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                      अभिव्यक्ति में सत्यवती मलिककी रचनाएँ
 
                       कहानियों मेंभाई बहन
 
                       |  | सत्यवती मलिक  जन्म-सत्यवती मलिक का जन्म १ जनवरी १९०६ को श्रीनगर में हुआ था। वे महादेवी वर्मा और 
सुभद्राकुमारी चौहान की समकालीन रहीं। उनके पिता लाला चिंरजीवलाल अपने समय के 
प्रसिद्ध व्यापारी और गणमान्य समाजसेवी थे। छोटी उम्र में ही सत्यवती मलिक का विवाह 
प्रसिद्ध एडवोकेट श्री रामलाल मलिक से हो गया था, पर अपनी माता के अचानक और करुण 
निधन के बाद छोटे-छोटे भाई-बहनों के लालन-पालन का भार उन पर आ पड़ा, जिसे उन्होंने 
सहर्ष निष्ठापूर्वक निभाया।
 शिक्षा- सत्यवती मलिक की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। घर में ‘गृहलक्ष्मी’, 
‘कन्या-मनोरंजन’, ‘सरस्वती’, ‘चाँद’, ‘ज्योति’ आदि मासिक पत्रिकाएँ आती थीं। 
शांतिनिकेतन में कुछ दिन बिताए और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के दर्शन करके उनके 
मुख से उनकी कहानियों के बारे में साहित्यचर्चा सुनी।
 कार्यक्षेत्र-साहित्य के अतिरिक्त संगीत और ललित कलाओं के विकास में भी श्रीमती मलिक का 
महत्त्वपूर्ण योग रहा। गांधर्व महाविद्यालय, संगीत भारती, सरस्वती समाज, इंडियन 
नेशनल थियेटर और हिंदी भवन, चित्र-कला-संगम जैसी अनेक संस्थाएँ उनके अथक सहयोग और 
निःस्वार्थ सेवाभाव से गौरवान्वित हो चुकी हैं। वर्षों तक वे आकाशवाणी एडवाइज़री 
बोर्ड और फिल्म और सेंसर बोर्ड की सदस्या रही हैं और विभिन्न विषयों पर आकाशवाणी से 
प्रभावोत्पादक वार्ताएँ भी प्रसारित करती रही हैं। अपने समय की सुविख्यात 
साहित्यकार ही नहीं, समर्पित समाज-सेविका और मर्मज्ञ कलाप्रेमी भी रहीं।
 प्रकाशित कृतियाँ-कहानी, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रावृत्त, ललित निबंध आदि अनेक विधाओं के माध्यम 
हिंदी-साहित्य की अभिवृद्धि में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। उनके चार 
कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-‘दो फूल’, ‘वैशाख की रात’, ‘नारी-हृदय की साध’ 
और दिन-रात’। वे खूब लोकप्रिय हुए हैं और पुरस्कृत भी। मानव-मन की गहरी पकड़ और 
सहज-सरल अभिव्यक्ति के कारण ये कहानियाँ आज तक पाठकों के हृदय में घर किए हुए हैं। 
इनके अतिरिक्त ‘अमर पथ’, ‘अमिट रेखाएँ’, ‘मानव-रत्न’ सरीखे बेजोड़ रेखाचित्र और 
संस्मरण तथा ‘कश्मीर की सैर’ जैसे अप्रतिम यात्रावृत्त बहुचर्चित हुए हैं। 
‘मानव-रत्न’ का तो देश की शिक्षा-संस्थानों में अभूतपूर्व स्वागत हुआ और वह वर्षों 
तक उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में पाठ्य-पुस्तक के रूप में लगी रही।
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