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रत्न रहस्य (2)

माइग्रेन और रत्न चिकित्सा


वी के जैन 

माइग्रेन विश्व के सबसे अधिक पाए जाने वाले रोगों में से एक है। केवल अमरीका में इसके रोगियों की संख्या 25,000,000 से अधिक है जो संपूर्ण जनसंख्या का 13 प्रतिशत है। विश्व के अन्य देशों के आंकड़े भी इसके आसपास पहुंचते हैं। कुल मिला कर इसके रोगियों की संख्या दमा, मधुमेह और रक्तचाप के रोगियों से अधिक हैं।

माइग्रेन एक विशेष प्रकार का विकार है जिसके कारण का सही पता अभी तक नहीं लग पाया है  इसलिये उपचार भी मुश्किल है। रत्न चिकित्सा में अनेक प्रकार के उपचार व साधन उपलब्ध है जिनका लाभ इसकी तीव्रता व पुनरावृत्ति को कम करने में लिया जा सकता है।

माइग्रेन के रोगी कम से कम वर्ष में एक बार और अधिक से अधिक प्रतिदिन इसकी पुनरावृत्ति  को अनुभव करते हैं। दर्द की तीव्रता कम से शुरू होकर बहुत अधिकता में बदलती रहती है। माइग्रेन की वृत्ति कुछ घंटों से लेकर 3–4 दिनों तक रहती है इसलिये इसकी चिकित्सा भिन्न भिन्न प्रकार से होती है।

इस रोग के कारण व उपचार की जो पद्धतियां अभी तक खोजी गयी हैं वे हर रोगी पर कारगर सिद्ध नहीं होतीं। कई रोगियों पर इन दवाओं का असर धीरे धीरे कम होता गया भी देखा गया है। अनेक प्रकार की औषधियों और चिकित्सा पद्धितियों के साथ रत्न चिकित्सा में इसके आरोग्य की ओर शोध किये गए हैं जिनके परिणाम असरदार रहे है।

माइग्रेन में रत्न चिकित्सा की पद्धति नयी नहीं है, समाज के प्रभावपूर्ण वर्ग को इस पद्धति का ज्ञान प्राचीन समय से था परन्तु रत्नों के अत्यधिक मूल्य व कम मात्रा में उपलब्धि के कारण यह पद्धति कुछ विशिष्ट लोगों तक ही सीमित रही। आज विज्ञान की व्यापकता के कारण इस पद्धिति की सुलभता और व्यापकता भी बढ़ी है। 

वैज्ञानिक तौर पर रत्न रंगीन धारा को एकाग्र करते है और अपनी विभिन्न तरंगों से मानव के संरचना पर अनेक प्रकार का प्रभाव डालते है। सात रंग की किरणें सात उर्जा ग्रहों के रूपांतरित होने के कारक है और इनका प्रभाव मानव के शरीर में सात ग्रहों के केन्द्र विद्यमान होने के निमित्त से है। सब केन्द्र पृथक होते हुए भी एक केन्द्रीय ग्रह शनि से जुड़े हुए हैं। यदि शरीर में केन्द्र का समुचित समन्वय हो तो सहज स्वास्थ्य की प्राप्ति हो सकती है। अगर केन्द्रों का समन्वय न हो तथा कुछ में रंगीन उर्जा की कमी या अधिकता हो तो यह स्थिति रोगों को जन्म देती है। रंगों की तरंगों को रत्नों द्वार संजो कर इस ऊर्जा को संतुलित किया जा सकता है और रोग को कम तथा समाप्त किया जा सकता है।

जिस रंग की उर्जा चाहिए उस रंग का रत्न पहनना चिकित्सा का प्रमुख अंग है केन्द्र में ऊर्जा की कमी को पूरा किया जाता है। अधिक उर्जा वाले केन्द्र को कम करने के लिये विपरीत रंगों वाले रत्नों का सहयोग लेते हैं। इन केन्द्रों का सम्बन्ध अंगुलियों व शरीर विभिन्न अंगों से है जिनके द्वारा रंगीन उर्जा को रत्नों से प्रवाहित करते है। रंगीन किरणों को प्राप्त करने के लिये अप्राकृतिक रत्नों का भी प्रयोग किया जा सकता है। यह उपचार अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है।

रोग से निदान पाने के लिये, ग्रहों की रंगीन उर्जा के सिद्धान्त को समझना तथा विश्लेषण करना अति आवश्यक है जिससे मूल कारणों का पता चल सके और आवश्यकतानुसार रत्नों का चयन किया जा सके। यह आसान कार्य नहीं है अतः इसके लिये योग्य रत्न–चिकित्सक से सलाह लेकर ही रत्न धारण करना चाहिये। रत्न शरीर के किसी विशेष स्थान या अंगुलियों में पहनते हैं जिससे असमन्वय वाले केन्द्रों की उर्जा को कम या अधिक किया जा सके। जैसे–जैसे केन्द्र की ऋणात्मक व धनात्मक ऊर्जा सुचारू स्तर तक पहुंचने लगती है वैसे वैसे रोग में निदान होता चला जाता है।

माइग्रेन होने के कारणों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस रोग के कारक शनि व सूरज ग्रह है। इन ग्रहों से क्रमशः नीली और लाल रंग की किरणें निकलती हैं। नीले व लाल रंग की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को नीले व लाल रंग के रत्नों से प्राप्त किया जाता हैं। 

इस दिशा में अनेक प्रयोगों द्वारा निष्कर्ष निकलता है कि रत्न माइग्रेन के उपचार के लिये सक्षम है और अनेक प्रकार के माइग्रेन को ठीक किया जा सकता है परन्तु उपचार समय भिन्न–भिन्न (20–300 दिनमान) है जो माइग्रेन की किस्म अवधि पर निर्भर करता है। इस अध्ययन  ने माइग्रेन उपचार हेतु एक नयी दिशा में अपना योगदान दिया है जो माइग्रेन पीड़ितों के लिये वरदान साबित हो सकता है।

 
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