मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से रवींद्र बत्रा की कहानी— 'गुड्डा'


वह एक कपड़े के अन्दर रूई भर कर बनाया गया गुड्डा है। एक गरीब और बूढ़ी औरत जो सालों से शहर से दूर अकेली रहती है, उसने इसे बनाया था। वह बूढ़ी औरत इस तरह के गुड्डे बना कर शहर के गिफ़्ट स्टोर पर बेचती है और उससे अपना गुज़ारा करती है। वह अक्सर दुकानदार से शिकायत करती है कि वह ठीक दाम नहीं देता। काफी देर तक अपने पोपले मुँह से बोलती हुई वह दुकानदार से मोल-भाव करती है और धमकी देती है कि वह इन शानदार गुड्डों को किसी दूसरे स्टोर वाले को बेच देगी। दुकानदार कुछ दाम बढ़ा देता है। लेकिन बूढ़ी संतुष्ट नहीं होती। लेकिन अंतत: हर बार वह गुड्डों को इसी दुकानदार को ही बेच देती है।

बेचने से पहले बड़ी हसरत से वह हर गुड्डे को निहारती, जिसे उसने बड़े अपनत्व और प्यार से बनाया था और फिर यह सोच कर कि ये गुड्डे किसी बच्चे के खेलने के ही काम आने वाले हैं, मन को समझाती और निश्चिंतता के साथ गुड्डा बेच कर चली जाती। घर पहुँच कर पानी पीकर मन को शांत करती। सूनी आँखों से अपने कमरे के उस कोने को देखती, जहाँ बैठ कर उसने वह गुड्डा बनाया था और चुपचाप बैठ कर अस्तव्यस्त पड़े कपड़े, रूई, धागे, सूई आदि को व्यवस्थित करती। चाय आदि पी कर कुछ देर अपने घर के पीछे के मैदान में टहलने निकल पड़ती। टहलते हुए भी उसके मन में गुड्डे की कल्पना ही रहती।

पृष्ठ : . . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।