मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बेबी सिटिंग के लिए कोई भी नहीं मिल पाता है तो मम्मी रात में हमें बिस्तर में सुलाकर, घर के पिछले दरवाज़े से चुपचाप बाहर निकल जाती हैं और सुबह हमारे उठने से पहले घर आ जाती हैं।

आमतौर पर सुबह-सुबह मम्मी बेहद थकी होती हैं। कई बार वह अपने ग्राहकों के साथ इतनी शराब पी लेती हैं कि उन्हें भयंकर सिरदर्द होता है। ऐसे में अनीता सुबह झटपट तैयार होकर रेबेका-रीता को दूध के साथ 'वीटाबिक्स' नाश्ते में देकर खुद तैयार होने लगती है। रेबेका-सीता बिस्कुट खाते हुए मम्मी के उठने तक टीवी पर सुबह आने वाले बच्चों के कार्यक्रम देखती रहती हैं। अनीता कार्नफ्लेक्स खाते-खाते मुझे आवाज़ें लगाती रहती है। जब अनीता तंग आकर अकेले ही स्कूल जाने की धमकी देती है तब मैं सीढ़ियाँ फलांगता  हुआ डफल कोट के बटन लगाता नीचे आता हूँ। अनीता जानती है कि सुबह-सुबह मुझे भूख नहीं लगती है। वह मुझे धमकाती हुई फलों की टोकरी में से एक सेब मेरे कंधे पर लटके बैग में डालते हुए मुझे तेज़ी से खींचती हुई स्कूल के लिए भगाती है। हम अक्सर दौड़ते हुए स्कूल जाते हैं। हमें मालूम है कि अगर हम तीन दिन तक लगातार देर से स्कूल पहुँचेंगे तो चौथे दिन मम्मी की स्कूल में पेशी हो जाएगी, जो मम्मी को बिल्कुल नहीं पसंद है। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद भी मम्मी को कई बार हम सबके लिए बड़ी जिल्लतें भुगतनी पड़ती हैं।

अनीता, मुझसे सिर्फ़ एक साल बड़ी, मेरी बहन, बेहद समझदार हैं। स्कूल में जब कभी हमारे घरेलू मामलों के बारे में पूछ-ताछ होती है तो मम्मी को तमाम झंझटों से बचाने के लिए वह ढेर सारे बहाने बना लेती है। मैं तो बस उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहता हूँ। टीचर मिस बेनसन और मिस ऑस्बोर्न को तो वह खूब अच्छी तरह पटा लेती है। पड़ोसियों को छोड़कर अनीता की सबसे अच्छी पटती है। हमारे पड़ोसी अच्छे लोग नहीं हैं। वे हमें देखते ही हमारी मम्मी पर व्यंग्य करते हुए हमें सुना-सुनाकर गंदी-गंदी बातें करने लगते हैं।

कल रात फिर मम्मी ने हमें जल्दी ही ऊपर सोने के लिए भेज दिया। उस समय शाम के सात बजे थे। कोई पंद्रह मिनट बाद बाथरूम में टब भरने की आवाज़ आई। शायद मम्मी नहा रही होंगी। थोड़ी ही देर बाद सीढ़ियों के चरमराने की आवाज़ से मुझे लगा कि मम्मी नीचे गई हैं। रेबेका-रीता सो चुकी थीं। मुझे भी नींद आ रही थी। पर अनीता के दबे पाँव नीचे जाने की आवाज़ ने मुझे उत्सुक कर दिया था। जब अनीता वापस ऊपर आई तो मैं बंक-बेड में बैठा इनेड ब्लाइटन का लिखा जासूसी उपन्यास 'फेमस फाइव' पढ़ रहा था। मुझे किताब पढ़ते देख, अनीता मुस्कराई, फिर मेरे पास आकर फुसफुसाते हुए बोली, 'सुन! मनू अभी मैं नीचे गई थी, मम्मी बाहर जाने वाली हैं। वह सफ़ेद जैजी मिनी स्कर्ट और लाल टैंक टॉप में बहुत खूबसूरत लग रही थी। मुझे सीढ़ियों के पास चुपचाप खड़ा देख बोलीं, 'क्या बात है? तुझे नींद नहीं आ रही है क्या?''
''मालूम,'' उसने शरारत से आँखें मटकाते हुए मुस्कुराकर कहा, ''मुझे पता था कि मम्मी बाहर जा रही हैं पर फिर भी मैंने ढिठाई से उनसे पूछा, ''क्या आप बाहर जा रही हैं?'' मम्मी ने मुझे बहलाने के लिए भौंहें उठाकर होठों पर आई मुस्कराहट को छुपाते हुए कहा, ''नहीं तो!''

अनीता ने एड़ियों पर उचककर मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा, ''मुझे पता था मम्मी मुझे बहका रही हैं पर मैं भी ढीठ हूँ न, मैंने कहा, ''मम्मी, मुझे आपसे लिपटने का मन कर रहा है। मुझे अपनी बाहों में भरकर प्यार करिए ना।'' मम्मी के बदन से उठती परफ्यूम की खुशबू से मेरा मन उनसे लिपटने को मचल उठा।''
''अच्छा चल, आजा नटखट लड़की।'' कहते हुए उन्होंने हाथ से पकड़ी लिपस्टिक ड्रेसर पर रखते हुए मुझे बाँहों में भरकर कहा, ''आ, आजा मेरी बिटिया, इसके पहले कि मैं लिपस्टिक लगाऊँ, आ तुझे जी भरकर प्यार दे दूँ और सुन! मैं आज रात जल्दी ही लौट आऊँगी। कल तू नौ बरस की हो जाएगी न! आज रात मैं तेरे जन्मदिन के लिए ढेरों पैसे कमाऊँगी। तुम लोग अपने कमरे से बाहर मत निकलना, अच्छा।'' कहते हुए मम्मी ने प्यार का बोसा मेरे होठों पर देकर, मुझे ऊपर भेज दिया। मम्मी के खूबसूरत साफ़-सुथरे ताज़ा नहाए ठंडे बदन से बेहद प्यारी साबुन और परफ्यूम की खुशबू निकल रही थी और पता, वह आज बेहद खूबसूरत लग रही थीं।''

''सच'' कहते हुए मैंने अनीता के गालों को चूमा तो उसमें से मुझे मम के परफ्यूम और साबुन की मिली-जुली खुशबू आई। अब तक मुझे नींद आने लगी थी। मैंने उनींदी आँखों से अनीता को देखा, वह मम्मी जैसी ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी। वही काली आँखें, वही सीधे लंबे बाल, नही तना हुआ गर्वीला बदन!

उस रात जब मैं गहरी नींद में था, अनीता ने मुझे तेज़ी से झिंझोडते हुए जगाया।
''सुन मनू मम्मी अभी तक घर नहीं आई हैं।'' अनीता मेरे कानों में फुसफुसाई। तभी अचानक रेबेका और रीता दोनों नींद में चिहुंककर रोने लगीं। अनीता ने उनके मुँह में चुसनी डाल कर उन्हें थपका।
''क्या?'' दहशत से आँख फाड़ते हुए, मैंने दीवार-घड़ी देखी। सुबह के साढ़े पाँच बज रहे थे। मम्मी ढाई-तीन बजे तक हर हाल में घर आ जाती है।
''तूने नीचे लिविंग रूम और टॉयलेट में तो देखा अनी?'' मैंने घबराकर अनीता से पूछा।
''मैं सारा घर छान चुकी हूँ मनू।''
''अब हम क्या करेंगे?'' मेरे बदन का पोर-पोर सहम उठा। मैं रुआँसा हो गया। ऐसा पहली बार हुआ है कि मेरी आँख खुली हो और मम्मी घर में न हों और अनीता घबराई हुई हो।

रेबेका और रीता अब तक चुप होकर झपकी लेने लगी थीं।

मुझे तसल्ली देते हुए अनीता मेरे कानों में फुसफुसाई 'रेबेका-रीता अभी कम से कम दो घंटे और सोएँगी। हम बाहर चलकर मम्मी को खोजते हैं।' मुझे याद आया बहुत पहले अनीता ने एक बार मुझे बताया था कि एक रात मम्मी पिछले दरवाज़े के पास सीढ़ियों पर नशे में धुत पड़ी हुई थीं उनके बदन पर जगह-जगह चोट के निशान थे। वह उन्हें सहारा देकर अंदर लाई थी। देर-सबेर अनीता मुझे सारी बातें बता देती हैं। मैं अनीता की बताई बातें बहुत ध्यान से सुनता हूँ। यद्यपि उसकी बताई सारी बातें न तो मुझे समझ आती हैं ना ही याद रहती हैं।

मैंने अनीता के निर्देश पर नीचे से लाकर दो पैकेट बिस्कुट, रेबेका-रीता के कुछ प्रिय खिलौने और उनकी दूध की बोतल बंक-बेड से लगे मेज़ पर रखते हुए उसके दूसरे आदेश का इंतज़ार करने लगा।
एक नज़र रेबेका-रीता पर डाल, अनीता ने अपने पजामें के ऊपर ही जींस चढ़ा ली। उसे देखकर मैंने भी अपने पजामें के ऊपर जींस चढ़ाकर डफल-कोट के बटन पूरी तरह से बंद कर जूतों के तस्में बाँधे।

अनीता मेरी आइडियल है इसलिए अनीता जो भी कहती है मैं वही करता हूँ। उसके पास मेरी हर समस्या का कोई न कोई हल ज़रूर होता है। मुझे उससे बड़ी आश्वस्ति मिलती है। पर इस समय हम दोनों दहशतजद थे। अनीता ने अपने काँपते होठों को मुँह के अंदर दबा रखा था। मेरे गले में गुठली फँसी हुई थी। मैं बार-बार अनीता के चेहरे की ओर दिलासे के लिए देख रहा था पर उसके चेहरे के साथ-साथ सारे घर में भयानक खामोशी लोट रही थी।

मैंने लैंडिंग में जाकर पंजों पर उचक, खिड़की से घर के पिछवाड़े के बगीचे और 'एलीवे' को देखा। दोनों ही सुनसान पड़े थे। मम्मी का कहीं कोई पता नहीं था। थोड़ी देर पहले बारिश हो चुकी थी। पेड़ों के पत्तों से पानी चू रहा था। झाड़ियों और घास पर लटकी पानी की बूँदें बिजली की मद्धम रोशनी में रेबेका-रीटा के आँखों से टपके आँसुओं जैसी लग रही थीं। जगह-जगह पानी के चहबच्चे चमक रहे थे। पेड़ों के नीचे घना अंधेरा था।

रेबेका और रीता गहरी नींद में थीं। उन पर एक नज़र डाल, हम दबे पाँव सीढ़ियों से नीचे उतरे। रसोई घर वैसा ही बिखरा-छितरा जूठे खाने के बर्तनी के साथ पड़ा हुआ था जैसा कल रात मम्मी ने छोड़ा था। यों मम्मी चाहे कितनी भी थकी हों, घर में पैसों की चाहे कितनी भी कमी हो, पर रात को बाहर जाने से पहले वह हमारे लिए कुछ ना कुछ अच्छा ज़रूर पकाती हैं। कल रात मम्मी ने हमारे लिए पोर्क सॉसेज, फिश-फिंगर और बीन्स बनाए थे। सॉसेज, फिश-फिंगर और मम्मी के सिगरेट की मिली-जुली सुहानी गंध अभी भी रसोई और लिविंगरूम में तैर रही थी। मैंने एक लंबी साँस भरी और मन ही मन मम्मी को पुकारा।

पिछवाड़े का दरवाज़ा जो रसोईघर से लगा हुआ था, वह उढ़का हुआ था। मम्मी ज़्यादातर पड़ोसियों की तानेबाज़ी और चुगलियों से बचने के लिए पिछले दरवाज़े से ही बाहर जाती हैं। कल रात भी वह पिछले दरवाज़े से ही पड़ोसियों से छुप-छुपा कर गई होंगी। एक बार पड़ोसी कैरोलाइन ने मम्मी को बाहर जाते देखकर पुलिस को फ़ोन कर दिया कि घर नंबर ६५ में बच्चे अकेले हैं। पुलिस हम सबको अपने साथ पुलिस-चौकी ले ही जाने वाली थी कि मम्मी वापस घर आ गई। बाद में अनीता ने मुझे बताया कि उसने पुलिस-गाड़ी देखते ही मम्मी को मोबाइल पर फोन कर बता दिया था और मम्मी ठीक समय पर पिछवाड़े के दरवाज़े से घर आ गईं।  पड़ोसियों को मुँह की खानी पड़ी।

चारों तरफ़ अंधेरा था। मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। पिछवाड़े का बगीचा, जिसमें हम हर रोज़ खेलते हैं, इस समय अजीब-सा अनजाना और डरावना लग रहा था। आमतौर पर जब हम बगीचे में होते हैं तो हमें पड़ोसियों के घरों से आती टेलीविजन और रेडियो की आवाज़ों के साथ उनके लड़ाई झगड़ों की चीख-पुकार भी सुनाई देती है। इस समय बगीचे में इस तरह का सन्नाटा छाया हुआ था कि ज़मीन पर पड़ती पेड़ों की हिलती छाया भी हमें डरा रही थी। चेरी का वह घना पुराना पेड़ जिस पर हमने ट्री-हाउस बना रखा है, झूलने के लिए गाँठों वाली रस्सी टाँग रखी है, इस समय फी-फाय-फो-फम करने वाले दैत्य-सा भयावह लग रहा था।

अंधेरे में लुकते-छिपते, पड़ोसियों की गिद्ध दृष्टि से बचते हुए हम 'एलिवे' (सर्विस लेन) की दीवार और झाड़ियों से चिपके आगे बढ़ते जा रहे थे। अचानक हमारे चारों तरफ़ घना कुहासा उतर आया। कहीं-कहीं फिसलन भी थी। मेरा मन चाह रहा था कि इस मुसीबत की घड़ी में अनीता मुझसे बात करे, मुझे बताए कि मम्मी हमें कहाँ मिलेंगी। पर अनीता थी कि कुछ बोल ही नहीं रही थी। अंत में मेरा धीरज जवाब दे गया

और मैं सुबकियों के साथ गले से निकलती आवाज़ को घूँटता हुआ रोने लगा। अनीता एक पल रुकी। उसने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डालते हुए कहा, ''रो मत, पगले, मम्मी यहीं कहीं होंगी। हो सकता है वह सुपरमार्केट दूध या सिगरेट लेने गई हों।''
''अनीता, मुझे डर लगा रहा है।'' मैंने उसके हाथों को कस कर पकड़ते हुए कहा, ''मम्मी ठीक तो होगी ना।'' मेरा दिल धक-धक कर रहा था। मैं अपने आपको भरसक संतुलित करते हुए फुसफुसाया। अनीता ने 'मिटन' (बिना उँगलियों वाले ऊनी दस्ताने) के अंदर बंद उँगलियों से मेरे गालों को सहलाते हुए कहा, ''घबरा मत, मैं हूँ न। हम सड़क की ओर चलते हैं मनू। मम्मी बस आती ही होंगी।''

अब तब हम उसे जगह पर पहुँच गए थे जहाँ 'एलिवे' सड़क से मिलती है। कोहरे के कारण हम पाँच-छः फीट से ज़्यादा दूर तक नहीं देख पा रहे थे। मरघिल्ली लैंपपोस्ट की रोशनी में कोई दम नहीं था। हम थोड़ी देर वहीं खड़े हर दिशा में सिर घुमा-घुमाकर मम्मी को तलाशते रहे, फिर हमने बड़ी सावधानी से ग्रीन-क्रास रोड (सड़क पार करने के नियम) के एक-एक आदर्श को ध्यान में रखते जेब्रा क्रॉसिंग से उस चौड़ी सड़क को पार किया, जिस पर दोनों तरफ़ से ट्रैफिक आ-जा रही थी। आती-जाती कारों और ट्रकों की तेज रोशनी में वर्षा के कारण गीली सड़क रह-रह कर चमक उठती।

''मनू, हम यहीं बस स्टॉप के बेंच पर बैठकर मम्मी की प्रतीक्षा करते हैं, वह ज़रूर ही किसी न किसी बस से वापस आएँगी।'' अनीता की आँखों में उतर आई चिंता, चेहरे पर फैली उदासी और आवाज़ में आई कंपकपाहट मुझे अंदर तक तोड़ती चली गई। मैं बेंच पर अनीता से सटकर बैठा, पाँव हिलाता रहा। स्टील की बेंच बर्फ़ की तरह नम और ठंडी थी। बिना मोजे के जूतों में बंधे मेरे पाँव सुन्न हो रहे थे। हम हर पल और अधिक व्याकुल होते जा रहे थे।

तभी सड़क के दूसरे छोर पर लाल रंग की डबल डेकर बस आती दिखी। हमारे व्याकुल मन को भरोसा-सा हुआ। बस की जलती-बुझती बाईं बत्ती संकेत दे रही थी कि बस हमारे स्टॉप पर रुकेगी। बस रुकी। दरवाज़ा खुला पर उसमें से कोई नहीं उतरा... बस ड्राइवर ने ज़रा आगे झुककर पूछा, ''ऐ बच्चों क्या तुम लोग बस में चढ़ रहे हो?''
''नहीं,'' अनीता ने सिर हिलाते हुए कहा, ''हम अपनी मम्मी का इंतज़ार कर रहे हैं।'' ड्राइवर शायद अच्छे मूड में नहीं था। उसने बड़बड़ाते हुए धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर लिया।

अनीता ने मेरी आँखों में आई उदासी को पढ़ते हुए मुझे अपनी बाहों के घेरे में लेते हुए सांत्वना दिया, ''चिंती मत कर मनू, मम्मी अगली बस में जरूर आ रही होंगी।''
... पर बसें आती रहीं और जाती रहीं, गहरे काले आकाश से रोशनी धरती पर उतरने लगी थी। अब तक तकरीबन नौ-दस बसें आ-जा चुकी थीं। मम्मी किसी भी बस से नहीं उतरीं। अचानक अनीता, रेबेका और रीता की ओर से चिंतित होकर बुदबुदाई, ''वे जग गई होंगी और हमें घर में न पाकर रो रही होंगी।'' हम दोनों, दहशतजद, निराश, कांधे झुकाए, चुपचाप घर की ओर चल पड़े।

सड़क पार करते-करते हमें ऐसा अहसास होने लगा कि मम्मी किसी और रास्ते से घर पहुँच गई होंगी और हमें घर में न पाकर परेशान, दरवाज़े पर त्योरी चढ़ाए, हमें फटकारने को तैयार खड़ी होंगी।

अब सुबह आस-पास के तमाम घरों की बत्तियाँ जल गई थीं। लोग रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त इधर-उधर आ-जा रहे थे। हम दोनों ने डफल कोट के हुड (टोपी) से चेहरे को छुपा रखा था। हम नहीं चाहते थे कि कोई पड़ोसी हमें इस लाचार और दयनीय स्थिति में देखकर मम्मी को आवारा और लापरवाह कहे।

हमारे मन की स्थिति अजीब थी। एक तरफ़ हम भयभीत हो रहे थे कि हमें घर में न पाकर मम्मी बहुत गुस्सा कर रही होंगी, दूसरी तरफ़ मात्र मम्मी की उपस्थिति का आभास हमें सुरक्षा प्रदान कर रहा था। तीसरी तरफ़ हमें अपराधबोध हो रहा था कि हमें किसी भी हालत में अपनी नन्हीं बहनों को घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था। वे अभी बच्चियाँ हैं। हम अंदर ही अंदर बेहद डरे, अकेले और असुरक्षित थे।

घर पहुँचते ही अनीता ने मुझसे कहा कि मैं ऊपर बेडरूम और बाथरूम में जाकर ठीक से देखूँ कि मम्मी आ गई हैं। इसी बीच अनीता ने नीचे के सारे कमरे देख डाले। छोटा-सा घर पल भर में हमने इस तरह छान मारा जैसे कि हम अपनी मम्मी को नहीं, उनके चाबी के गुच्छे को खोज रहे हों।

''अब हम क्या करें?'' लंबी साँस लेते हुए मैंने अनीता से पूछा।
''मैं ऊपर जाकर रेबेका और रीता को नीचे लाती हूँ। तुम जल्दी से कपड़े बदलकर मेज़ पर वीटाबिक्स और दूध कटोरे में डालकर तैयार रखो। रेबेका-रीता भूखी होंगी। रेबेका-रीता स्वभाव से खामोश किस्म की बच्चियाँ हैं। उनका मन टी.वी. में खूब रमता है। उन्हें खाने को मिलता रहे तो वे अपनी गंदी नैपी में भी चुपचाप बैठी देखती रहेंगी। स्कूल जाने का समय हो रहा था। ब्रेकफास्ट सीरियल का पहला चम्मच मुँह में रखते हुए मैंने अनीता से पूछा, ''अनीता, आज हम स्कूल तो नहीं जा सकते?''
''पता नहीं! देखती हूँ।'' अनीता परेशान-सी बोली।
''जब तक में रेबेका और रीता को हाई-चेयर में 'स्ट्रैप' करके उन्हें बिस्कुट का पैकेट पकड़ाकर, टी.वी. चालू करती हूँ तब तक तू बाहर गेट से झाँककर देख। शायद मम्मी सड़क के दूसरे छोर पर दिख जाएँ।''

पृष्ठ : . . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।