अनुभूति

24. 4. 2005

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
रामेश्वर दयाल काम्बोज 'हिमांशु' का ट्यूशन पुराण

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का पहला भाग
ज़मीने शे'र

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नगरनामा में
वाराणसी का नगर वृतांत
प्रो .य .गो .जोगलेकर की कलम से
कुल्हड़, कसोरा और पुरवा

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आज सिरहाने
गिरिराज किशोर का उपन्यास
पहला गिरमिटिया

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कहानियों में
भारत से मालती जोशी की कहानी
बहुरि अकेला

मैंने बहुत मुश्किल से दरवाज़ा बंद किया। इतने से श्रम से भी मैं हांफ गई थी। देर तक बंद दरवाज़े के सामने वहीं खड़ी रही जहां से मैंने उन्हें जाते हुए देखा था। मुझे लगा, वे मेरे घर से ही नहीं जीवन से भी चले गए हैं। "अलविदा मि .कश्यप" मैंने कहा, "आज से मेरे घर और मेरे मन के, दरवाज़े आपके लिए बंद हो चुके हैं। घर का दरवाज़ा तो शायद कभी मजबूरी में खोलना भी पड़ेगा क्योंकि इस शादी को इतना आसानी से मैं नकार नहीं सकती। इसके लिए मेरे भाइयों ने बहुत सारा श्रम और पैसा खर्च किया है, इसलिए इस शादी को तो मुझे ढोना ही पड़ेगा। पर मेरे मन का दरवाज़ा अब आपके लिए कभी नहीं खुलेगा, कभी नहीं।"

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से विनीता अग्रवाल की कहानी
खाल

परिवार में मेरे साथ मां रहती है। वह मुझे बेहद चाहती है प्राण समान हृदय से लगाकर रखती है। चार दिन पहले की दोपहर मैंने उस मकान को छोड़ दिया। मैं जूठी थाली बिस्तर पर छोड़ कर चला आया था। भोजन के वक्त मेरा जाहिलों सा आचरण प्रदर्शित करते साग–भात के अधखाए कण बिस्तर की चादर पर बिखरे होंगे। उस वक्त मां ने मुझको रोका नहीं था पर अब भीगी आंखों से वह उन्हें समेट रही होगी। वह उन्हें इकठ्ठा कर एक संकरे मुंह और गहरे पेंदे वाले एक मर्तबान में भरेगी और बाहर 'पोर्टिको' में बारजे पर रख देगी। फिर पड़ौसियों से कहती फिरेगी, "अगर झूठन पक्षी नहीं खाते हैं तो सुधाकर वापस आ जाएगा . . ." 

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हास्य व्यंग्य में
महेशचंद्र द्विवेदी का आलेख
कौन किसका बाप

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का दूसरा भाग
काफ़ियों के दोष व निराकरण

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प्रौद्योगिकी में
विजय प्रभाकर कुंबले द्वारा जानकारी
मशीनी अनुवाद

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप का नया लेख
रोबॉट्स और अंतरिक्ष की खोज
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सप्ताह का विचार
जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। 
 —अज्ञात

 

अनुभूति में

देश विदेश से
नए पुराने कवियों
की
ढेर सी नयी
रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
वापसी–सुरेशचंद्र शुक्ल
हीरो–सूर्यबाला
यादों की अनुभूतियांकमला सरूप
हो ली–स्वदेश राणा
एक पढ़ी–लिखी स्त्री– क्रांति त्रिवेदी
मंजूर अली–उषा वर्मा
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हास्य व्यंग्य में
हमारी साहित्य गोष्ठियां–विजय ठाकुर
कानूनन–प्रमोद राय
कट्टरता–डा नरेन्द्र कोहली
दौरा–डा निशांत कुमार
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चित्र लेख में
आकाश की छवियों पर आधारित लेख
दिन की अगवानी

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साक्षात्कार में
साहित्यिक यात्रा व लोखन प्रक्रिया :
कथाकार तेजेन्द्र शर्मा
की मधुलता अरोरा से बातचीत
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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
गड्डी जांदी है छलांगा मारती
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रसोईघर में
शाकाहारी मुगलई के अंतर्गत नया व्यंजन
शामी कवाब
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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
ममता से भयभीत बलबीर सिंह 'रंग'
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पर्व परिचय में
कैलाश जैन का आलेख
पहली अप्रैल की कहानी
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फुलवारी में
आविष्कारों की कहानीः पानी के जहाज़
और शिल्पकोना में व्यस्त हूं तंग मत करो

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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