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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
श्यामसखा श्याम की कहानी— आखिरी बयान


मैंने जिन्दगी भर किसी से कुछ नहीं कहा, आज कह रहा हूँ, अगर आप सुन लें तो मेहरबानी होगी। वैसे भी मैं आज नौकरी से रिटायर हुआ हूँ, पूरे साठ साल का होकर। साठ साल तक जो आदमी पहले माँ-बाप की, फिर बीवी-बच्चों, सहकर्मियों की सुनता आ रहा हो, उसे इतना हक तो है कि वह आज कुछ कह सके। फिर आपने खुद ही मुझे दो शब्द कहने के लिए, मेरे विदाई समारोह के मंच पर बुलाया है। मेरे खयाल से जिन्दगी सचमुच एक दुर्घटना है और किसी के लिए हो ना हो कम से कम मेरे लिए तो जरूर है।

दोस्तों! हालाँकि मैं नहीं जानता, आप में से कितने मेरे दोस्त हैं शायद कोई भी न हो। लेकिन आज सबने अपने भाषण में मुझे अपना दोस्त और एक अच्छा आदमी बतलाया है, जो शायद वक्त की नजाकत थी, वक्त का तकाजा था, क्योंकि हम हर दिवंगत को अच्छा ही कहते हैं यही रिवाज है और मैं चन्द मिनट पहले इस दफ्तर, इस विभाग से दिवंगत हो गया हूँ, कर दिया गया हूँ।

दोस्तो मैं अपने माँ-बाप की दसवीं संतान था और वह भी एक गरीब स्कूल मास्टर की दसवीं संतान। आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि दसवीं संतान तक आते-आते माँ-बाप के प्यार में, क्या- कुछ बचा होगा, लेकिन इसमें मेरा या मेरे माता-पिता का कोई दोष, मैं नहीं मानता।

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