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एक श्रोता बोल पड़ा, ''दूसरों की चिंता मत कीजिए श्रीमान! वे कहकर हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? मुझे याद है कि इसी बोट क्लब पर समय-समय पर पहले भी पशुओं के सम्मेलन हुए हैं और उनमें बहुतों को सफलता मिली है। कितने सांड, घोडे, खच्चर, लोमड़ियाँ और गधे अपना शक्ति-प्रदर्शन कर पार्लियामेंट की कुर्सियों पर जा बैठे। लेकिन इस बार मुझे कुछ खतरे दिखाई पड़ते हैं। बकरियों की एकता हमें भारी पड़ सकती है। आप केवल एक बकरी को बुलाएँ।''

आवाज़ उठी, ''कौन-सी बकरी बुलाई जाए? शहरी या देहाती? पहले यह तय पर लीजिए।'' मंच के एक समझदार ने हाथ उठाकर श्रोताओं को शांत किया, ''आप लोग ज़्यादा विवाद मत उठाएँ। प्रस्ताव को शांतिपूर्वक पास होने दें। शांति-स्थापना के लिए पुलिस वाले हमारे चारों तरफ़ खड़े हैं। आपकी बात मानकर हम एक बकरी को ही लाने के लिए अपने स्वयंसेवकों को भेजते हैं।''
दो स्वयंसेवक दौड़े हुए गए और एक बकरी को पकड़ लाए। बकरी भौंचक थी, किंतु धीरज वाली थी।

सैंकड़ों लोग उसको देखने के लिए खड़े हो गए। बकरी के स्वास्थ्य और शक्ल-सूरत पर चर्चा होने लगी। थोड़ी देर में लोग बैठ गए और बकरी खड़ी रही। सवाल उठा कि बकरी को कहाँ बैठाया जाए। सुझाव आया कि उसे मंच पर बैठाइए। तत्काल खंडन भी आया कि आज तक बकरी जब मंच पर नहीं बैठी, तो इस मौके पर बैठाना देश में विरोध को भड़काना होगा और यह कितना भद्दा लगता है कि साफ़-सुथरे जनसेवकों के बीच में घास-पात चरने वाली बकरी बैठे। समानता का यह अर्थ नहीं है कि हम बड़ों का लिहाज ही न करें।

किसी का विचार था- 'कमाल है भाई। बकरियों की समस्या पर आप लोग बात करेंगे और अपने बीच उसे बैठाएँगे नहीं?
गुड़ खाएँ और गुलगुलले से परहेज़?'
नेताओं में थोड़ी खुसुर-पुसुर हुई। तय हुआ कि बकरी को मंच पर अभी बैठा देते हैं। फ़ोटो के बाद हटा देंगे।
एक नेता ने शंका की, ''सोच लीजिए एक बार और। आज बकरी अगर मंच पर बैठ गई तो कल वह सिर पर बैठने लगेगी। इंडिया गेट तक पहुँचने वाली बकरी इतनी मूर्ख नहीं हो सकती।''

अभी बहस चल ही रही थी कि बकरी मंच पर आकर खड़ी हो गई। एक नेता से उसे माला पहना दी। एक ने नारा लगा दिया, ''बकरी रानी ज़िंदाबाद!'' बकरी हँस रही थी। बहुत दिनों से मनुष्यों के बीच रहते-रहते वह भी मनुष्यों की वाणी समझने औऱ बोलने लगी थी।
कुछ लोगों के भाषण हुए। इस बात पर बड़ा अफ़सोस ज़ाहिर किया गया कि बोट-क्लब पर इतने प्रदर्शन-आंदोलन चलते रहते हैं, किंतु बकरियों को प्रदर्शन से आज तक वंचित क्यों रखा गया? उन्हें भी जीने और अपना हक माँगने की स्वतंत्रता है।

अचानक बकरी कान फड़फड़ाकर खड़ी हो गई। ढाँय से उसने छींक मारी। फिर अपनी भोली आँखों से जनसागर की ओर दार्शनिक की तरह देखने लगी।
''क्या बात है कुमारी?''
''देखिए, मुझे कुमारी मत कहिए। मैं सात बच्चे जन चुकी हूँ।'' बकरी बोली।
''लेकिन तुम्हारी देह-दशा तो अच्छी है।''
''उससे क्या, अपनी मालकिन के साथ एकाध बार ब्यूटी पार्लर भी जा चुकी हूँ। फिर भी आपलोग मेरी देह-दशा पर अपना समय मत गँवाइए। मैं निवेदन करना चाहती हूँ कि मेरी जाति के साथ कम अन्याय नहीं हुआ है। हरी घास के मैदान में मैं जब भी गई हूँ, बड़े जानवरों ने अपने सींग और लात से मारकर मुझे भगा दिया है और खुद सारा मैदान चर गए हैं। हमारी जाति पर तरस खाने के पहले आप लोग उनके सींग-लात को तोड़िए। दवा देने से पहले बीमारी को पहचानिए।''

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