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''अच्छी बात है पर ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष ने भी ऐसा ही कहा था. . .ख़ैर, हमें कोशिश करते रहना चाहिए। हमें व्यक्तियों की नहीं अपितु वृक्षों की संख्या में वृद्धि करनी है ताकि योजनाओं का अधिक लाभ प्रति व्यक्ति को मिल सके।''

इसी आशय का वक्तव्य राममोहन जी ने अपने भाषण में दिया था। पालीवाल साब की प्रशासनिक सूझ-बूझ और उनकी योग्यता की सराहना की थी- और यह भी जताया था कि प्रदेश के विकास के लिए वे अच्छा काम कर रहे हैं।
तत्पश्चात वे राममोहन जी को वह जगह दिखाने ले गए- जहाँ बोर्ड का नया बिजली घर बनना प्रस्तावित था। जो लैंड एक्वायर की गई थी, उसमें कुछ छोटे गाँव भी आते थे। गाँववासियों को विस्थापित किया गया था। उन्होंने बताया था, ''सर, आप तो जानते ही हैं, ये लैंड हम कितनी मुश्किल से खाली करवा रहे हैं। पालीटिकल प्रेशर है, कई स्थानीय नेता उठ खड़े हुए हैं।''
''पर हम कॉपेंसेशन दे रहे हैं, इनके लिए दूसरी जगह गाँव बसाएँगे, उन छुटभैया नेताओं से मैं निपट लूँगा।''
''सो तो कर ही रहे हैं पर वास्तविकता में यह काम बड़ा दुश्वार है, फिर भी हम लोग कर रहे हैं।''
''हाँ, भाई जानते ही हो. . .सीएम के अलावा सेंटर से भी लोग इसमें इंटरेस्टेड हैं, यह ज़मीन सोना उगलेगी, यह ज़मीन दरअसल चाहिए तलाची एंड तलाची कंपनी के लाला भूपतराय को, देश के बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट हैं। फॉरेन की किसी कंपनी से बात हुई है, यहाँ केमिकल्स का कारखाना लगाना है, रॉ-मटेरियल है, फिर सेफ है, कहीं थोड़ा पोल्यूशन हो भी गया तो फ़र्क नहीं पड़ेगा।''
''सो तो है सर, पर सुना है कुछ बड़े देश ऐसी चाल चल रहे हैं। जिन कारखानों में प्रदूषण का ज़ोखिम है, उसे अपने देश में न लगाकर विकासशील देशों में लगा रहे हैं। उदारता के साथ ऋण और अनुदान देकर ताकि उनके प्रयोग भी चलते रहें और उनका नुकसान भी न हो, अगर ग़लत हो भी गया तो नुकसान यहाँ के लोगों का होगा।'' पालीवाल गंभीरता से बोले।
''है तो सच बात, पर इतने गहरे षड़यंत्र के प्रति हम क्या कर सकते हैं। हमें तो ऊपर वालों का इशारा समझना है। अगले इलेक्शन के लिए फायनेंसर्स तय करने हैं।''
''किंतु सर, यह तो बिजली घर के लिए खाली करा रहे हैं।''
''खाली तो ख़ैर इसे कराना ही है। सरकारी कारखाने के लिए खाली कराना आसान है। यही तय हुआ था मीटिंग में अभी बिजलीघर के नाम पर खाली करा लो। फिर शायद बिजलीघर की योजना को निरस्त कर दिया जाए या दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाएगा तब लैंड खाली मानकर तलाची को अलॉट कर देंगे। लोगों को यही बताना है कि यहाँ जो भी कारखाना आएगा काम में प्राथमिकता उन्हें ही दी जाएगी। जिनकी ज़मीनें ली गई हैं फिर उत्पादन से पूरे प्रदेश का विकास होगा।''
''ओह! समझा।'' खेल की गंभीरता को समझकर पालीवाल बोले थे और सोच में डूब गए थे।
''यह सब बड़ा गड्डमड्ड है पता नहीं कब होगा? हमारे पीरियड में होगा भी कि नहीं. . .पर फिलहाल तो यही करना है कि ज़मीन खाली करा लो।''
''सो तो लगभग हो गई है, कुछ हिस्सा बचा है उसे सेटल कर रहे हैं साब। यह जगह पावर-हाउस के लिए एकदम आदर्श जगह है। कोयला भी है और पानी भी। राखड़ बहाने के लिए लो-लाइंग क्षेत्र भी! जहाँ से कोयला खोदेंगे, वहीं राख भर देंगे।''
''आप विशेषज्ञ की हैसियत से ठीक बोल रहे हैं मिस्टर पालीवाल. . .लेकिन और भी बहुत-सी चीज़ें हैं, ख़ैर, अब हम चलें।''
''जी बहुत अच्छा।'' कहकर पालीवाल साब ने स्वीकृत में सिर झुकाया था।

राममोहन जी का दौरा ख़तम हुआ। वह शाम उनकी अपनी था। राहत से पूर्ण एवं एकदम निजी पहाड़ पर बने गेस्ट-हाउस में व अच्छा महसूस कर रहे थे। मन में तमाम तूफ़ान उठ रहे थे पर उन पर उन्होंने पूरा नियंत्रण कर रखा था। ख़ानसामा ने लॉन पर कुर्सियाँ लगा दी थीं, वे पैर फैलाकर बैठ गए। बाहर कह दिया गया कि अब वे किसी से नहीं मिलेंगे. . .मिलनेवाला कोई पास नहीं आएगा पर उनके बहुत क़रीब आ रहा था पहाड़ी से लगी झील का विस्तार। दूर किनारे पर पुराना पॉवर-हाउस एक जहाज़ की तरह खड़ा था। चिमनी से निकलते धुएँ पर सवार हो गया था उनका मन, निगाहें भी जैसे धुएँ से बँध गई थीं और घुमड़-घुमड़ कर पैंतरें बदल रही थीं।

खानसामा आइस-बॉक्स रखने आया तो उन्होंने इशारे से उसे पैड और कलम लाने को कहा। धुएँ के साथ घुमड़ते मन में उन्हें कविता की आहट सुनाई देने लगी था। ऐसा उनके साथ अकसर होता है। एक दौरा-सा उठता है- भावों एवं उपमाओं का- और कविता लिखकर उन्हें सुकून मिलता, जैसे प्रसव पीड़ा से औरत को मुक्ति मिल गई हो, कुछ लोग ही जानते थे उनके व्यक्तित्व के इस विरोधाभास को कि वे अच्छे कवि भी हैं. . .कई ने कहा भी था- कहाँ इंजीनियरी और कहाँ कविता. . .क्या काँट्रास्ट है! ऐसा मिलान बहुत रेयर होता है. . .

क्यों, क्या इंजीनियर आदमी नहीं होता, उसमें संवेदनाएँ नहीं होती। सृजन उसका धर्म है जहाँ वह तालमेल बिठाकर परियोजनाएँ बनाता है, वहाँ मानवीय संवेदनाओं की ऊँच-नीच का जोखा भी शब्दों में व्यक्त कर सकता है। वे तर्क देते, लेकिन अंदर ही अंदर अपने व्यक्तित्व के इस अनोखे वैशिष्ट्य से स्वयं भी प्रभावित होते रहते। अन्यतम विशिष्टता का यह सुख उन्हें कॉलेज के उन दिनों से ही मिलने लगा था। जब वे एनुअल-गैदरिंग में तकनीकी बिंबों वाली नई कविताएँ मंच पर सुनाते। कई वर्षों तक कॉलेज मैग्ज़ीन का संपादन भी उन्होंने किया। अपनी कविताओं की दो पुस्तकें भी उन्होंने छपवा ली थीं। इन पुस्तकों ने सरकारी महकमों में भी उनकी काफ़ी मदद की। अनेक मंत्रियों एवं उच्चाधिकारियों को वे मौका देखकर अपनी पुस्तक सप्रेम एवं सादर भेंट करते और 'फेवर' का लाभ प्राप्त कर लेते। उनकी यह प्रतिभा, प्रशासन में भी उनके लिए अनुकूल रही।
पैड और पेन आते ही वे लिखने लगे-
पहाड़ी पर
मेरी तरह
विश्राम करता हुआ विश्राम-गृह,
पत्तों के बीच
झिलमिलाती हुई शाम की धूप
जैसी आँखों की थकान
एक पड़ौसन-झील
उसकी खिड़की टोहता हुआ मन
कहीं क्यारी में
रोमांस के बीज बो गया. . .
लिखते हुए उन्हें सोचते जाना अच्छा लग रहा था। संपूर्ण परिवेश में जैसे वे अपने तनावों को पिघलाकर बिखेर रहे थे। अपनी गाँठें खोल रहे थे। अपने टुकड़े-टुकडे कर रहे थे। कविता के माध्यम से उन्हें इसीलिए लगाव था कि सहज ही संपूर्ण प्रकृति की गंध वे अपने अंदर उतार लेते थे- शराब की तरह सोचते थे। प्रकृति अपने आप में शराब का कितना बड़ा पात्र है- उसमें से कितने ही पेग उठाकर लेते आओ, खाली नहीं होता वह!

अपनी लिखी हुई पंक्तियों को उन्होंने प्यार से देखा- राहत महसूस की- चलो इस टूर की यह एक उपलब्धि हुई. . .इसी तरह सुदूर क्षेत्रों के दौरे में ही उन्हें अपने अंदर झाँकने का समय मिल पाता. . .
एकाएक उनकी दृष्टि जड़ हो गई। 'नमस्ते' शब्द और दृश्य एक साथ सामने आए और एक बारगी वे मंत्र-मुग्ध हो गए।
इससे पहले कि वे युवती के बारे में कुछ सोच पाते, पीछे से चुस्त मर्दाना आवाज़ संपूर्ण विनम्रता के साथ गूँज उठी- ''गुड इवनिंग सर. . .''
वह कश्यप था- जिले का युवा कलेक्टर
''माई वाइफ मृदुला. . .'' वह बोला।
''गुड इवनिंग. . .आइए- वेलकम'' - अनायास सौजन्यता उमड़ पड़ी उनकी वाणी में।
इस वक्त उनके पास कोई नहीं आ सकता था- पर कलेक्टर की बात और है। गेस्ट हाउस के नौकर भी उन्हें जानते हैं। ऐसे अपवादों के वे भली-भाँति अभ्यस्त थे। सामने लॉन चेयर्स पर जोड़ा बैठ गया। आई.ए.एस. वर्ग के लोगों का आभिजात्य उन्हें सदा ही कुरेदता रहा है। सामंती वैशिष्ट्य की लालसा, किंतु ऊपर से जन-सेवक होने का दंभ. . .यानी दोनों ही लाभ। सामंती वैभव भी मिल जाए और लोक सेवक की दयनीयता का श्रेय भी। वे कई युवा कलेक्टरों में उस छुपी हुई झिझक का आभास पा चुके हैं- जो उन्हें उनके समक्ष सौजन्यतापूर्ण व्यवहार के लिए विवश करती है। राज्य प्रशासन में अन्य आई.ए.एस. वर्ग के सचिवों के साथ उनकी तकरार चलती रहती है। कारण सीधा है- मूलतः वे इंजीनियर हैं. . .उठते-उठते अध्यक्ष पद पर आ गए जो अब तक आईएएस वर्ग के अधिकारियों के क़ब्ज़े में था। मुख्य सचिव के तुल्य राज्य के जो पाँच पद हैं उनमें एक विद्युत मंडल के अध्यक्ष का पद है। अपनी उन्नति की एक कुर्सी कम होते देख किसी भी वर्ग को असंतोष हो सकता है। इस पद पर उनकी नियुक्ति का जो विरोध इस वर्ग ने किया था वह उनसे छुपा नहीं है किंतु अपनी अद्भुत क्षमता और व्यवहारिक परिश्रम से उन्होंने मुख्यमंत्री का विश्वास जीत लिया था, और परिणाम सामने था- चूँकि स्टेटस में उनका दर्जा राज्य के मुख्य सचिव के समकक्ष था अतः स्थानीय जिलाधीशों को मजबूरी में उनसे मिलने आना पड़ता था। ऊपर से ओढ़ी गई तमाम तरलता के बावजूद प्रायः सभी में उन्होंने अंदरूनी तौर पर आहत अहम का आभास पाया था। यहाँ हटकर बात यह थी कि कश्यप अपनी पत्नी के साथ आया था। पहले जो भी आए थे- मात्र ड्यूटी की औपचारिकता पूरा करने और मुख्यमंत्री से उनकी निकटता से भयभीत होकर अकेले आए थे।
''सर, यह मृदुला आपसे मिलने के लिए एंक्शियस थी. . .' कश्यप बोला।
''मेरा सौभाग्य, कि इस बुढ़ापे में भी कोई सुंदर युवती मुझमें दिलचस्पी ले सकती है।'' कहकर उन्होंने हँसी की लगाम थोड़ी ढीली की सामनेवालों पर भी असर पड़ा, वे सहज हो गए।

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16 जून 2007

दूसरा और अंतिम भाग अगले अंक में

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