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कहानियाँ

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है
भारत से ममता कालिया की कहानी-परदेसी


अजब परिवार है हमारा  
तीन भाई-बहन तीन देशों में बसे हैं सब एक दूसरे के लिए तरसते रहते हैं जब हुड़क तेज़ उठती हैं तो एक दूसरे को लम्बे-लम्बे फोन कर लेते हैं
, प्यार-भरे कार्ड भेजते हैं, अगले साल मिलने का वादा करते हैं कुछ दिनों को जी ठहर जाता है

पहले सब इकट्ठे रहते थे लखपत कोट का वह बड़ा मकान भी छोटा पड़ जाता वहीं शादियाँ हुई, वहीं नौकरी लगी बड़े भाई केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुए बहन ट्रेनिंग कॉलेज में प्रशिक्षक नीरद कपूरथला कॉलेज में लेक्चरर हो गया।

भाई अखबारों का गहन अध्ययन करते थे अमरजीत अखबार की तरफ ताकती भी नहीं थी नीरद कॉलेज जाकर कई अखबारों की सुर्खियाँ देख लेता उसकी दिलचस्पी का क्षेत्र साहित्य था।

उन्हीं दिनों भाई को कैनेडा जाने का रास्ता नज़र आया अखबार में वहाँ स्कूलों के लिए दर्जनों पद निकले थे भाई-भाभी ने चार फॉर्म मँगा लिए घर में बड़ा बावेला मचा
बौजी और बीजी ने कहा, "दोनों भाई इकठ्ठे चले जाओगे, हम किसके सहारे जियेंगे?'
भाई ने कहा, "अमरजीत है, पंकज है और आपकी सारी कबीलदारी यही है।"
"बेटों का हाथ लगे बिना तो सरग भी नहीं मिलता," बीजी रोने लगीं।

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