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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से बलराम अग्रवाल की कहानी— अनुगामिनी


पिछले दिनों अनायास ही नितिन को जब शारीरिक थकावट महसूस होने लगी, भूख कम और प्यास अधिक लगने लगी तो नीलू चिन्तित हो उठी। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। पत्नी अगर ठेठ भारतीय हो तो उसे अपने स्वास्थ्य की कम, पति और बच्चों के स्वास्थ्य की चिन्ता अधिक सताती है। वह तुरन्त किसी डॉक्टर से सलाह लेने के लिए रोज-रोज उसे टोकने लगी।

नितिन के कार्यालय का हाल यह है कि एक सुपरवाइजर और चार लिपिक—कुल पाँच कर्मचारियों के सैंक्शन्ड स्टाफ के कामकाज को पिछले चार साल से लिपिक-स्तरीय केवल दो आदमी सम्हाल रहे हैं—एक वह और दूसरे सुरेशजी। उन दोनों में से किसी एक का भी छुट्टी लेना तो दूर, काम में ढील बरतना भी तनाव को न्यौता दे डालने-जैसा होता है। न टाल पाने वाले अवसरों पर ही वे छुट्टी ले पाते हैं, वह भी दोनों में से कोई एक।

नीलू ने जब देखा कि उसके कहने का नितिन पर कोई असर नहीं हो रहा है तो रविवार की एक सुबह उसने स्वयं ही उसे डॉक्टर के सामने जा उपस्थित किया और सारी परेशानियाँ बता दीं।
“डायबिटिक हैं क्या?” डॉक्टर ने नितिन से पूछा।
“मालूम नहीं।” उसने कहा।

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