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अनुभूति

9.12. 2005 

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
शोषण के विरूद्ध

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साहित्यिक निबंध में
पद्मप्रिया का शोधपूर्ण आलेख
अनूदित साहित्य एवं पठनीयता

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फुलवारी में
शिल्पकोना में बनाएं लिफाफे से
हिरन हथपुतली
साथ ही देश देशांतर में जाने
आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड
के बारे में

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पर्व परिचय में
राजेन्द्र तिवारी का आलेख
सिरमौर की बूढ़ी दिवाली

°

कहानियों में
यू के से उषा वर्मा की कहानी

रिश्ते

फ़ोन उठा कर हेलो कहा, दो चार वाक्य के बाद ही उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उन्होंने फ़ोन पटक कर रख दिया और ऐनी से बोले, "सुन लिया अपने बेटे के बारे में, अब वह कभी भी इस घर में नहीं आ सकता। उस पापी की यही सज़ा है, एड्स पॉज़िटिव ब्लड–टेस्ट। मैं उसकी शकल भी नहीं देखना चाहता। इस घर में कोई भी उस नीच से नहीं मिलेगा।" कर्नल साहब के शब्दकोष में आदेश ही आदेश थे। कहीं समझौता नहीं, रौबदाब की दुनियां के मालिक कर्नल साहब ने अपना फ़ैसला सुना दिया। स्कॉटलैंड के रहले वाले कर्नल साहब के दिल में जमी हुई बर्फ़ बसंत ऋतु में भी नहीं पिघलती थी। उनका वजूद कर्तव्य की दुनियां में खर–पतवार की तरह फैल कर सब कुछ शुष्क बना गया था।
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इस सप्ताह

उपन्यास अंश में
सुषमा जगमोहन के उपन्यास
'ज़िंदग़ी ईमेल' से एक अंश

संदेसे आते हैं

तनु ने मेल में क्या लिखा था, उसे कुछ समझ ही नहीं आया। नौकरी वाले किस्से के सिवा। उसके लिए वही अंतिम सत्य हो गया था। पापा और बाबा से डिस्कस करने की कहती है। बाबा और करण तो कभी चाहते ही नहीं थे कि वे लोग विदेश जाएं। उनके जाने से वह ही क्यों, बाबा और करण भी तो अकेले हो गए हैं। तनु के मां–बाप भी इस बात के खिलाफ़ थे। चार बेटे–बेटियों में एक तनु ही तो दिल्ली में थी। इकलौते साले साहब चेन्नई में बिज़नेस कर रहे हैं। दिल्ली आते हैं तो हवाई दौरे पर, दो–चार दिन के लिए ही, वह भी ज्यादातर बिज़नेस के सिलसिले में। वह कई बार कह चुके मां–बाप से कि चेन्नई साथ चलें लेकिन पहले ससुर जी की नौकरी का हीला–हवाला था, अब वहां मन नहीं लगता।

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हास्य व्यंग्य में
विनय कुमार का आलेख
कुते की आत्मा

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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
सन बयासी की उड़ान
बया–सी

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महानगर की कहानियों में
रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु की रचना
एजेंडा

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रसोईघर में
माइक्रोवेव अवन में तैयार करें
लहसुन पाव
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सप्ताह का विचार
साफ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है। —अज्ञात

 

अनुभूति में

मंजु महिमा,
राजेश कुमार सिंह, अमित कुमार और हेमंत रिछारिया की कविताएं साथ ही
जारी है
हाइकु महोत्सव

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
बहाने से–संजय विद्रोही
मणिया–अमृता प्रीतम
दूसरी दुनिया–निर्मल वर्मा
उसकी दीवाली–पूर्णिमा वर्मन
समुद्र में रेगिस्तान–सुधा अरोड़ा 
विसर्जन–शैल अग्रवाल
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हास्य व्यंग्य में
सावधान बंदर सीख रहे हैं . . .–गुरमीत बेदी
थैंक्यू सॉरी और हाई बाई–रेखा व्यास
दीपक से साक्षात्कार–अनूप कुमार शुक्ल
शूर्पनखा की नाक–गोपाल प्रसाद व्यास
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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव ने खोजा
माउस में छिपा कलाकार
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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप का नया लेख
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और नोबेल प्राइज़
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आज सिरहाने
अभिव्यक्ति में प्रकाशित बारह कहानियों का नेपाली अनुवाद
'ज़िन्दग़ी एक फ़ोटोफ्रेम'
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टिकट संग्रह में
राजेश कुमार सिंह का आलेख
डाक टिकटों में बाल दिवस

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पर्व परिचय में
राजेन्द्र तिवारी का आलेख
हिमांचल का रेणुका जी मेला

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साहित्य संगम में अमृता प्रीतम की एक और कहानी एक जीवी रत्नी एक सपना
संस्मरण में उजबेक लेखिका 
जुल्फिया
का हृदयस्पर्शी रेखाचित्र
इमरोज़ के विषय में 
अमृता की ज़बानी छोटा सच बड़ा सच
इमरोज़ की कलम से अमृता प्रीतम की यादें मुझे फिर मिलेगी अमृता

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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