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स्वाद और स्वास्थ्य

मनभावन मूँगफली

 क्या आप जानते हैं?

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मूँगफली के पौधे बंजर ज़मीन को नाइट्रोजन प्रदान करके उसे उपजाऊ बना देते हैं। इसलिये यह एक अच्छी फसल मानी जाती है।
 

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मूँगफली सूखे मेवों का राजा है। पौष्टिकता में यह बादाम के बराबर होती है। इसे ‘देशी काजू', ‘गरीबों का मेवा', ‘चीनिया बादाम’ आदि कहा जाता है।
 

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मूँगफली ‘लेग्यूमिनेसी’ कुल का फलदार पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम ऐरेकिस हाइपोजिआ’ है। अँग्रेजी में इसे ‘ग्राउंड नट’ या ‘मंकी नट’ कहते हैं। अमरीका में इसे ‘पी नट’ कहा जाता है।

मूँगफली मेवा नहीं है बल्कि यह फली और दाल की श्रेणी का दाना है। यह कोलोस्ट्राल से मुक्त होती है। यूएसए में नाश्ते के रूप में एक तिहाई भोजन मूँगफली या उससे निर्मित वस्तुओं का होता है। वनस्पति-विज्ञानियों ने १७०० के दशक में मूँगफली का अध्ययन किया और इसका नाम ग्राउँड पीज़ रखा। अमेरिका के डॉ. जार्ज वाशिंगटन कार्वर, जो मूँगफली उद्योग के पितामह माने जाते हैं, ने १९वीं शताब्दी के प्रारंभ में मूँगफली से ३०० से अधिक प्रयोगों का आविष्कार किया था। उनके इस प्रयत्न ने मूँगफली को लोकप्रिय बनाया और इसके उद्योग को खूब विस्तार मिला। कार्वर ने अपने इलाके के किसानों को यह भी बढ़ावा दिया कि वे बार-बार सिर्फ कपास की पैदावार ही न करें, जो ज़मीन को बंजर बना देती है, बल्कि अदल-बदलकर मूँगफली की फसल भी उगाएँ जो जमीन को उपजाऊ बनाती है। आज मूँगफली का प्रयोग किसी न किसी रूप में दैनिक प्रयोग की अनेक वस्तुओं में होता है जैसे तख्तों, जलाने के लिए लकड़ी, पशुओं का मल-मूत्र सोखने के लिए बनाया गया बुरादा, कागज़, खाद, कपड़े और बर्तन धोने के पाउडर, मरहम, धातु की पॉलिश, ब्लीच, स्याही, अनेक प्रकार की क्रीम, साबुन, रबर, सौंदर्य प्रसाधन, रंग रोगन के सामान, विस्फोटक, दवा, दूध, मक्खन, तेल आदि।

इतिहास

पेरू में मिली एक सुराही पर मूँगफली की प्रशंसा में कुछ शब्द लिखे पाए गए थे। यह सुराही मूँगफली के आकार थी और उसके ऊपर मूँगफली  कलात्मक आकृतियाँ बनी थीं। बाद में स्पेन के खोजकर्ताओं ने, मूँगफली को दक्षिण अमरीका में देखा और पाया कि समुद्री सफर के दौरान यह खाने के लिए पौष्टिक आहार है। वे कुछ मूँगफलियाँ अपने साथ यूरोप ले आए। बाद में यह पुर्तगाल तथा दूसरे देशों में पहुँची। और उसके बाद गुलामों के खरीदने-बचने के धंधे के दौरान अफ्रीका से उत्तर अमरीका भी पहुँच गयी। ऐसा माना जाता है कि १५३० के दशक में, पुर्तगालियों के द्वारा मूँगफली भारत और मकाओ, और फिलीपीन पहुँची। फिर इन देशों से व्यापारी इसे चीन ले गए। आज विश्व में इसकी पैदावार का पचास प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत और चीन में उगाया जाता है।

पौष्टिक तत्व

मूँगफली में २६ प्रतिशत प्रोटीन होता है। मूँगफली का प्रोटीन बादाम, काजू, अखरोट, सोयाबीन, मक्खन, दूध, पनीर, से प्राप्त प्रोटीनों से उच्चकोटि का होता है। बादाम की कीमत मूँगफली से करीब २५ गुना ज्यादा होती है फिर भी उसमें प्रोटीन केवल २१ प्रतिशत ही रहता है। सौ ग्राम मूँगफली ६०० कैलोरी के करीब ऊर्जा देती है जो इतने ही वजन के माँस से अधिक रहती है। यह पौष्टिकता से भरपूर होती है, इसके प्रोटीन ९६.४ प्रतिशत तक पाचन योग्य होते हैं। मूँगफली में ४६ प्रतिशत के करीब तेल रहता है जो हृदय के लिए लाभदायक है। यह तेल मीठा, पौष्टिक, उष्ण, दाहकारी, क्रांतिवर्धक, आँतों के लिए संकोचन, व्रणरोधक, शीघ्र तथा सरलता से पचने वाला होता है। गुणों में यह जैतून के तेल के समान होता है। मूँगफली में प्रोटीन गेहूँ से दुगना रहता है। इसलिए शाकाहारी व्यक्ति गेहूँ के साथ-साथ १० मूँगफली रोज खाया करें तो उसके शरीर में प्रोटीन की कमी नहीं होती। बहुत से लोगों को मूँगफली से एलर्जी होती है अतः ऐसी स्थिति में सावधानी बरतना आवश्यक है।

रासायनिक विश्लेषण

मूंगफली में ३ प्रतिशत नमी, २६ प्रतिशत प्रोटीन, ४०-४६ प्रतिशत वसा, १८ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, २.४ प्रतिशत खनिज, ३.१ प्रतिशत रेशा रहता है। १०० ग्राम मूँगफली में ३५० मि.ग्रा. कैल्शियम, ३७ मि.ग्रा. विटामिन बी १, ०.१३ मि.ग्रा. विटामिन बी ५ रहता है। इसके अलावा इसमें विटामिन ई, आयोडीन, मैग्निशियम, पोटेशियम एवं ताँबा जैसे आवश्यक खनिज भी रहते हैं। मूँगफली के दाने पर हल्का या गहरे लाल रंग का पतला सा छिलका रहता है जो विटामिन ई का स्त्रोत है। मूँगफली की पत्तियों में ४२ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, १८ प्रतिशत प्रोटीन तथा ८.५ प्रतिशत वसा रहती है। इस कारण इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए संतुलित आहार है। इसमें अन्य खलियों के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन रहता है। मूँगफली की खली खाद के रूप में उत्तम नाइट्रोजन वाली रहती है। मूँगफली के छिलकों से ‘बैनीलिन’ नामक रसायन बनाया जाता है जो औद्योगिक स्तर पर कई यौगिकों के निर्माण में काम आता है।

मूँगफली के गुण

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मूँगफली स्वाद में कटु, मीठी, शीघ्र पचने वाली, तीक्ष्ण, उत्तेजक, वायुसारक, मूत्रजनक, पीड़ा हारक, क्षयनाशक, अग्रिदीपक तथा तासीर में गर्म होती है। यह स्नायुविक तंतुओं को शक्तिशाली और तंदुरुस्त बनाती है।

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मूँगफली या उससे निर्मित खाद्य सामग्री के उपयोग करने से रक्तस्त्राव की बीमारी (हीमोफीलिया) में आराम मिलता है।

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दूध पिलाने वाली माताओं को मूँगफली खाने से उनके दूध में वृद्धि होती है तथा उनके बच्चों में प्रोटीन की कमी नहीं होने पाती।

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प्लेग जैसे संक्रामक रोगों को मूँगफली के नियमित सेवन से रोका जा सकता है।

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मूँगफली कच्ची, भूनकर व तलकर खाई जाती है। इससे दूध, दही, मक्खन, छैना भी बना सकते है। तली हुई मूँगफली के बजाय भूनी हुई मूँगफली ज्यादा सुपाच्य होती है। अंकुरित करके खाने से इसके पोषक तत्व और बढ़ जाते हैं।

मूँगफली के तेल के गुण

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मूँगफली के तेल में लिनोलिक अम्ल की मात्रा अच्छी रहने यह एक उपयोगी खाद्य तेल है। इसकी उपस्थिति के कारण यह लंबे समय तक दुर्गंधमय नहीं हो पाता। मूँगफली का तेल अपरिष्कृत तेल की श्रेणी के अन्तर्गत आता है। यह मिठाइयाँ, वनस्पति घी, साबुन, ग्लिसरीन, पेंट एवं वार्निश बनाने के काम में आता है।

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यह तेल क्षय रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है तथा रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा पर नियंत्रण रखता है अतः हृदयरोगियों के लिए फायदेमंद रहता है।

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हाथ, पैर और जोड़ों के दर्द में इसकी मालिश से आराम मिलता है। यह तेल स्नायुओं को मजबूत एवं शक्तिशाली बनाता है।

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दाद, खाज, आदि चर्म रोगों में मूँगफली तेल को गुनगुना गर्म करके मालिश करने से फायदा होता है। केश वर्धन के लिए यह तेल उपयोगी है।

मूँगफली के आटे के गुण
 

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मूँगफली का आटा पोषक तत्वों से भरपूर सरलता से पचने वाला होता है। गेहूँ के आटे में मूँगफली का आटा मिला कर रोटी बनाने से रोटी पौष्टिक एवं सुपाच्य हो जाती है। मूँगफली के आटे की रोटी मधुमेह में फायदा करती है।

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मूँगफली का आटा विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ, बिस्कुट आदि बनाने के काम आता है।

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कमजोर बच्चों तथा गर्भवती स्त्रियों को पौष्टिकता से भरपूर यह आटा खिलाने से आशातीत लाभ होता है। मूँगफली के आटे में जो शर्करा होती है वह मोटापा घटाती है, इसके घुलनशील पदार्थ अधिक सुपाच्य होते हैं।

१० फरवरी २०१४

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