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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से राजश्री की कहानी— 'नीचे वाली गली'


बूँदाबाँदी फिर से चालू होते ही प्रियंवदा और एरिक ने अपनी अपनी छतरियाँ खोल लीं। वे छतरियों को दोनों हाथों से मज‍बूती से पकड़े गिट्टी डली आधी कच्ची पक्की पहाड़ी पगडंडी पर चल रहे थे। पगडंडी घाटी में कहीं जाती हुई लगती थी। बारिश तेज़ हो चुकी थी। पगडंडी प्राचीन से लगने वाले मंदिर पर खत्म हो गई। दोनों दौड़ते हुए मंदिर के अहाते में घुस गए।

यह घाटी कुमारी पर्वतमाला के बीच थी, जिसका कुमारी पर्वत तीन नदियों का उद्गम स्थल था। नदियों के गिरने की आवाज़ मंदिर में नगाड़ों की भाँति आ रही थी। पहाड़ों से घिरी घाटी में घनघोर मानसून, चारों ओर गहरे हरे अंधेरे का साम्राज्य, चारों ओर से पानी के गिरने की आवाज़, रह-रह कर कडकती बिजली की जगमगाहट, सब कुछ मदिर के खुले प्रांगण में रहस्यमयी संसार की सृष्टि कर रहे थे। प्रकृति के रौद्र सम्मोहन ने दोनों को कुछ क्षणों के लिए निशब्द, निराकार कर दिया।

एरिक बोला, ''उन्मुक्त और स्वतंत्र। जहाँ कोई अपने आपको या तो बंधनमुक्त पा सकता है या भयभीत। प्रकृति की चरमता। यहाँ की हर चीज़ फोटोजेनिक है। क्या तुम यहाँ पर अपनी पेंटिंग के लिए कुछ नही ढूँढ सकती? प्रकृति का ऐश्वर्य।''

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