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मेरा भतीजा न्यूयार्क से आया था। उसकी इतिहास और पुराकथाओं में गहरी रुचि थी। न्यूयार्क में रह कर भी हिंदी बोलता ही नहीं था, हिंदी पढ़ता भी था।

वह मुझसे पूछ रहा था, "क्या रामकथा में वर्णित स्थानों की किसी ने खुदाई की है?"
मैं सोच रहा था कि उसे कैसे बताऊँ कि इस देश में ऐसी बातें करना शोभनीय नहीं माना जाता। उससे व्यक्ति सांप्रदायिक हो जाता है। और कौन चाहेगा कि वह सांप्रदायिक हो जाए।
"पश्चिमी पुरातत्ववेत्ताओं ने तो बाइबिल में वर्णित एक-एक इंच खोद डाला है। वे पूरी तरह बाइबिल को ऐतिहासिक प्रमाणित करने पर तुले हुए हैं।" उसने कहा।
"वे व्यर्थ परिश्रम कर रहे हैं।" मैंने कहा, "हमारे देश के महान इतिहासकार तो बिना खुदाई के ही सत्य जान गए हैं?"
"योग विद्या से? वे योगी हैं क्या?"
"नहीं! योगी तो नहीं हैं।" मैंने कहा, "पर उन्होंने बिना खुदाई और छानबीन के ही घोषणा कर दी है कि रामकथा काल्पनिक कथा है।"
"वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?" मेरा भतीजा पूरे आवेश में था, "बाइबिल से भी प्राचीन ग्रंथ रामायण हमारे पास है। अयोध्या है, सरयू है, चित्रकूट है, प्रयाग है, श्रृंगवेरपुर है, नासिक है, पंचवटी है, गोदावरी है, जनस्थान है, खोजने पर किष्किंधा का पता भी लग ही जाएगा, रामेश्वरम है। रामेश्वरम का क्षेत्र रामनाड कहलाता है। धनुषकोडि स्टेशन भी था। और चाचा जी! अब तो नासा के वैज्ञानिकों द्वारा लिए गए चित्र भी बता रहे हैं कि समुद्र के गर्भ में टूटे हुए सेतु के ध्वंसावशेष पड़े हैं। कुछ वैज्ञानिकों का तो विचार है कि हम प्रयत्न करें तो नई टैक्नॉलॉजी की सहायता से उस पुल को समुद्र के ऊपर उठा सकते हैं। इतने प्रमाण मिलने पर भी वे ऐतिहासिक और पुरातात्विक खोज क्यों नहीं करना चाहते?"
"उसके लिए तो बेटा! उनके मन की खुदाई करनी पड़ेगी। जाने उनके मन में क्या-क्या दबा पड़ा है। उसका पता लगाना तो इतिहास की खोज से भी कठिन है।"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि वे डरते हों कि खोज के पश्चात परिणाम यह प्रमाणित हो जाए कि रामायण हमारा इतिहास नहीं है?" उसने पूछा।
"नहीं! क्योंकि वे तो स्वयं ही उसे कल्पना मान रहे हैं। यदि ऐतिहासिक, पुरातात्विक और वैज्ञानिक खोज से यह सिद्ध हो जाए कि रामायण, इतिहास नहीं, एक काल्पनिक कथा है, तो उनके तो जीवन भर के सारे अरमान पूरे हो जाएँगे।"
"पर क्यों? अपने देश का गौरव उन्हें हर्षित नहीं करता?"
"देश तथा राष्ट्र का गौरव जैसे शब्द उन्हें अच्छे नहीं लगते। ये सेकुलर शब्द नहीं हैं। मैंने कहा, "मेरा विचार है कि उनका संकट यह ईसवी कैलेंडर है।"

"क्यों?"
"उनका विचार है कि उससे पहले संसार था ही नहीं।"
"पर संसार तो था।" मेरा भतीजा बोला, "वैज्ञानिक तो इस पृथ्वी का जीवन करोड़ों वर्षों में आँकते हैं।"
"आँकते रहें, किंतु इतिहास तो नहीं था न।"
"इतिहास भी था, कैलेंडर भी था।" वह बोला, "ग्रीक, रोमन, मिश्री सभ्यताएँ।"
"वे सब भी थीं, किंतु हमारे इतिहासकार मानते हैं कि भारत में कुछ नहीं था।"
"हमारे देश में तो इतने सारे कैलेंडर हैं और वे सभी ईसवी कैलेंडर से पुराने हैं।"
"हैं। पर वे उसे नहीं मानते।"
"क्यों?"

"क्योंकि जहाँ कोई नया धर्म जन्मता है, वह सिद्ध करना चाहता है कि उसके पूर्व या तो कुछ था नहीं, और यदि कुछ था तो वह असभ्य था। उसका प्रत्येक चिह्न नष्ट कर दिया जाना चाहिए।"
"पर भारत में कौन-सा नया धर्म जन्मा है?" उसने पूछा।
"यहाँ?" मैंने कहा, "यहाँ सेकुलर धर्म जन्मा है, जो चौदह-पंद्रह वर्षों से पीछे नहीं जाना चाहता, इसलिए सिद्ध करना चाहता है कि पंद्रह सौ वर्षों से पूर्व इस देश में या तो कुछ था नहीं, और यदि था तो निंदनीय था।"
"पर क्यों? वे क्या इस देश में नहीं जन्मे?"
"जन्मे तो इसी देश में हैं किंतु उनका मस्तिष्क सेकुलरित है।"
"यह तो बहुत आत्मघाती रोग है चाचा जी!" वह बोला, "क्या हम लोग उनके लिए कुछ भी नहीं कर सकते?"
"ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं और वह हम कर रहे हैं।"


1 फरवरी 2005

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