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पिछले सप्ताह

साहित्यिक निबंध में
बृजेशकुमार शुक्ला की कलम से
होली खेलें रघुवीरा

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महानगर की कहानियों में
प्रमोद राय की लघुकथा
कानूनन

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पर्व परिचय में
सत्यवान शर्मा बता रहे हैं
होली के विविध आयाम

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होली के हुड़दंग में
डा रति सक्सेना की चेतावनी
सावधान ब्लॉगिए आ रहे हैं

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साहित्य संगम में
कमला सरूप की नेपाली कहानी
यादों की अनुभूतियां

मैं अब याद कर रही हूं, कैसे शामको तुम मेरे लिए गुरांस के फूलों का गुच्छा ले आए थे और साथ में शुभकामना कार्ड भी। मैं वैसे भी झूम उठी थी और सच कहूं, तुम्हारा दिया हुआ कार्ड व सूखे हुए ही सही वे गुरांस के फूल, अब भी कमरे भर सजाकर रखे हैं मैंने। शायद वो कार्ड व फूल ही आखिरी उपहार थे मेरे लिए तुम्हारे तरफ़ से। दूसरे दिन सवेरे ही हम साथ–साथ घूमने निकल गए थे। शायद वही आखिरी सुबह थी हमारे साथ की। उसके बाद बहुत वर्षों तक हमारी मुलाकात नहीं हुई थी। सवेरे का ओस, हाथ भर गुरांस के फूल और मीठी सी ठंडी हवा के साथ हमने कैसे तीन घंटे लंबा रास्ता पार किया, पता ही नहीं चला था।

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से सूर्यबाला की कहानी
हीरो

उसने बाज़ी मार ली थी। क्योंकि वह हवाई जहाज से पहुंचा था। आसपास के शहरों और कस्बों से अवश्य कई रिश्तेदार ट्रेनों से, बसों से या एकाध अपनी गाड़ी से भी आ चुके थे। ट्रेनों से आने वाले, भारी, दबे, गले से बता रहे थे किस तरह बिना आरक्षण के, भीड़ भरे डिब्बों में ठुंस कर पहुंच पाए वे . . .क्योंकि पहुंचना तो था ही। दूसरों ने बताया कि ख़बर मिलते ही, बस के इंतज़ार में समय न गंवा कर शेयर्ड टैक्सी लेकर आना उन्होंने ज्यादा ठीक समझा। लेकिन उसे कुछ भी कहने या बताने की ज़रूरत नहीं थी। वह, काफ़ी दूर होने के बावजूद हवाई जहाज से पहुंच गया था और पहुंचने के साथ ही, पूरी मुस्तैदी से अंतिम–संस्कार की तैयारियों में शामिल हो गया था।

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हास्य व्यंग्य में
विजय ठाकुर का आलेख
हमारी साहित्य गोष्ठियां
 
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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
ममता से भयभीत बलबीर सिंह 'रंग'

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पर्व परिचय में
कैलाश जैन का आलेख
पहली अप्रैल की कहानी

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फुलवारी में
आविष्कारों की कहानीः पानी के जहाज़
और शिल्पकोना में 
व्यस्त हूं तंग मत करो

!सप्ताह का विचार!
डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का
कर्तव्य होता है।
अज्ञात

 

अनुभूति में

डा जगदीश व्योम,
डा सुरेन्द्र भूटानी
इंद्रकांत शुक्ल, त्रिलोकीनाथ टंडन और शरद आलोक की नई रचनाएं

होली विशेषांक समग्र

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
हो लीस्वदेश राणा
एक पढ़ी–लिखी स्त्री– क्रांति त्रिवेदी
मंजूर अली–उषा वर्मा
थपेड़ा–संजय विद्रोही
उपहार–श्रीनाथ
वेलेंटाइन डे–कमल कुमार
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हास्य व्यंग्य में
कट्टरता–डा नरेन्द्र कोहली
दौरा–डा निशांत कुमार
(उ)ई मेल–रविशंकर श्रीवास्तव
कुते का गला–महेश चंद्र द्विवेदी

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संस्कृति में
प्रभा पंवार का जानकारी भरा लेख
अल्पना क्या है

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उपहार में
होली की शुभकामनाएं जावा आलेख में
रंगों की बौछार

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संस्मरण में
सुरेन्द्रनाथ तिवारी की सरस स्मृतियां
बहुत दिनों बाद देस में

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पर्व परिचय में
महाशिवरात्रि के अवसर पर
कश्मीरी परंपराओं का छान–बीन
शिवरात्रि के अखरोट

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ललित निबंध में
श्यामसुंदर दुबे के शब्दों में
रोको! यह वसंत जाने न पाए

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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