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"यहाँ खेलना बंद करो, यह पार्किंग की जगह है'। मैंने क्षमा माँगते हुए जानना चाहा कि आखिर वह इतनी परेशान क्यों है। लेकिन कोई जवाब देने की बजाय वह ज़ोर से बोली, “यह पार्किंग है, खेलने की जगह नहीं और अगर तुम्हारे बच्चों ने यहाँ खेलना बंद नहीं किया तो मैं इनकी फोटो लेकर पुलिस को दे दूँगी। समझीं?”
“हाउ रूड”, मेरे मुह से निकला।
"येस आई ऍम रूड, लेकिन अगर किसी कार की टक्कर इन्हें लग गई तो क्या करोगी? उस पर मुकदमा करोगी? मुआवज़ा माँगोगी? मुआवज़ा तो तुम्हें मिल जाएगा पर तुम्हारा बच्चा तुम्हें मिलेगा?" और वो चली गई।

कितनी बुरी थी उफ़, पागल हो गई है शायद। मैं चुप खड़ी रह गई। ज्यादा कुछ कह नहीं सकती थी देश उसका था, अपने देश में रहने का गर्व भी कह सकते हैं। शायद इसीलिए दादी कहती थी की परदेस फिर परदेस ही होता है चाहे सोने की खान ही क्यों न मिले। सच कहती थीं दादी। अपने देश में कोई इतना कह के निकल जाता तो देखती!
मैं बच्चों को लेकर अंदर आगई। उसके शब्द अभी भी तीर से चुभ रहे थे- कोई बच्चे को मार दे तो क्या करोगी मुआवज़ा माँगोगी, उफ़! क्या मुआवज़ा बच्चा वापस दे देगा?
मेरी पड़ोसिन, अपार्टमेंट १०५ में रहने वाली बांग्लादेश की शीबा कहती थी कि यहाँ के लोग बहुत शिष्टाचार वाले होते हैं पुलिस यदि टिकट भी देती है तो बड़े प्यार से हाल चाल पूछ के देती है पर मेरे सामने तो कुछ और ही आया।

कुछ दिनों तक हम बाहर खेलने नहीं गए। आज बच्चों के बहुत कहने पर मैं उनको लेकर लाइब्रेरी जाने के लिए घर से निकली तो सामने वही मिस काटो (ये नाम मैंने ही रखा था) एक बड़ी सी मुस्कराहट के साथ हाथ हिला रही थी। दिल तो मेरा बहुत दुखा था पर मन न होते हुए भी मैंने हाथ हिला दिया।

अभी इस घटना को कुछ दिन ही हुए थे कि उसने हमको अपने घर पार्टी पर बुलाया, शीबा को भी बुलाया था पर हमने सोचा नहीं जाएँगे और हमने अच्छा सा बहाना बना कर मना कर दिया। मना करके बहुत अच्छा लग रहा था, अशांत मन को शान्ति मिली और ऐसा लग रहा था कि मैंने उससे बदला ले लिया। अभी इस बात को एक हफ्ता ही बीता था कि दरवाजे पर दस्तक हुई देखा तो मरियम थी। वह यहाँ के सारे मकानों की देखभाल करती है।
"प्लीज़ आइए।" मैंने उसे अंदर बुलाया।
मरियम ने अन्दर आते ही कहा "तुम को एमी ने अपने घर पर बुलाया था? और तुम और शीबा दोनों ही नहीं गए? ये ठीक नहीं किया वो बहुत दुखी थी।"
मैं तो भरी बैठी थी जो कुछ भी उस दिन हुआ था पूरा विस्तार से मरियम को सुना दिया, “अब आप ही कहिए इस के बाद हम कैसे जाते उसके घर। थोड़ी देर बाद एक ठंडी साँस भर कर मरियम ने कहा, ऐसा नहीं है, एमी बहुत प्यारी लड़की है, उसके लिए ऐसे बेरहम शब्द न सोचो। जीवन ने उसको कुछ खास नहीं दिया है। जो भी सपने उसने देखे उसकी किरचें आज भी चुभती हैं उसकी आँखों में। धूप का एक टुकड़ा भी नहीं आया उसके हिस्से में।

“माँ पिता के एक एक्सीडेंट में गुज़र जाने के बाद किसी तरह बिखरी हुई एमी ने ख़ुद को समेटा ज्यूँ तिनका तिनका बिखरे मकान को कोई फिर से बनाने के लिए समेटता है और जैसे कोई तूफ़ान के बाद बिखरे समान को चुन चुन के उठता है उसने भी अपने अंदर बची हिम्मत को बीनकर उसी से अपना भविष्य बनाने का निश्चय किया और निकल पड़ी पढ़ाई पूरी करने। पढ़ाई में अच्छी होने के कारण पी एच डी खत्म की और यहीं यूनिवर्सिटी में उसको साइंटिस्ट की नौकरी मिल गई।“ मरियम अंग्रेजी में बोलती रही और मैं हिन्दी में समझती रही। एक समय तो ऐसा आया कि मुझे लगा कि वो हिन्दी में ही बोल रही है क्यों कि संवेदनाओं के स्तर पर तो वही बात पहुँचती है जो हिन्दी बनकर दिल में उतरती है।

ख़ैर मरियम ने फिर कहना शुरू किया, “यहाँ नौकरी के बाद एमी को लगने लगा था कि शायद उसके हिस्से में भी कुछ सितारे है जो उसके आँचल के लिए बने हैं। सदा हँसती, पार्टी करती, लगता था, पिछला सब हिसाब बराबर कर लेना चाहती थी। इन्ही दिनों उस के जीवन में प्यार का इन्द्रधनुष अपने सभी रंगों के साथ उतर आया। बसंती हवा का झोंका केसर की सुगंध से लबरेज़ उस को महकाता चला गया। इसी गति में वह भी बहती चली गई अपने आप को रोकने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। ऐसा लगा मानों बहुत दिनों से बंद पंछी को हवा में छोड़ दिया गया हो या एक जुगनू जो मुट्ठी में बंद था आजाद हो पुनः धरती पर तारों की छटा बिखेर रहा हो। इस प्यार के आते ही एमी के चारो ओर फूल ही फूल खिल गए थे वो मदमाती लहराती उन्ही फूलों पर चलती दौडती कभी गुनगुनाती कभी खिलखिलाती। इस प्यार का नाम था ऐडम।

“ऐडम ने अपने और एमी के प्यार को सगाई की अंगूठी में बाँध लिया। प्यार को तरसती एमी को मानो गड़ा खजाना मिल गया। सगाई के ५ महीने बाद ऐडम और एमी की शादी हो गई। मैं गई थी उस शादी में - एमी बहुत सुंदर लग रही थी, सफ़ेद शादी के लिबास में पवित्र परी सी चर्च की सीढ़ियों से उतरते हुए एमी और ऐडम ऐसे लग रहे थे जैसे एक दूजे के लिए ही बने हों। एमी के हाथों में फूलों का गुलदस्ता था उस को उछालती वो ऐडम के साथ जा के कार में बैठ गई।“

अचानक मरियम ने घड़ी देखी, अरे ३ बज गए डेरिक के आने का समय हो गया है कह कर वह चली गई। छोड़ गई बहुत से सवाल, आखिर क्या दुःख हुआ होगा? अब एमी को लेकर मेरे मन में जो गुस्से की गाँठ थी थोड़ी-थोड़ी पिघलने लगी थी और उसके बारे में दृष्टिकोण बदलने लगा था।

पिछले १५ मिनट से मैं और शीबा साथ-साथ बैठे थे पर बोल कोई नहीं रहा था। शायद दोनों ही कुछ कहना चाहते थे और कह नहीं रहे थे। हमने उसके घर न जाकर अच्छा नहीं किया हम साथ साथ बोल उठे। हँसी भी आई कि हम एक ही बात सोच रहे थे फिर हमने सोचा कि उससे मिलना चाहिए और समय लेकर मिलने जा पहुँचे।

एक बार नहीं गए थे तो अब जाते समय बहुत सोचना पड़ रहा था । एक डर था कहीं वह अपमान न कर दे पर अब दिल कड़ा करके जाना ही था। जब उसके घर पहुँचे तो एक मासूम मुस्कान से उसने हमारा स्वागत किया। करीने से सजे घर में हम अंदर आए। मैं अपनी आदत के अनुसार चप्पल उतारने लगी तो बोली, “रहने दो।“
हम अंदर आकर बैठ गए। घर की हर दीवार खाली थी, मालूम नहीं क्यों पर किनारे की मेज पर एक फोटो रखा था एमी और एक आदमी जो जरूर ऐडम ही होगा पर उस तस्वीर में एक बहुत ही प्यारा बच्चा भी था। क्या ये एमी का बेटा है? मैं तस्वीर देखकर सोच ही रही थी कि एमी बोल उठी, “स्नेह, ये मेरे पति हैं और वो मेरा बेटा।“
मैं चौक गई,
“अरे क्या हुआ मैं जानती हूँ तुम्हारा नाम स्नेह है और तुम और शीबा मुझसे नाराज हो न इसीलिए नहीं आए थे पिछले हफ्ते?“
मैं क्या कहती? अपनी झेंप मिटाते हुए बात को बदलने के लिए पूछ बैठी, “आपके पति क्या करते हैं? मैंने ये पूछ तो लिया पर जब एमी का चेहरा देखा तो लगा कि शायद नहीं पूछना चाहिए था। उसके चेहरे पर वितृष्णा के भाव थे दर्द की कुछ छाया भी चेहरे पर आ जा रही थी पर ख़ुद को संयमित कर के बोली, "मैं और मेरे पति अब साथ नहीं रहते, हम अलग हो चुके हैं।“'
"मुझे माफ़ कीजिएगा," मैंने कहा।

"नहीं माफ़ी की कोई बात नहीं वो मेरा था ही नहीं मैं ही नादान थी जो उसकी परछाइयों के पीछे भागती रही। आज भी याद है मुझे। डेविड हमारा बेटा हो चुका था, ऐडम का व्यवहार कुछ बदलने लगा था मैं कुछ भी पूछती तो भी बताता कुछ नहीं। घर में अजीब सा सन्नाटा रहता बस डेविड की बाल सुलभ हरकतें इस घोर सन्नाटे को भंग करतीं। ऐसा लगता था ये खामोशी अपने अंदर एक भयंकर तूफान छुपाए हुए है। मैं दिनभर काम करती और शाम को डेविड को डे केयर से लेकर घर आती। ऐडम हर रात देर से घर आता और कभी-कभी तो वो डेविड को कई दिनों तक देख भी नहीं पाता। एक दिन बहुत खामोशी से उसने मेरे सामने तलाक के कागज रख दिए। बोला, “एमी मैं जाना चाहता हूँ, मैं तुमको मुआवजा दूँगा। डेविड के लिए भी खर्चा दूँगा। बस अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता।"
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