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कहानियाँ  

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से सुकेश साहनी की कहानी—'पेन'


डॉक्टर भास्कर सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि घंटी बजी। बरामदे में जूतों की आहट से ही वे समझ गए कि वार्डबॉय है।
'क्या है?' दरवाजा खोलकर वार्डबॉय पर गुर्राए। आराम में खलल उन्हें बर्दाश्त नहीं था।
'साहब, माफ करें, पर पाँच नंबर ने नाक में दम कर रखा है.।'
'तो?' वे झल्लाए, 'जूनियर डॉक्टर्स मर गए हैं क्या?'
'उसने आपके नाम की रट लगा रखी है।'
'मेरे नाम की?' एक पल के लिए वे चौंक गए, फिर सोचा – मरीज ने उनका नाम कहीं से सुन लिया होगा।
'ज्यादा तंग कर रहा है तो शॉक दे दो।' नींद से उनकी आँखें भरी हुई थीं।
'सा
हब', बूढ़े वार्डबॉय ने हिचकिचाते हुए कहा, 'बहुत कमजोर है, ऐसे में शॉक देना...? वैसे तीन–चार बार कस कर पिट चुका है, इसके बावजूद आपसे मिलने की जिद पकड़े हैं।'

डॉक्टर भास्कर सोच में पड़ गए...कौन हो सकता है? उन्हें ट्रांसफर पर यहाँ आए अभी दो ही दिन हुए हैं...अब तो प्रत्येक मानसिक चिकित्सालय का अपना अलग कार्यक्षेत्र है, ऐसे में किसी दूसरे अस्पताल से मरीज के यहाँ आने की बात भी समझ में न आने वाली है, उन्होंने अपना कैरियर जरूर इसी अस्पताल से शुरू किया था, पर यह बरसों पहले की बात थी, और कुल आठ महीने ही तो इस अस्पताल में रहे थे....

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