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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से शुभ्रा उपाध्याय की कहानी— बारिश


आसमान काले-काले बादलों से भर गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ मन जैसे नई ऊर्जा से उमग गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम बिल्कुल बदल गया।
जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो।

कितनी देर से उसकी खीझ अपने से होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी, किन्तु यहाँ तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को सहलाती धीरे-धीरे बह रही थीं...
बादलों की नमीं आँखों के सहारे मन की गहराइयों में उतर रही थी...
और उसका मन बूँद-बूँद भीगता क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील होता जा रहा था।

उसने एक लम्बी साँस ली। आँखें बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर ऊपर देखा। बादल न जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे इतने बेफिक्र भी न थे कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न पूछ सकें। उसने स्पष्ट देखा- दो मेघदूतों को आपस में कहते-सुनते और रुककर बतियाते। ये मेघदूत अपने-अपने आत्मीयों को अपना संदेशा ऐसे ही भेजा करते हैं... शायद! इनके लिए तो कोई कालिदास महाकाव्य की रचना नहीं करते।
पता नहीं ये या कहते सुनते होंगे? या बोलते होंगे एक दूसरे को?

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