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स्वाद और स्वास्थ्य

कद्दू एक लाभ अनेक  

 
क्या आप जानते हैं?

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कद्दू की खेती आलस्का सहित छह महाद्वीपों में होती है। केवल  अंटार्कटिका में वे नहीं उगाए जाते।
 

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कद्दू खरबूजा प्रजाति का फल है लेकिन इसका प्रयोग सब्जी की तरह किया जाता है।
 

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कद्दू के फूल और बीज भी खाने के काम आते हैं।
 

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कद्दू पोटैशियम और विटामिन ए का महत्वपूर्ण स्रोत है।

कद्दू का इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि कद्दू की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में हुई होगी। इसके सबसे पुराने बीज ७,००० से ५,००० ईसा पूर्व के हैं। पश्चिमी एशिया में इसका इस्तेमाल मीठे व्यंजन बनाने में किया जाता है। आगरा की प्रसिद्ध मिठाई 'पेठा' भी इसी की प्रजाति की सब्जी से बनाई जाती है। अमेरिका, मेक्सिको, चीन और भारत इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। इसके साथ ही यह विश्व के अनेक देशों की संस्कृति के साथ जुड़ा है। भारत में विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर कद्दू की सब्जी और हलवा आदि बनाना-खाना शुभ माना जाता है। उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है। ईसाई देशों में हैलोईन के त्यौहार पर इसका विशेष महत्व होता है जहाँ इसे लालटेन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

अनेक नाम-

कद्दू को सब्जी एवं अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने के काम में लिया जाता है। यह अनेक पौष्टिक गुणों से भरपूर फल है, जिसका आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में कई रोगों की चिकित्सा करने में प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में इसको काफीफल, कद्दू, रामकोहला, तथा संस्कृत में कुष्मांड, पुष्पफल, वृहत फल, वल्लीफल कहते हैं। इसका लेटिन नाम ‘बेनिनकासा हिष्पिड़ा’ है। यह कोशातकी (कुकुर्बिटेसी) कुल का फल है। यह अंटार्कटिका को छोड़कर बाकी संपूर्ण विश्व में उगाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, मेक्सिको, भारत एंव चीन इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। भारत में कद्दू की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें उनके आकार-प्रकार और गूदे के आधार पर मुख्य रूप से सीताफल, चपन कद्दू और विलायती कद्दू के वर्गों में बाँटा जाता है।

लता व फल का स्वरूप-

कुम्हड़ा या कद्दू एक स्थलीय, द्विबीजपत्री पौधा है जिसका तना लम्बा, कमजोर व हरे रंग का होता है। तने पर छोटे-छोटे रोयें होते हैं। यह अपने आकर्षों की सहायता से बढ़ता या चढ़ता है। इसकी लता (बेल) लम्बी, मोटी व चारों तरफ पृथक, प्रथम शाखा के रूप में जमीन पर फैलकर बढ़ती जाती है। इसके पत्ते बड़े, हृदयाकार तथा पुष्प नीले रंग के व एकल होते हैं। फल के रूप में प्राप्त कद्दू बड़े-बड़े गोलाकार या गोल लम्बवत् होते हैं। फल की मज्जा अपक्वावस्था में सफेद रंग की तथा परिपक्व होने पर पीले रंग की होती है। फल के अन्दर असंख्य सफेद रंग के चपटे फूले हुए बीज रहते हैं। इसका फूल पीले रंग का सवृंत, नियमित तथा अपूर्ण घंटाकार होता। नर एवं मादा पुष्प अलग-अलग होते हैं। नर एवं मादा दोनों पुष्पों में पाँच जोड़े बाह्यदल एवं पाँच जोड़े पीले रंग के दलपत्र होते हैं। नर पुष्प में तीन पुंकेसर होते हैं जिनमें दो एक जोड़ा बनाकार एवं तीसरा स्वतंत्र रहता है। मादा पुष्प में तीन संयुक्त अंडप होते हैं जिसे युक्तांडप कहते हैं। इसका फल लंबा या गोलाकार होता है। फल के अन्दर काफी बीज पाये जाते हैं। फल का वजन ४ से ८ किलोग्राम तक हो सकता है। सबसे बड़ी प्रजाति मैक्सिमा का वजन ३४ किलोग्राम से भी अधिक होता है। इस पौधे की आयु एक वर्ष होती है।

पौष्टिक तत्व-

कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। इसमें श्वेतसार, कुकुर्बिटान नामक क्षाराभ, एकतिक्तराल, प्रोटीन-मायोसिन, वाईटेलिन शर्करा क्षार आदि पाए जाते हैं। यह बलवर्धक है, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। कद्दू के बीज भी आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं। इसमे खूब रेशा यानी की फाइबर होता है जिससे पेट हमेशा साफ रहता है। शायद इन्हीं खूबियों के कारण कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है।  यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।

आयुर्वेदिक प्रयोग-

कद्दू रस एवं विपाक में मधुर होता है।  इसके बीजों से प्राप्त तेल को सिर पर लगाने से फायदा होता हैं इसकी फल मज्जा का शरीर पर लेप करने से सन्ताप दाह में लाभ होता है। अग्नि से जल जाने पर (अग्निदग्ध) इसके पत्तों का रस निकालकर लगाने से काफी लाभ मिलता है, इसी के साथ-साथ इसके फूल का रस पारद के विष को भी दूर करता है। उन्माद आदि मानसिक रोगों में यह अच्छा लाभ करता है तथा स्मृति ह्रास व मस्तिष्क व ह्रदय की दुर्बलता को दूर करता है। मानस रोगों में पका कद्दू विशेष लाभदायक होता है। यह शरीर को पुष्ट बनाता है। यह उरःक्षत, रक्तपित्त, मूत्र, कृच्छ, मूत्राघात, अश्मरी, राजयक्ष्मा क्षय आदि में भी सहायक रूप से लाभ करता है। शरीर में जलन की शान्ति के लिए इसके बीजों को पीसकर मिश्री मिलाकर ठण्डाई के रूप में प्रयोग करते हैं। गर्मियों में इसका अवलेह व मुरब्बा भी प्रयोग किया जाता है तथा इसके अनेक व्यंजन, बर्फी, खीर, हलवा, रायता, पकौड़े आदि के रूप में भी प्रयोग करते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में इसके अनेक योग प्रयोग किए जाते हैं, जैसे कुष्माण्डखण्ड, कुस्माण्डगुडकल्याणक, कुड्माण्डधृत आदि।

घरेलू नुस्खे-
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कद्दू को डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है।

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कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है।

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आहार विशेषज्ञों का कहना है कि कद्दू हृदयरोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है। यह कोलेस्ट्राल कम करता है, ठंडक पहुंचाने वाला और मूत्रवर्धक होता है।

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मधुमेह रोगियों के लिये- कद्दू रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है और अग्न्याशय को सक्रिय करता है। इसी कारण चिकित्सक मधुमेह रोगियों को कद्दू खाने की सलाह देते हैं। इसका रस भी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।

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लोहे की कमी या एनीमिया में कद्दू लाभदायक सिद्ध होता है।

९ जून २०१४

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