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संस्कृति


जोधपुर की जूतियाँ

- मोईनुद्दीन चिश्ती


राजस्थान के मरुस्थलीय प्रदेश की धरती संतों, सूरमाओं और बहादुरों की धरती है। यहाँ के संत अपनी वाणी और व्यवहार से मानवीय सद्वृत्तियों को जगाने का निरंतर प्रयास करते रहे हैं। शूरवीर अपनी मान-मर्यादा के लिए प्राणों को हथेली पर लेकर लड़ते रहे तो वहीं यहाँ के कलाकार (हस्तशिल्पी) हमेशा अपनी संस्कृति के प्रति समर्पित रहे। ऐसी ही साधना करने वालों में चर्म हस्त कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले जोधपुर निवासी मोहम्मद खलील रहमानी का नाम समूचे भारत के हस्तशिल्पियों में अत्यंत सम्मानपूर्वक लिया जाता है। राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय है और यहाँ का मरुस्थलीय साथी है ऊँट। इसी कारण ऊँट के चमड़े के साथ-साथ भैंस और बैल के चमड़े से बनी जूतियाँ इसी प्रदेश की शान हैं। रहमानी परिवार द्वारा बनायी गयी जूतियों की माँग समूचे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है।

मो. खलीलः मौजड़ियों के लिए विख्यात

जोधपुर के अलावा जूतियाँ फलौदी, बाड़मेर, जयपुर, जैसलमेर, भीनमाल, बीकानेर, जालौर और नागौर में भी बनती हैं। लेकिन जोधपुर में बनी मौजड़ियों की बात ही कुछ और है। यहाँ बनी जूतियों की विशेषता यह है कि यह जूतियाँ वजन में बहुत हलकी, कशीदाकारी के लिहाज से दिल को लुभानेवाली और पहनने में गुलाब की पंखुड़ियों के समान कोमल होती हैं। जोधपुर की ‘जोधपुरी कलात्मक मौजड़ी उत्पादक सहकारी समिति-लिमिटेड’ के सचिव शिल्पकार मोहम्मद खलील रहमानी का जन्म गुलाम अहमद रहमानी के घर में सन् १९३८ में हुआ था। इन्होंने चर्म हस्तकला का कार्य अपने बुजुर्गों से सीखा। मौजड़ियों के लिए विख्यात मो. खलील को ‘सलीम शाही कशीदा नोंकदार जूती’, ‘सिंधी जनानी कशीदा जूती’ और ‘महारानी जोधा जनानी जूती’ आदि के लिए अनेक राज्य सरकारों से पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इनकी बनायी हुई जूतियों की व्यापक सराहना हुई है। यही नहीं इनके छोटे भाई शब्बीर हसन रहमानी और उनकी पत्नी कमरुन्निशा रहमानी, दूसरे भाई अब्दुल खलिक और पुत्र मोहसिन रहमानी को भी अनेक राज्य सरकारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। मो. खलील के छोटे पुत्र मो. नदीम ने ‘विश्व की सर्वाधिक छोटी जूती’ बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया है। रहमानी परिवार ने न सिर्फ जूतियों और मौजड़ियों के क्षेत्र में अपनी सिद्धता के जौहर दिखलाये हैं, बल्कि साड़ियों, बैग, चप्पलों, बैल्ट और पर्सों पर कलात्मक कशीदाकारी के झंडे गाड़े हैं। विख्यात शिल्पी मो. खलील बताते हैं, ‘मेरे बुजुर्गों ने सन् १९५८ में मात्र २५ ग्राम वजन के चमड़े की मौजड़ी की जोड़ी बनायी थी, जिसे आज भी आसानी से पहना जा सकता है।’ इस जोड़ी को उन्होंने वर्ष २००१ में आयोजित पश्चिमी राजस्थान उद्योग हस्तशिल्प उत्सव की स्टाल में प्रदर्शित किया। इस अनोखी जोड़ी को दिखाते हुए वह बताते हैं कि मैंने इस जूती को सहेजकर अपने बुजुर्गों की खानदानी धरोहर को संरक्षण दिया है।

विभिन्न प्रकार की जूतियाँ-

मो. खलील का पूरा परिवार ही जूती निर्माण के कार्य में लगा हुआ है। इस परिवार के २५ महिला-पुरुष कलात्मक जोधपुरी मौजड़ियों के निर्माण में निपुण हैं, जिन्हें जिला स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक के पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

सिंधी जनानी रेशमीन कशीदा जूती, महारानी जोधा जनानी जूती, नवरंग कशीदाकारी सिलाई जूती, मारवाड़ी कशीदाकारी सिलाई जूती, कच्छी जनानी जरीन जूती, कैमल कटिंग लाईट मोजरी, राजस्थानी कशीदाकारी जूती, बहादुर शाह गोसा स्लीपर, इस सिद्धहस्त परिवार ने अन्य कई कलात्मक मौजड़ियाँ भी बनायी हैं, जिनमें सलीम शाही कशीदा नोंकदार जूती, महाराजा भर्तृहरि कशीदा सिलाई मोजड़ी, मृग उज्जैनी लाल जरी जूती, गुजराती मुड्डी जरीन जनानी, कैमल रेशमीन नोकदार मर्दाना, काली रेशमीन कशीदा नोंकदार मर्दाना जूती। गोलजरी पूरी बैली लेडिज जूती एवं मारवाड़ी रंगीन कशीदा मोजड़ी आदि मुख्य हैं। मो. खलील से उनकी बनायी पुरस्कृत जूतियों की विशेषताएँ पूछने पर उन्होंने बताया, ‘सलीम शाही कशीदा नोंकदार जूती’ का मुख्य गुण तो यही है कि वह किसी भी प्रकार के पहनावे पर क्यों न पहनी जाए, खूब फबती हैं। इस जूती को अदला-बदली करके भी पहना जा सकता है। इन जूतियों की उम्र लंबी होती है। जबकि ‘महारानी जोधा जनानी जूती’ के आगे का आकार चौड़ा तथा पीछे से दबा हुआ-सा होता है।

यह वजन में मामूली-सी हलकी होती है तथा इन पर मुख्यतया सफेद, हरा और लाल रंग से ही कशीदा किया जाता है। ‘सिंधी जनानी’ की विशेषताओं में इसका आकार किश्ती की तरह होता है, जिसे दो हिस्सों में जोड़कर बनाया जाता है। इस जूती के नीचे का तला बहुत संकरा (पतला) होता है, जो पहनने पर पैरों को बहुत ही आराम देता है। इस जूती पर काला मखमल लगाकर हरा, लाल व पीला कशीदा बहुत ही बारीक-बारीक किया जाता है। इस जूती का डिजाइन मुगल कला शैली की देन है।

नवरंग जूती

शिल्पी शब्बीर हसन ने अपनी ‘नवरंग जूती’ की खासियत बताते हुए कहा, ‘इसका गुण इसके नाम में ही अंतर्निहित है। जैसा कि नाम है नवरंग जूती अर्थात नौ रंगों की जूती। इस जूती को नौ रंगों के धागों से कशीदा पर बनाया जाता है और कशीदा बाहरी भाग के अलावा आंतरिक भागों में भी किया जाता है।

मारवाड़ी जूती

कमरून्निसा ने अपनी जूतियों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा, ‘कच्छी जनानी जूती’ को दो भागों से जोड़कर बनाया जाता है। यह जूती पैरों के लिए आरामदायक तथा अधिक चलने वाली होती है। जबकि ‘मारवाड़ी जूती’ को सिर्फ मारवाड़ी पोशाकों पर पहनने के लिए ही बनाया जाता है। इस जूती पर मखमल लगाकर हलके भूरे और हरे रंग से ही कशीदा किया जाता है। ‘जोधपुरी आगरा जूती’ की विशेषता एवं गुण पूछने पर अब्दुल खालिक ने बताया, ‘इस जूती में किसी और प्रकार के चमड़े का प्रयोग नहीं करके सिर्फ ऊँट के चमड़े को ही प्राथमिकता दी जाती है। इस ऊँट के चमड़े पर हलके क्रीम रंग के धागे से बारीक-से-बारीक कशीदा किया जाता है। इसके निचले तले पर जालियाँ तथा बेलबूटे बनाये जाते हैं। यह जूतियाँ वजन में बहुत हलकी, मुलायम तथा इनकी विदेशी ग्राहकों द्वारा काफी माँग रहती है।

१ दिसंबर २०१४

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