|  | ''माँजी...! 
                    हाय...! माँजी...! हाय!'' एक बार, दो बार, पर तीसरी बार 'हाय! 
                    हाय!' की करुण पुकार सावित्री सहन न कर सकी। कार्बन पेपर और 
                    डिज़ाइन की कॉपी वहीं कुरसी पर पटककर शीघ्र ही उसने बाथरूम के 
                    दरवाज़े के बाहर खड़े कमल को गोद में उठा लिया और पुचकारते हुए 
                    कहा, ''बच्चे, सवेरे-सवेरे नहीं रोते।''''तो निर्मला मेरा गाना क्यों गाती है? और उसने मेरी सारी 
                    कमीज़ छींटे डालकर क्यों गीली कर दी है?''
 स्नानागार में अभी तक पतली-सी आवाज़ में निर्मला गुनगुना रही 
                    थी, ''एक... लड़का था... वह रोता... रहता...।''
 ''बड़ी दुष्ट लड़की है। नहाकर बाहर निकले तो सही, ऐसा पीटूँ कि 
                    वह भी जाने।'' माँ से यह आश्वासन पाकर कमल कपड़े बदलने चला 
                    गया।
 न जाने कितनी 
                    मंगल कामनाओं, भावनाओं और आशीर्वादों को लेकर सावित्री ने अपने 
                    भाई के जन्मदिन पर उपहार भेजने के लिए एक श्वेत रेशमी कपड़े पर 
                    तितली का सुंदर डिज़ाईन खींचा है। हलके नीले, सुनहरे और गहरे 
                    लाल रंग के रेशम के तारों के साथ-ही-साथ जाने कितनी ही मीठी 
                    स्मृतियाँ भी उसके अंतस्तल में उठ-उठकर बिंधी-सी जा रही हैं- 
                    और अनेक वन, पर्वत, नदी, नाले तथा मैदान के पार कहीं दूर से एक 
                    मुखाकृति बार-बार नेत्रों के सम्मुख आकर उसके रोम-रोम को 
                    पुलकित कर रही है।  |