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हास्य व्यंग्य

दुनिया ऑनलाइन
शशिकांत सिंह शशि


आज आप बैठे-बैठे एक क्लिक में सबकुछ आनॅलाइन प्राप्त कर सकते हैं। आप आँखें बंद करके गुगल पर टाईप कर दें। गुगल का सर्च इंजिन खुद संसार के किसी भी कोने से आपकी मनपसंद वस्तु ढूँढ कर लायेगा। आप चाहें तो गुगल महोदय आपके गाँव की हवा और माटी भी मुफ्त में ऑनलाइन उपलब्ध करा देंगे।

आपको हम रिश्तों के सेल की ओर ले चलते हैं। पहले तो केवल वर-वधू के लिए ही रिश्ते चाहने वाले थे। अब तो हर प्रकार के रिश्तें ऑनलाइन मिल जाया करते हैं। कई बार लोगों को माँ की जरूरत पड़ जाती है। विवाह जैसे अवसरों पर तो आज भी माँ की जरूरत पड़ती है। दुनिया एकदम से तो सुधर नहीं जायेगी। फार्म संख्या दस भर दीजिये। आपको आपकी पसंद के अनुसार माँ ऑन लाइन मिल जायेगी। बूढ़ी माँ तो किसी को चाहिए नहीं। उसकी दवा-दारू का खर्च। दिन-रात की ऊँह-ऊँह और चिख-चिख। आपकी अपनी माँ यदि अनपढ़ है तो गुगल पर पढ़ी-लिखी माँ सर्च कीजिये मिल जायेगी।

यदि आपकी माँ देखने में मॉड नहीं है और आपका उठना बैठना बड़े लोगों में है तो शर्माने की जरूरत नहीं। आप गुगल पर स्मार्ट माँ टाइप कीजिये, अनेक ऑपशन आ जायेंगे। शादी-ब्याह के मौसम में डिमांड अधिक रहती है। आज भी जो अपने को भारतीय कहलाना गर्व की बात मानते हैं, उन्हें माँ-बाप की जरूरत पड़ जाती है। कभी-कभी ऐसी परिस्थिति भी बनती है कि आपके हैसियत के अनुसार माँ-बाप नहीं हैं। तो आनॅलाइन बुकिंग करके भी माँ-बाप जुटा लिए जाते हैं। जरूरत खत्म होने के बाद पेमैंट करके उनसे मुक्ति मिल जाती है।

असली वाले माँ-बाप की तरह उनको भी हटाया जा सकता है। बूढ़े माँ-बाप के लिए भी एक तरह से जॉब आपशन ही है। आप को यदि बाप चाहिए तो वह भी मिल जायेगा। ऑन लाइन बाप भी मिल जाते हैं। मान लीजिये बच्चे का दाखिला कराना है। बाप के हस्ताक्षर चाहिए। हो सकता है कि ऑरिजनल बाप का ऑरिजनल माँ से तलाक हो गया हो। तो बेचारा बच्चा क्या करेगा? आनॅलाहन बाप की सुविधा है। निर्भर करता है कि कितनी देर तक के लिए बाप चाहिए। बच्चे का सालाना जलसा है। उसमे पैरेंटस की उपस्थिति चाहिए तो आनलाइन सुविधाएँ ली जा सकती हैं। जीवन भर के लिए तो बाप की जरूरत ही नहीं रहती। कमाऊ बाप मिलना मुश्किल है।

माँ की भी लगभग यही शर्त्त है। दूध पिलाने वाली माँ तो नहीं मिलेगी। अलबत्ता, विवाह में आशीर्वाद देने के लिए, बहू को मुँह दिखाई देने के लिए, बहू पूजन आदि के लिए माँ की जरूरत हो तो उसे ऑन लाइन लिया जा सकता है। शादी-ब्याह के सीजन में तो आनॅलाइन बुकिंग होती ही रहती है। जीना मुश्किल हो जाता है। वैसे सच पुछिये तो अपने बेटे-बहू को तो उनकी जरूरत होती नहीं है। रिटायर होने के बाद तो अब पेंशन भी नहीं है जिसके लिए कोई अपने बाप को अपने घर में रखे। बेकारी में अधेड़ लोगों को यह धंधा भी रास आ रहा है। कम से कम तीन चार महीने व्यस्त रहते हैं। अब यह उन्नीसवीं सदी का भारत तो है नहीं कि आदमी अपने पीछे एक कुनबा ढ़ोता चले।

और तो और, साहब हो सकता है कि मरने के बाद किसी को रिश्तेदार की जरूरत पड़ जाये। मान लीजिये कि कोई लावारिस मर गया तो समाज को कहाँ इतनी फुर्सत है कि कंधा देने के लिए आगे आयेगा। नाते-रिश्तेदार तो अब बचे नहीं। पास-पड़ोसी रह गये हैं। वह भी नाम के। किसी को यह नहीं पता कि पड़ोस में कौन रह रहा है? लावारिस मरने पर बहुत खतरे हैं। नगरपालिका वाले तो ले ही जायेंगे। साथ ही पुलिस भी मरने के बाद चीड़-फाड़ करेगी। पोस्टमार्टम घर में तो इतनी बदबू आती है कि पुछिए मत। खैर मरने के बाद बदबू का खतरा तो नहीं है लेकिन आदमी सुकून से अंतिम संस्कार को प्राप्त हो सके इसके लिए ऑनलाइन बुकिंग चौबीस घंटे खुली रहती है। कोई भी चाहे तो अपना पूरा नाम-पता लिखाकर, अपने परिचय पत्र की एक कॉपी लगाकर ऑनलाइन भेज सकता है। यहाँ थोड़ी दिक्कत है।

ऑनलाइन पेमेंट एडवांस में करना पड़ता है। आदमी यदि चाहे तो अपने पुत्र-पुत्रियों और नाते-रिष्तेदारों के पते दे सकता है। उन्हें बाद में मरने की सूचना दी जा सकती है। यदि वे उचित समझेंगे और उपलब्ध होंगे तो आयेंगे। यदि ऑन लाइन पुत्र चाहिए तो उसकी व्यवस्था भी कर दी जाती है। मुखाग्नि वगैरह तो अब दी नहीं जाती। इलैक्ट्रिक चिताओं में यही खासियत है कि अंदर डाल दीजिये। तुरंत स्वाहा। यदि फिर भी किसी के अंदर दसवीं सदी के संस्कार बचे हैं तो वह पेमेंट करके ऑन लाइन पुत्र की सेवायें ले सकता है। मुखाग्नि या अस्थि-प्रवाह जैसे कार्य वे कर देते हैं। बस पेमेंट एडवांस करना पड़ता है। अपने पुत्र को फुर्सत हो भी सकती है नहीं भी। आदमी मरने के बाद रिस्क क्यों ले? ऑन लाइन पुत्र पर आप भरोसा कर सकते हैं। पेमेंट यदि आप एडवांस कर रहे हैं तो वे निश्चित तौर पर अपनी सेवायें देंगे।

अरे, नहीं साहब! यही बस नहीं है। आपको आनॅलाइन तीज-त्योहारों की भी सुविधा भी मिलती है। आप चाहें तो दीवाली और दसहरा ऑन लाइन भी मना सकते हैं। हम आपके गाँव की दीवाली तो नहीं दिखा सकते। यु एस ए और जापान की दीवाली दिखा सकते हैं। भारत के लोग जहाँ भी रहते हैं अपने त्योहार धूमधाम से मनाते हैं। अपने देश को छोड़कर दुनिया के हर कोने में रहना चाहते हैं और जहाँ भी रहते हैं अपने देश को नहीं भूलते। होली में तो रंगों की ऐसी धूम रहती है होनोलूलू में कि पुछिए मत। बिल्कुल ई-होली होती है। बच्चे ऑनलाइन रंग लगाते हैं। मोबाइल में आप एप्स यदि डाल कर बैठे हैं तो कीचड़ आदि का भी आनंद ले सकते हैं।

पर बड़ी बात यह है कि यदि आपको होली खेलने के लिए साथी की तलाश है और वह नहीं मिल रहा/रही है तो आप ऑन लाइन बुकिंग कर दीजिये। आपके बताये गये पते पर आपका पार्टनर पहुँच जायेगा/जायेगी। पेमेंट आप डिलिवरी के बाद भी कर सकते हैं। पार्टनर जो आयेगा उसे आप कितनी देर तक अपने पास रखना चाहते हैं। उसपर पेमेंट निर्भर करता है। हो सकता है कि आप उसके साथ होली न खेलें तब भी आपको पेमेंट करना पड़ेगा। यदि आपने कोई बदतमीजी की तो उसका भुगतान आपको अलग से करना पड़ सकता है। दीवाली में मिट्टी के दीये पहले बनाये जाते थे। वह तो हम आपको ऑनलाइन भी मुहैया नहीं करा सकते। अब तो साहब यह देह ही माटी की बची है। उसके अलावा तो कुछ है नहीं। यदि आप चाहें तो पिछली सदियों में बनाये गये मिट्टी के दीये ऑनलाइन देख सकते हैं। यदि आप गाँवों की दीवाली देखना चाहें तो हम आपको दिखा सकते हैं। बस हमारे पास गाँव के क्लिीपिंगस अपडेट नहीं हैं।

२७ अक्तूबर २०१४

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