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नाटक

नाटकों के इस स्तंभ में प्रस्तुत है मथुरा कलौनी का नाटक लंगड़। यह नाटक श्रीलाल शुक्‍ल की कालजयी कृति रागदरबारी के पात्र लंगड़ पर आधारित है।


पात्र परिचय
लंगड़, प्रिंसिपल, सनीचर, रंगनाथ, वैद्यजी, छोटे पहलवान
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वैद्य जी की बैठक। सनीचर सिलबट्टे में भाँग घोट रहा है। पास में रंगनाथ और छोटे पहलवान जमीन पर बैठे हैं। सनीचर रंगनाथ को एक गिलास पकड़ाता है। दूसरा छोटे पहलवान को।

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छोटे पहलवान- क्यों बे सनीचर, माल सब ठीक डाला है ना?
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सनीचर- क्या बात करते हैं छोटे पहलवान। ठंडई बनाने में हम कौनो गलती नहीं करते। भाँग पिस्ता बादाम और सभी माल एकदम ठीक-ठीक सही मात्रा में डाले हैं। एक घूँट पी कर तो देखो। सनीचर को याद करोगे।
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छोटे पहलवान- एक ही घूँट काहे पियेंगे। इतना खराब बनाये हो तो याद तो तुमको करबे करेंगे। (जाँघ ठोकते हुए)
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वैद्यजी और प्रिंसिपल साहब आपस में बतियाते हुए आते हैं। वैद्य जी देहाती चौकी में बैठते हैं और प्रिंसिपल साहब कुर्सी में। सनीचर दोनों को एक-एक गिलास थमाता है।

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