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हफ़्ते भर बाद मैं मंगल को फ्रीडा के घर पहुँची। उसे अपना परिचय दिया और कहा, ''आप मेरे साथ शर्ली के यहाँ चलिए।'' फ्रीडा कुछ असंतुष्ट-सी लगीं। बोलीं, ''मैंने तो कहा था शर्ली से कि मैं आ जाऊँगी फिर क्यों आपको बेवजह तकलीफ़ दी।'' फिर मैंने सुना दूसरे कमरे में किसी से बोली, ''शर्ली हमेशा महान बनने की कोशिश करती है, इतना दिखावा है।'' उधर से क्या प्रतिक्रिया हुई मुझे मालूम नहीं। ख़ैर फ्रीडा के परिवार के साथ मै शर्ली के घर पहुँची। शर्ली ने बड़े ही उत्साह से हमारा स्वागत किया। अभी हम बैठे ही थे कि दरवाज़े से शर्ली को कुछ दिखा और वह जल्दी से झपट कर उठीं और बाहर आ गईं।

कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, मामला क्या है यह देखने के लिए मैं भी बाहर गार्डन में निकल आई। देखा शर्ली एक चिड़िया के बच्चे को जीवनदान देने के प्रयास में व्यस्त हैं। शायद अधमरा-सा वह बच्चा बिल्ली के घातक पंजों से गिर गया था। और बड़ी ही करुण आवाज़ में चीं-चीं कर रहा था। कभी चोंच आसमान की तरफ़ उठा कर खोलता, फिर पस्त हो कर गिर जाता, चोट लगी ज़रूर थी। शर्ली ने अपनी बेटी से रूई तथा थोड़ा-सा दूध लाने को कहा और स्वयं उसकी सेवा में लग गईं। उसे हथेली पर उठा कर रख लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगीं। फिर रूई का गुदगुदा बिस्तर बना कर उस पर लिटा दिया। उस नन्हीं-सी जान को क्या पता कि उसे कितना सुख अनायास ही मिल रहा है। तीन चार बूँद पानी भी उसकी चोंच खोल कर डाल दिया, उसमें सचमुच जान आ गई। वह पंख फड़फड़ाने लगा। यह सब देख कर मैं स्तब्ध रह गई। महावीर और गौतम के देश से तो यह सब ग़ायब होता जा रहा है और यहाँ। शर्ली ने माफ़ी माँगते हुए कहा, ''अब आज तो बेकिंग का काम नहीं हो सकेगा, मुझे इसकी देख भाल करनी होगी, अगर मैं इसकी देखभाल न करूँ तो मैं कभी अपने को माफ़ न कर सकूँगी।''  शर्ली की आवाज़ में अफ़सोस का पुट था। फ्रीडा ने कहा, ''नहीं, मैं बच्चों को रास्ते से फ़िश ऐंड चिप्स खिला दूँगी।'' मुझसे रहा न गया और मेरे मुँह से निकल गया, ''अरे आप तो कमाल करती हैं। कौन इतना करता है एक चिड़िया के बच्चे के लिए।''

फिर हम लोग बाहर निकल ही रहे थे कि देखा कि चिड़िया का भाग्यशाली बच्चा पंख फड़फड़ा रहा है और फिर वह उड़ गया। उसे नया जीवन मिला। मैं फ्रीडा और उसके बच्चों को उनके घर छोड़ कर वापस आ गई।
दूसरे दिन शर्ली का फ़ोन आया, ''अंजू माफ़ करना पर अभी मैं बहुत व्यस्त हो गई हूँ, तुम तो जानती हो मैंने बकरी पाली है। ताज़ा साफ़ शुद्ध दूध मिलता है। अब एक बकरी को बच्चे होने वाले हैं, प्रार्थना करो कि बिली गोट न हो,
''क्या मतलब तुम्हारा,'' मैंने पूछा, ''मैं ठीक से समझी नहीं।''
शर्ली बोलीं, ''बकरी तो दूध देती है, पर बिली गोट तो. . .'' कह कर रुक गईं। फिर बातें होने लगीं भारत की, शर्ली कटिबद्ध थीं यह बताने के लिए कि भारत की ग़रीबी दूर करने के लिए गाँव की औरतों को साइकिल चलाने का प्रशिक्षण देना चाहिए। उन्हें मधुमक्खी पालना और शहद का व्यापार करना चाहिए। चूल्हे में लकड़ी नहीं जलानी चाहिए और भी बहुत-सी बातें कि भारत में मिडिल क्लास की औरतें कुछ नही करतीं केवल दिखावे में लगी रहती हैं, नौकरों के बिना एक दिन काम नहीं चलता वग़ैरह-वग़ैरह। फ़ोन पर उनकी बातें सुनते–सुनते काफ़ी वक्त हो गया और मुझे याद आया कि किसी से मिलने जाना है। मैंने क्षमा माँगते हुए फ़ोन रख दिया।

आज छुट्टी का दिन था, मैंने पनीर की सब्ज़ी बनाई थी, सोचा थोड़ी शर्ली को दे आऊँ। फ़ोन किया पर किसी ने उठाया नहीं। मैंने सोचा एक बार उसके घर का चक्कर लगा ही लेती हूँ। यदि नहीं होगी तो सब्ज़ी उसके घर पर ही बाहर रखने का इरादा कर गाड़ी बाहर निकाली। एक स्टील के डिब्बे में पनीर रख कर गाड़ी में बैठ गई। कुछ दुविधा थी, फिर भी गाड़ी स्टार्ट की। अभी मैं शर्ली के घर पहुँची थी कि बाहर से ही अजीब-सी आवाज़ आती सुनाई दी। मैं अंदर जानेवाली थी कि शर्ली बाहर निकली उनके हाथ में खून से भरा हुआ छुरा था, मुझे देख कर एकदम सकपका गईं। मेरी निगाह उठी, और उनके पीछे हट के बाहर बकरी के बच्चे का सर खून से लथपथ छटपटा रहा था। मेरे हाथ से स्टील का डिब्बा छूट कर झनझनाता हुआ दूर जा गिरा। मेरी आवाज़ फँस गई, हाथ काँपने लगे। शर्ली कई बार बोलीं, ''यह कॉस्ट-इफ़ेक्टिव नहीं था, यह फ़ायदे का सौदा नहीं है।''

''शर्ली, तुमने ऐसा क्यों किया? तुम अहिंसा की पक्षधर!'' मेरी आवाज़ में एक साथ तल्ख़ी थी, कातरता थी। ''पर तुम्हें यह इतना ख़राब क्यों लग रहा है? तुम्हारे यहाँ तो सब मांसाहार करते हैं।'' शर्ली ने अपना बचाव किया। ''हाँ हैं तो पर इस तरह तुरंत जन्मे बच्चे को बिना वजह क्यों तुमने इस तरह निर्दयता से मार दिया? वह ज़िंदा रह सकता था।'' मैंने अपना लचर तर्क दिया। ''हाँ रह तो सकता था, पर उसे खिलाना पड़ता, और वह दूध नहीं देता। फिर शायद तुम्हें नहीं मालूम कि इंग्लैंड में बकरे का मांस नहीं खाते। वह फ़ायदे का सौदा नहीं, मैं क्या कर सकती हूँ।'' शर्ली की आवाज़ में एक अकड़ थी या लाचारी मैं नहीं जानती, लेकिन चेहरे पर पश्चाताप या दुःख की छाया भी नहीं थी। "फ़ायदे का सौदा नहीं", शब्द नगाड़े की तरह मेरे कानों में बज रहा था। शर्ली कुछ झेंपती-सी बोलीं, ''आओ अंदर बैठो-अब सब काम हो गया।'' मैं अपने को सम्हालते हुए उलटे पैर आकर गाड़ी में बैठ गई।

टिप्पणी
इंग्लैंड में बकरी-बकरे का मांस नहीं खाया जाता। अतः बकरी पैदा होने पर लोग खुश होते हैं पर बिलीगोट बकरा होने पर उसे मार देते हैं। क्यों कि उसको पालने का कोई आर्थिक लाभ नहीं।

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9 सितंबर 2007

 
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