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कहानियाँ  

आप्रवासी भारतीय लेखकों की कहानियों के संग्रह वतन से दूर में
त्रिनिडाड से
प्रेम जनमेजय की कहानी— 'क्षितिज पर उड़ती स्कार्लेट आयबिस'।


श्रुति ने काटने को आते अकेले घर की चुप्पी पर ताला जड़ा। गॅरेज में खड़ी अपनी मन पसन्द कार, होंडा एकार्ड का दरवाजा खोला, उसे बैक गेयर में डाला। रिमोट से मेन गेट खोला और कार को धीरे–धीरे सड़क पर सरका दिया। लगा जैसे उससे किसी ने कहा हो, "श्रुति कम से कम गाड़ी बैक तो धीरे से किया करो, इतनी तेजी ठीक नहीं," पर उसने ध्यान नहीं दिया हो और फुर्र करती चिड़िया–सी वो ये उड़ वो उड़।

पर आज तो उसने कार बहुत ही धीमे बैक की है... फिर ये आवाज... .उसका अपना अतीत... जो उसे अपने जाल में बांधे भविष्य के सपने बुनने नहीं दे रहा है। अपने आज के, वर्तमान के, जो उसका सुंदर सपनों वाला कल था, उसने कितने सपने बुने थे और आज अतीत क्यों बार–बार उसे बुला रहा है। हमारे अतीत और भविष्य में क्या कोई अंतर नहीं है। दोनों हमारा कल बने हमारे इर्द गिर्द बदले चेहरों के साथ एक ही स्वर से क्यों पुकारते हैं?

कार अब तक वेस्ट मोरिंग की समृद्ध गलियों में, स्वचलित–सी, जैसे अपनी राह ढूंढ़ती, ' पित्जा हट' की ओर बिना देखे हाई–वे पर आ गई। अगर यशु इस कार में बैठा होता और वो मरॉकस बीच की ओर कार ड्राइव कर रही होती तो क्या ये सम्भव था कि कार खामोश अनदेखा किए चली जाती।

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