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नाटक
 

नाटकों के स्तंभ में प्रस्तुत है मिलिंद तिखे का
एकांकी एकालाप फिर दीप जलेगा


                  अंक १ दृश्य – १

निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का कमरा – एक मेज़, टेबल लैंप, कुछ किताबें कापियां बिखरी पड़ी हुई–पुराना फर्नीचर। कुछ प्लास्टिक के पौधे गमलों में लगे हुए। एक पुराना टेप रेकॉर्डर। पुराना ए .सी .दीवार पर लगा हुआ। एक पुरानी घड़ी दीवार पर टंगी हुई। एक पुराना कैलेन्डर, एक छोटा–सा मंदिर दीवार से लगा हुआ। भगवान की तस्वीर, मूर्ति। पाँच गद्दे जिनपर चादरें बिछी हुई– आधी–अधूरी, तकिए यहाँ–वहाँ बिखरे हुए। पाँचों बिस्तर आपस में नज़दीक। कुछ कपड़े इधर–उधर टँगे हुए– बिस्तरों पर ही बिखरे हुए कमरे की दीवार पर कुछ दरारें। एक खिड़की। एक तिपाई पर फ़ोन।

पर्दा खुलते ही एक नौजवान मंदिर के पास खड़े होकर भगवान की तस्वीर को प्रणाम करता हुआ दिखाई देता है। तस्वीर को प्रणाम कर वो खिड़की की ओर बढ़ता है, खिड़की से बाहर की ओर झाँकता है। बसों की, मोटरकारों के गुज़रने की आवाज़ें सुनाई देती हैं। युवक खिड़की बंद कर देता है, फिर दर्शकों की ओर देखता है, थोड़ा–सा हल्का–सा स्मित दर्शकों को देकर बात करना शुरू कर देता है।

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