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"मैं दोपहर को कुछ सामान लाने के लिए घर से निकला, पहले मैं बैंक गया वहाँ से सौ पाउंड निकाले। फिर वहाँ से मैं किताब की दुकान में गया और दो किताबें ख़रीदीं, फिर मैं दूसरे स्टोर में गया, दूकान के बाहर ही मैंने लिस्ट निकाली और अंदर जाकर सामान ख़रीदने लगा। यह सब करते-करते मुझे काफ़ी देर लग गई। फिर मैं काउंटर के पास गया और अपना वॉलेट देखने लगा, जब बार-बार खोजने पर भी नहीं मिला तो मैंने सोचा जब बाहर लिस्ट निकाल रहा था उसी वक्त बाहर ही गिर गया होगा। घबराहट में मैं बाहर थैले के साथ ही भागा। उसमें काफ़ी रुपए भी थे, लेकिन जैसे ही मैं बाहर आया एक लड़की ने मेरा हाथ पकड़ लिया,
"आप जैसे एशियन हम सब को बदनाम करते हैं।"
"इसके पहले कि मैं अपनी सफ़ाई में कुछ कहता, उसने मुझे सिक्योरिटी गार्ड के हवाले कर दिया। मैंने कहा भी कि आप मुझे मेरा पर्स तो देख लेने दीजिए लेकिन उसने मेरी कोई बात नहीं सुनी और बोला जो कुछ कहना है पुलिस स्टेशन चल कर कहना। और फिर यहाँ लाकर बंद कर दिया। प्रेस्टो के थैले में से पाँच छ: पाउंड के सामान, दो किताबें जो मैंने सेकेंड हैंड किताब की दुकान से ख़रीदी थी जो एकदम नई लगती थी। पुलिस को यकीन था कि ये सारी चीज़ें मैंने चुराई हैं। मेरे बार-बार कहने पर भी कोई मेरी बात मानने या सुनने को तैयार न था। मैंने सोचा कि आपका नाम बता कर आपको बुला लूँ, मैं आपको किसी तरह की परेशानी में नहीं डालना चाहता था, पर आप ही बताइए मैं क्या करता।"

मैंने उन्हें थोड़ा धीरज बँधाया और कहा, "आप परेशान न हों, देखिए क्या हो सकता है, इस देश में हम काले हैं यही हमारा सब से बड़ा अपराध है। आपने चोरी की या नहीं की इसका सबूत ही क्या है? सामान आपके थैले में से निकला। रसीद आपके पास थी नहीं। अब सुबह सबसे पहला काम यह करना है कि एक अच्छा वकील करना है। अब रात काफ़ी हो गई है, आप यहीं सो जाइए।"
ऐसा कहते हुए मैंने उन्हें बगल वाला कमरा दिखा दिया।
मैं भी सोने चला गया, पर क्या मैं एक मिनट भी सो सका। मैं सोचता रहा कि सुबह होते ही वकील के पास जाना ही ठीक रहेगा। पर जो कुछ मंजू़र अली कह रहे है उस आधार पर तो केस में कोई दम नहीं है। सारी रात करवटें बदलता रहा, मन में सोचता चोरी का केस है, ज़मानत भी ले ली है शायद इसमें न पड़ता तो अच्छा रहता। फिर मुझे अपना समय याद आया, मकान के लिए कितनी मुसीबतें उठानी पड़ी थीं। मकानों के इश्तहार निकलते थे लेकिन हमें देखते ही मकान मालिक कह देता कि ख़ाली नहीं है और दरवाज़ा बंद कर लेता।

एक बार तो मेरा एक अंग्रेज़ मित्र उसी मकान मालिक के पास दूसरे दिन गया और पूछा क्या मकान खाली है उसे फ़ौरन जवाब मिला हाँ और उसने सब बात पक्की कर ली, मुझसे बोला,
"तुम चाहो तो रेस रिलेशन्सऐक्ट के तहत मुकदमा कर सकते हो, मैं गवाह बनूँगा।" मैं नया-नया आया था किसी परेशानी में नहीं पड़ना चाहता था। मैंने कहा, "नहीं कहीं और देखूँगा।"
बाद में मुझे एक मित्र के यहाँ एक कमरा मिल गया। आज हम कितने अपने में सिमट गए हैं कि छोटी-छोटी बात में भी किसी की मदद के लिए आगे नहीं आना चाहते, फिर मेरा मन तर्क करता लेकिन यह तो चोरी का मामला है तो क्या तुमने भी यह मान लिया कि वह सब चोरी का माल है, और मंजू़र अली ने चोरी की है, जुर्म किया है। फिर तुमने ज़मानत क्यों ली, वकील करने की क्या ज़रूरत है, वह अपना जुर्म मान लें और सज़ा भोगें या जुर्माना दें। तुम्हें क्या है इसी तर्क-वितर्क में पड़ा रहा, सुबह आँख लग गई। नींद खुली तो नौ बज रहे थे, सारा बदन टूट रहा था। अंगड़ाई लेता हुआ अपने मन को समझा रहा था कि उठूँ और किसी वकील का पता करूँ। जैसे तैसे उठा और शॉवर के नीचे खड़ा हो गया, गर्म पानी ने धीरे-धीरे शरीर के दर्द को हल्का किया, मन भी ताज़ा हो रहा था। और मैं सारा दिन का प्रोग्राम बनाने लगा।

फिर मैंने चाय बनाई, सीरियल, कुछ अंडे वगैरह लेकर नाश्ते के लिए मंजू़र अली को बुलाया और अपनी डायरी देखने लगा, देखा आज की डेट में एक बड़ी ही ज़रूरी मीटिंग है। मैं बड़े ही धर्मसंकट में पड़ गया अब क्या करूँ। मैंने मंजू़र अली को अपनी विवशता बताई, और कहा कि वे यहीं रहें, मैं मीटिंग जल्दी ही ख़तम कर के फिर उनके बारे में कैसे क्या करना है इस बारे में सोचूँगा। यद्यपि मैं बिलकुल नहीं चाहता था कि वह मेरे घर में अकेले रहें, कहीं कुछ ऐसा वैसा काम न कर बैठें कि मैं और मुसीबत में पड़ जाऊँ, मैंने कहा भी कि यदि आप चाहें तो मैं आपके किसी मित्र को बुला दूँ पर वह एकाएक घबरा से गए बोले,
"नहीं नहीं, खुदा के लिए आप किसी को न बुलाएँ मीटिंग ख़तम कर वापस आने पर जो ठीक समझिएगा, करिएगा।''
"ठीक है" कह कर मैं चला गया।

करीब तीन बजे मैं मीटिंग से वापस आया, देखता हूँ कि मंजू़र अली के हाथ में ईवनिंग प्रेस है, सर झुका है, मेरे आने की आहट से सर उठाया, आँखें गुलाबी, आँसुओं से तर।
मैं समझ गया ख़बर अख़बार में छप गई, मैं उठा और गुस्से में कहा, "ये हरामज़ादे, अख़बार वाले, इनको मसालेदार चटपटी ख़बरें चाहिए किसी की इज़्ज़त उछालने में इन्हें मज़ा आता है। ख़ासकर जब यह काले लोगों का मामला हो।"
मंजू़र अली कहने लगे, "अब मैं किस तरह से किसी को मुँह दिखाऊँगा। अब तो बात पाकिस्तान तक पहुँच जाएगी।"
मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि केस करना है मुँह छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसे लोग अपराध की स्वीकृति समझेंगे। ज़बरदस्ती अपने शरीर को उठाया, चाय का पानी रक्खा, टोस्टर में टोस्ट डाला और सोचने लगा कि कहाँ से शुरू करूँ। किसी तरह इसरार करके चाय पिलाई और मैं उन्हें लेकर मि सिंपसन के पास गया।

मि. सिंपसन ने सारी बातें बड़े ध्यान से सुनी, फिर बोले कोई सबूत तो है नहीं जुर्म मान लेने से जूरी थोड़ी सज़ा देंगे या बहुत मेहरबान हुए तो फ़ाइन करके छोड़ देंगे। केस खुला, बड़े भारी मन से मैं भी गया और हुआ वही जिसका मुझे डर था। सारा केस सुन कर ज्यूरी ने अपना निर्णय दे दिया। अब क्या हो। थके हारे पिटे से हम घर वापस आ गए।
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा, "अभी और कुछ सोचते हैं," वह सारी उम्मीदें छोड़ चुके थे, उनके मन में एक ऐसी हताशा घर कर चुकी थी जिससे उबरना बड़ा मुश्किल होता है। फिर भी मेरे मन के एक कोने में लड़ाई जारी थी। मेरे मन में एक सवाल बार-बार उठता कि जो किताब मंजू़र अली ने यूनिवर्सिटी की बुकशॉप से ली है उस पर उनका कोई न कोई सिंबल ज़रूर होगा जिससे यह साबित हो सकता है कि वह किताब उन्होंने ख़रीदी हैं, चोरी नहीं की है। मैं यूनिवर्सिटी की बुकशाप में गया, उनसे पूछा कि इस नाम की एक किताब मुझे चाहिए, किताब मिल गई, मैं लेकर घर चला आया। किताब में एक विशेष निशान पड़ा था लेकिन जब तक केस दुबारा न खुले और कोर्ट में यह निशान न दिखाया जाए कुछ नहीं हो सकता।
घर आकर मंजू़र अली से मैंने कहा, "मेरा मन केस खुलवाने का फिर से है। वह एकदम घबरा गए, बोले, "नहीं नहीं, अब कुछ नहीं हो सकता।"

हताशा में उन्होंने दोनों हाथ मेरे सामने फैला दिए, "बस अब तो इसी शर्म में मुझे अपनी जिंद़गी काटनी है। मैंने कहा, "मैं आपकी तकलीफ़ समझता हूँ। लेकिन मेरा मन कहता है कि जब यहाँ तक आए हैं तो थोड़ा और चलें, गिर पड़े तो भी यह अफ़सोस तो नहीं रहेगा कि रास्ता छोड़ दिया आख़िर तक चले नहीं।"

मैं अपने मित्र मि. विलियम्स के पास गया। मि. विलियम्स अच्छे आदमी हैं और मेरे तमाम दुख सुख के साथी भी। उनसे मैंने सारी बातें बताई। जब मैं इग्लैंड आया था, उस समय मि. विलियम्स मेरी समस्याओं से खुद भी जूझते और मुझे सहारा भी देते। मैं सोच रहा था कि शायद कोई उपाय निकल ही आए। बातचीत करते-करते हम बाहर निकल आए और घूमते हुए बाज़ार की तरफ़ पहुँचे। मैं रुक गया और बोला इसी दुकान के सामने मंजू़र अली को बदकिस्मती ने घेर लिया था। एकाएक मेरे मन में क्या आया,
मैंने पूछा, "मि. विलियम्स इधर कोई पुलिस स्टेशन है क्या?"
"हाँ हैं तो।"
मैंने कहा, "चलिए ज़रा चल कर पूछ लेते हैं। क्या पता किसी को वॉलेट मिला हो और जमा कर दिया हो।''

हम दोनो वहाँ पहुँचे।
मि. विलियम्स ने पूछा, "यहाँ दस तारीख़ को कोई एक वॉलेट जमा कर गया है?"
उसने रजिस्टर खोला और जवाब दिया, "जी नहीं, दस तारीख़ में तो कोई एंट्री नहीं है।"
मैंने कहा, "आप दो तीन हफ्ते बाद तक देख लीजिए, क्या पता किसी को मिला हो और वह कहीं चला गया हो या भूल गया हो।"
उसने फिर रजिस्टर खोला, तारीखें देखते हुए बोला, "पच्चीस तारीख़ को एक वॉलेट जमा हुआ है। आप बताइए उसमें क्या-क्या है।"
अब मि. विलियम्स और मैं एक दूसरे का मुँह देखने लगे। मैंने कहा, "मेरे दोस्त का है, वह आएँगे और ले जाएँगे।" मैं मि. विलियम्स के साथ घर आया और मंजू़र अली को साथ लेकर वापस पुलिस स्टेशन गया। मंजू़र अली ने बताया कि वॉलेट में करीब अस्सी पाउंड हैं, कुछ रसीदें हैं और उनकी बेटी की फ़ोटो है जिसपर अंग्रेज़ी में उसका नाम बानो अली लिखा है। वॉलेट आँखों के सामने पड़ा था, हमारे चेहरे पर कितने रंग आ जा रहे थे। मायूसी की जगह उल्लास, बेबसी की जगह शक्ति और इस सबके ऊपर सत्य की जीत।

पुलिस मैन बोला, "सर, सामान सब ठीक से देख लीजिए।"
मि. विलियम्स ने भी कहा, "आप के पैसे सब ठीक है न।"
मंजू़र अली ने कहा, "सब से बड़ी चीज़ वह रसीद भी है जो मुझे किताब ख़रीदने पर मिली थी।" हम अपनी खुशी को सम्हालते घर वापस हो गए।
मैंने मि. विलियम्स से कहा अब वह बोले, "चलिए मि. सिंपसन के पास चलते हैं।" हम मि. सिंपसन के पास गए और उनसे कहा कि हम केस फिर से खुलवाना चाहते हैं। मि. सिंपसन को अच्छा नहीं लगा।
मैंने कहा, "मि.सिंपसन आप अपने दिल पर हाथ रख कर कहिए कि आपने इस केस में मेहनत से काम किया था या फ़ीस लेकर सबसे आसान तरीक़ा बता दिया कि अपनी ग़लती मान लो, बिना अपराध किए ही कबूल कर लो।"
मि. सिंपसन बोले, "जी हाँ, किया था, मेहनत से किया था लेकिन केस बिलकुल ही कमज़ोर था। पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ा था, दुकानदारों ने भी गवाही दी कि किताबें चोरी की थीं। केस खोलने से कोई फ़ायदा नहीं होगा।"
मैंने कहा, "फ़ायदा होगा क्यों कि अब मंजू़र अली के पास इस बात का सबूत है कि उन्होंने किताबें चोरी नहीं की थीं। और उसी के साथ यह भी साबित हो जाएगा कि प्रेस्टो से जो सामान उन्होंने लिया था उसका पेमेंट करने से पहले ही उनका वॉलेट सचमुच दुकान के बाहर गिर गया था। न उन्होंने चोरी ही की थी न झूठ ही बोला था।"

मि. विलियम्स ने कहा, "मि. सिंपसन केस दुबारा खोलने की एप्लीकेशन दे दीजिए।" वहाँ से हम तीनों तीन तरफ़ चले गए। उस दिन मैं सारी रात सोता रहा, सुबह कब हुई मुझे कुछ नहीं मालूम।

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१ मार्च २००५

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