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''पहले हमें बताओ, इसे कैसे खेलते हैं?'' मेम साहब पूछा।
''मैं बतलाऊँ?'' सुकना बोला।
''नहीं तुम ही बताओ रघु।''
''जी यह तो जो गड्ढा है ना। इसे गुच्चक कहते है।''
''क्या?'' वह हँस पड़ीं। रघु ने मेमसा'ब के साफ सुथरे चमकते दाँतों की ओर देखा। उसे अपनी माँ पायरिया खाये दाँत और काले मसूढ़े याद हो आए।
''जी इसे गुच्चक कहते हैं और गुच्चक से थोड़ी दूर 'लेन' होती है। वहाँ से खड़े होकर गोलियाँ गुच्चक की तरफ लुढ़काते हैं। जो गोली गुच्चक में आ गई वह फेंकने वाले को।''
''और जो नहीं आई।''
''उन बची हुई गोलियों में से छाँटकर दूसरा खेलने वाला अपनी मन-मरजी की गोली बताता है। उस पर दाँव लेने वाला खिलाड़ी गोली से निशाना लगाता है। यदि निशाना लग गया तो सारी गोली उसकी।''
''नहीं लगा तो?''
''दूसरा खिलाड़ी दाँव लेता है और...''
''अच्छा, अच्छा।'' मेम साब हाथ उठा कर बोलीं, ''सब समझ में आ गया। बताओ पहला नम्बर किसका हैं?''
''आप लीजिए।'' रघु को यह कहते हुए गर्व की अनुभूति हुई।
''कित्ती गोली देनी होंगी मुझे?''
''यह दाँव दो-दो का है। आप दो गोली निकालिए। मैं भी दो देता हूँ।''

मेम साब ने अपनी पैन्ट की जेब से दो गोली निकाल कर हाथ में ले ली और रघु से दो गोली लेने के लिए हथेली पसार दी। गोरा रुई-सा मुलायम हाथ, तराशे हुए नेलपालिश रंगे नाखून। रघु ने गौर से हथेली को देखा और गोलियाँ हथेली पर रखते-रखते चुपके से हथेली छू ली।
चारों गोलियाँ हाथ में लेकर वह खनकाती हुई बोलीं, ''कहाँ से फैंकूँ, लाईन कहाँ है?''
''यहाँ से, यह रही लाईन,'' सुकना दौड़ कर आया और लाईन चमका गया।

मेम साब ने गोलियाँ लुढ़काईं। एक भी गोली गुच्चक में नहीं आई। बोलीं, ''अरे एक भी नहीं आई यह तो। अब क्या करूँ?''
''निशाना लगाइए।''
''किसी पर भी?''
''नहीं जिस पर मैं कहूँ, उस पर लगाइये, वो नीली पर।''
मेम सा'ब ने निशाना लगाया। आश्चर्य, निशाना सही लगा। मेम साब के मुख से अनायास निकाला, ''अरे वाह। सब मेरी हो गईं।''
हाँ-हाँ कहता सुकना दौड़ कर आया और गोलियाँ समेटकर मेम साब को दे गया।
''अच्छा सबके पहले चांस तुम लो रघु।'' मेम साब ने कहा।
''नहीं-नहीं, आप ही चलिए।'' रघु जल्दी से बोला।
''इस बार कितनी गोली देनी होंगी।''
''आप बताइए।''
''चार-चार।''
''नहीं, तीन-तीन।''
''क्यों?''
''मेरे पास इतनी ही बची हैं। एक निशाना लगाने को है बस।''
''चलो तीन-तीन ही सही।''
खुशी-खुशी मेम साब ने गोलियाँ सँभालीं। लुढ़कायीं। दो गोलियाँ गुच्चक में आ गईं।
''लगाइए निशाना लाल पर।'' रघु ने कहा। निशाना नहीं लगा। अब रघु का दाँव आया। रघु सारे बच्चों में इस खेल का माहिर माना जाता था। बड़े विश्वास के साथ गोली लुढ़ाकाई पर गुच्चक में एक भी न आई। निराशा हुई।
''अच्छा ग्रीन पर निशाना लगाओ, वो सबसे आगे वाली।'' मेम सा''ब ने बताया। रघु ने निशाना लगाया। बाल-बाल बच गया।

मेम साब का दाँव आया। फिर गोली लुढ़काई। इस बार तीन गोलियाँ आईं गुच्चक में। केवल एक गोली बची थी। यदि निशाना भी लग गया तो खलास। रघु ने सोचा, मेम साब कोई जादू-टोना जानती है। या फिर नुक्कड़ वाले नीम के नीचे वाले मकबरे की मिट्टी माथे से लगा कर आयी है। तभी तो जीतती जा रही हैं। रघु को याद था। जब उसका छोटा भईया बीमार था। डाक्टर ने आपरेशन बताया था। आपरेशन के लिए पैसा चाहिए था, वह था नहीं। तब माँ ने उसी मकबरे से मिट्टी लाकर तो लगाई थी भईया को। और वह अच्छा भी हो गया था। पर मेम सा'ब क्यों जाने लगीं वहाँ? रघु ने फिर सोचा, बड़े लोग थोड़े जाते हैं वहाँ। रघु सोचा रहा था और मेम साब बची हुई गोली पर निशाना लगाने का उपक्रम कर रही थीं। तभी कार के हॉर्न की आवाज सुनाई दी। मेम सा'ब ठिठक कर रुक गईं। रघु ने देखा मेम साब का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा था। वह उस ओर देख रही थीं जिधर से एक सजीला युवक माली के साथ चला आ रहा था।
युवक ने समीप आकर कहा, ''हाय।''
मेम साब भी प्रत्युत्तर में बोलीं, ''हाय।''
''यहाँ क्या कर रही हो'', युवक ने तनिक आश्चर्य से पूछा।
''कुछ नहीं, तुम ने इतनी देर कर दी। मैं पड़ी-पड़ी बोर हो रही थी। सोचा कुछ थ्रिल ही हो जाए। एण्ड यू नो, आई वन दिस मच स्टफ।'' मेम साब ने जेब में भरी गोलियाँ बजाकर दिखाईं।
''तुम तो हमेशा जीतती ही हो। रेस-कोर्स में भी, फ्लश में भी और...''
''शी...'' मेम साब ने युवक के मुख पर हाथ रख दिया, ''एक सेकण्ड चुप रहो। बस इसे और जीत लूँ। फिर चलते हैं।''
''ओ डोन्ट बी सिली।'' युवक मेम साब का हाथ खींचता हुआ बोला, ''शो मिस हो जाएगा। टाईम तो देखो।''
''ओ रियली'', मेम साब ने घड़ी पर नजर डाली, ''मैं तो भूल ही गई थी। आओ चलो चलें।''

और मेम साब युवक की बाँहों में बाँहें डालकर चल दीं। जाते-जाते सहसा उन्हें कुछ याद आया। वह रुकीं। जेब की गोलियाँ हवा में उछालते हुए रघु से बोलीं, ''थैंक्यू लड़के।''
''जी मुझे रघु कहते है,'' रघु के मुख से जब तक यह निकल पाता मेम साब युवक के साथ काफी दूर जा चुकी थीं।

रघु ने मुड़कर साथी बच्चों पर नजर डाली। वह सब जमीन पर बिखरी गोलियों के लिए चील-कौवों की तरह आपस में छीना-झपटी कर रहे थे। उसके मुख से बस इतना ही निकला, ''नदीदे कहीं के।''

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२९ मार्च २०१०

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