभिन्न दल, जिन्हें 'कार्निवाल वैंड' कहा जाता है, निकलते हैं। यहीं निर्णायक मंडल के सदस्य बैठे रहते हैं जो वर्ष के सर्वश्रेष्ट 'बैंड' का चयन करते हैं।

वस्तुतः पोर्ट ऑफ स्पेन का 'क्वीन्स पार्क सवाना' कार्निवाल आयोजन का ह्रदय स्थल है, जहाँ अनेक प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जिनमें 'किडिज कार्निवाल' - अर्थात बच्चों की कार्निवाल परेड, स्टील बैंड बजाने की प्रतियोगिता 'पेनोरामा', कैलेप्सो गायन की प्रतियोगिता में 'कलेप्सो मोनार्क' का चुनाव तथा प्रत्येक 'वेंड' के लीडर्स में से 'कार्निवाल किंग' और 'कार्निवाल क्वीन' चुनने के लिए प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है तथा इस आयोजन को 'डिमांचे ग्रास' शो कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष कार्निवाल की विधिवत शुरुआत कार्निवाल संडे की अद्धरात्रि के बाद 'जुबे' नामक आयोजन के साथ होती है जिसमें 'ओल मास' वेंड के लोग सड़कों पर 'जंप अप' के लिए निकल पड़ते हैं तथा ग्रीज व तैलीय रंगों के अतिरिक्त घुली हुई मिट्टी से एक प्रकार की होली-सी खेलते हैं। वस्तुतः कार्निवाल एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें कुछ दिनों के लिए मर्यादित जीवन की औपचारिकताओं से मुक्ति मिल जाती है। इसे संयमित जीवन व्यवहार के विरुद्ध स्वच्छंद व्यवहार का विद्रोह भी कह सकते हैं।

यों तो 'कार्निवाल मंडे' को पोर्ट ऑफ स्पेन की सड़कों पर रंगबिरंगी वेश-भूषा में अनेक समूह जिन्हें 'बैंड' कहा जाता है, नाचते-गाते निकल पड़ते हैं लेकिन इनका वास्तविक उत्कर्ष अगले दिन यानि कार्निवाल ट्रयूज डे' को ही देखने में आता है। प्रत्येक 'बैंड' में भाग लेनेवालों की वेशभूषा अपने सहयोगियों के अनुरूप एक-सी होती है तथा उनके साथ सबसे आगे उनके बैंड के 'किंग' या 'क्वीन' चलती हैं। इन 'बैंड' या समूहों की 'थीम-परिकल्पना' ही कार्निवाल की जान होती है। प्रत्येक व्यावसायिक कलाकार और वेश-भूषा तैयार करनेवाले डिज़ाइनरों में कड़ी प्रतियोगिता चलती है और वे हर वर्ष एक दूसरे से बाजी मारने के लिए एक से एक नया विषय और उसके अनुरूप पोशाकों की परिकल्पना करने में लगे रहते हैं।

सच तो यह है कि ये 'बैंडों लीडर' दुनिया के किसी भी कोने में होनेवाली घटना, व्यक्तियों आंदोलनों से अपने थीम चुन सकते हैं। आज के 'बैंड लीडर' और पोशाक डिज़ाइनर ब्रह्मांड से लेकर तुच्छ जीवों, पशु-पक्षियों, फूल-पौधों, इमारतों और झंडों तथा युद्ध और शांति जैसे विषयों को भी चुन लेते हैं। इन मौलिक कल्पनाओं के अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष के कार्निवाल में पुराने और परंपरित विषयों को भी लगातार दोहराया जाता है जिनमें रेड इंडियन, अफ़्रीकी कबीलाई संस्कृति, मैक्सिकव लुटेरे और नीले-काले रंग चेहरे पर पोतकर सिर पर सींग और पीछे पूँछ लगाए 'शैतानों के बैंड' भी दिखाई देते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब ट्रिनीडाड अमरीकी फौजों का अड्डा बन गया था तो कार्निवाल की परेड में इनसे जु़ड़े विषयोंवाले बैंड भी निकलने लगे। हालीवुड की युद्ध फिल्में भी इन बैंड लीडरों को नए-नए विषय सुझाती रहती हैं। कार्निवाल के रोमांच का सबसे महत्वपूर्ण तत्व 'जंप अप' या 'चिप चिप' है जिसके अंतर्गत स्टील बैंड द्वारा निकाली जा रही गगन-भेदी धुनों पर अपार जन-समूह बड़ी तन्मयता और लयात्मकता के साथ धीरे-धीरे नाचता-झूमता-थिरकता चलता रहता है। उनके साथ बड़े-बड़े कंटेनर ढोनेवाले ट्रकों पर स्टील बैंड बजाते कलाकार चलते रहते हैं। यह सिलसिला दोनों ही दिन चलता है और उनके साथ दर्शक भी 'जंप अप' करने लगते हैं।

चटक रंगोवाली पौशाकें, स्टील बैंड का हरहराता संगीत और समुद्र की लहरों की तरह उमड़ता हुआ जन समुद्र, जिसमें सभी रंग और जाति के लोग रहते हैं, ट्रिनीडाड के कार्निवाल को एक ऐसा रंग रूप प्रदान कर देते हैं जिसकी समता विश्व में मिलनी कठिन हो जाती है। वस्तुतः ट्रिनीडाड का कार्निवाल अप्रतिम कल्पनाशीलता, रचनात्मकता और जीवन-शक्ति का एक ऐसा उद्दाम विस्फोट है जो कार्निवाल में भाग लेनेवाले व्यक्तियों के जीवन-प्रेम को उद्घाटित करता है। ऐसा जीवन-प्रेम जिसमें मानवीय भावनाओं का उन्मुक्त और उन्मत्त स्वाद भरा है तथा जो रूप-रस-गंध की दुनिया से भागता नहीं है वरन उसका संपूर्णता में भोग करना चाहता है। जीवन की समस्त वर्जनाओं, मर्यादाओं से मुक्ति पाने का अवसर प्रदान करता है ट्रिनीडाड का यह कार्निवाल।

१८ अगस्त २००८

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