मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


2

दृश्य – 2

(एक कमरा। सभी कमरे चारदीवारों से बनते हैं। इन दीवारों को सजाया भिन्न–भिन्न तरह से जाता है। इन दीवारों के भीतर जो 'सजा' होता है वही बताता है कि इसमें रहने वालों की हैसियत क्या है। जैसा रहने वाला होता है, दीवारों की वैसी ही सजावट होती है। जनता की झोपड़ी की सजावट, जनसेवकों की कोठी तथा वेश्याओं का कोठा, सिद्ध करते हैं कि हम सब मानव होते हुए भी 'एक मानव' नहीं हैं। यह कमरा राष्ट्र के महान सेवक थानेदार का है। क्योंकि कमरें में पलंग है अतः यह बेडरूम है। 

खूंटी पर टंगी ख़ाकी वर्दी और सरकारी निशान चिह्नित बैल्ट वैसा ही श्रद्धाभाव जन्म दे रही जैसा सफ़ेद कुर्ते, धोती और गांधी टोपी को देखकर होता है। देखने वाला स्वयं को 'शिकार' अनुभव करने लगता हैं। इधर–उधर बिख़रा बहुमूल्य स्वदेशी और विदेशी सामान घोषणा कर रहा है कि यह अमूल्य है क्योंकि इसका कोई मूल्य नहीं दिया गया है।

थानेदार का कमरे में प्रवेश। वह कच्छे और बनियान में है। खूंटी से कमीज़ उठाकर पहनता है। इस बीच थानेदारनी का प्रवेश। उसके हाथ में पूजा की थाली ऐसे सुशोभित हो रही है जैसे किसी ठेकेदार के हाथ में रिश्वत की थैली। थानेदार खूंटी से पेंट उतारता है।)

पत्नी :
थानेदार
पत्नी :  
थानेदार :
पत्नी

थानेदार :
ये क्या, आप पेंट पहन रहे हो?
और नहीं तो क्या इस नेशनल डे्रस में थाने जाऊंगा। मैं थाने जा रहा हूं, किसी नाटक कंपनी में नहीं।
पर थाने क्यों जा रहे हो? अभी रात ही तो आए हो वहां से, थोड़ा आराम कर लेते।
इलाके में जब कत्ल हो तो थानेदार के लिए आराम हराम होता है।
(आंख मटकाते हुए मुस्कराकर) हाय क्या इलाके में कल कत्ल हो गया? कौन जात और धर्म था, क्या नाम था उसका?
तुम्हारे जैसे धार्मिक अगर कोर्ट–कचहरी में जज बन जाएं, थानों के थानेदार हो जाएं, तो मामले मिनटों में सुलट जाएं, ज्यादा तफ़तीश में जाने की ज़रूरत नहीं है, देखा कौन जात का है और फट फ़ैसला सुना दिया, नहीं तो अपने ऊपर वाले पर छोड़ दिया और खुद हाथ में छैने पकड़ लिए। (हाथ जोड़ते हुए) धन्य हो भगत जी, धन्य हो।
पत्नी
थानेदार :

पत्नी






थानेदार

पत्नी :
थानेदार :
पत्नी : 
थानेदार :


पत्नी :


पंडित :
थानेदार :
(प्यार से आंख मटकाते हुए) चलो यह तो बता दो जिसका कत्ल हुआ है, वो मालदार है।
(प्यार से उसी तरह आंखे मटकाकर, आंखों में प्यार से झांकते हुए) हां, और जिस पर कत्ल का शक है, वह भी मालदार है।
जय हो ऊपर वाले की, तब तो मैं आपको बिल्कुल नहीं रोकूंगी (माथे पर तिलक लगाते हुए) ईश्वर करे आप दोनों तरफ़ से कामयाब हों। (प्यार से) देखो इस बार मैं मंदिर में सोने का छतर ज़रूर चढ़ाऊंगी और अपने लिए हीरों के टाप्स लूंगी। मैंने सोलह शुक्रवार का व्रत रखा हुआ है, माता रानी ने मेरी सुन ली है। सब ठीक हुआ तो बहुत बढ़िया उद्यापन करूंगी, नहीं नहीं, इस बार मैं सुंदर कांड का पाठ कराऊंगी। पिछले महीने वकीलन का पति झूठा मुकदमा जीत कर आया था, उसने कराया था। तब से अपने सुंदर कांड की तारीफ़ें कर रही है, मुई! मैं भी उसे दिखा दूंगी कि सुंदर कांड का पाठ कहते किसे हैं। वो अगर वकीलन है तो मैं भी थानेदारनी हूं। ऐसा परसाद बाटूंगी की सब देखते रह जाएंगें। क्यों जी? इस बार।
बिल्कुल ठीक है जी। इधर कत्ल कांड, उधर सुंदर कांड। आप भगत लोग भी कोई न कोई कांड करते ही रहते हो। वैसे यह सुंदर कांड किस सुंदरी के साथ हुआ था जी।
आप भी बस! यह तो रामायण के एक अध्याय का नाम है। सीता जी को जब रावण उठा कर ले गया था।
यानि किडनैप हुआ और आप कहते हो कांड नहीं हुआ।
आपको कुछ पता तो है नहीं।
अच्छा है कि मुझे कुछ पता नहीं है, वरना ऐसा केस बनाता किडनैपिंग का कि तुम्हारा वो पंडित भोलानाथ, (इस बीच जय श्रीराम का नारा–सा लगाते हुए पंडित भोलानाथ का प्रवेश।)
यह लो शैतान का नाम लो और शैतान जी हाज़िर।
(प्यारभरी नाराज़गी के साथ थानेदार को देखती है। पंडित का गदगद भाव से स्वागत करते हुए)
आइए पंडित जी, हमारे धन्य भाग कि आप पधारे। हम अभी आप की ही बात कर रहे थे। बहुत जल्दी मैं अपने घर सुंदरकांड का पाठ रख रही हूं।
बहुत उतम विचार है देवी! इस पाठ से सारे संकट दूर हो जाते हैं।
किसके संकट, हमारे या आपके? जहां आप की दक्षिणा का विचार हो वो विचार सदा उतम ही होता है, ब्राह्मण देवता!
पत्नी :

पंडित :

पत्नी :

थानेदार :

पत्नी :
थानेदार :



पंडित :
थानेदार :
पंडित :
थानेदार :




पत्नी :
आप भी बस, (पंडित से) आप तो जानते ही, ये बड़े मज़ाकिया हैं। पुलिस की नौकरी में भी मज़ाक कर लेते हैं, आपके लिए दूध लाऊं या . . .
नहीं देवी, आज मैं जल्दी में हूं। आप के यहां जब भी आता हूं तृप्त होकर ही जाता हूं ..., आज क्षमा करें। आप तो बस, आज महीने का पहला शुक्रवार है और, (पंडित हाथ मलते हुए)
मुझे याद है पंडितजी, आज आपकी दक्षिणा का दिन . . .(थानेदार से) सुनो जी, आपके पास 201 रूपए होंगे . . .पंडितजी को . . .
हफ्ता देना है। आप भी पंडित जी हमारी तरह अपनी डयूटी के पक्के हो . . .आंधी हो, बरसात हो महीना लेना नहीं भूलते . . .(जेब से पर्स निकालने को होता है)
रूकिए, पंडितजी के लिए मैं आपकी नेक कमाई से जो हर महीने धरम–करम के लिए निकालती हूं, उसमें से दूंगी।
भाग्यवान, उपर की कमाई उपरवाले की मेहरबानी से ही मिलती है, उपरवाले की मेहरबानी से मिलने वाली कमाई से बढ़कर क्या नेक होगा? तनख़ाह तो सरकार की मेहरबानी से मिलती है और हमारे देश की सरकार कितने नेक बाहुबलियों से चल रही है, सब जानते हैं। वैसे भी पंडित जी के पास जाकर हर पैसा नेक ही हो जाता है, क्यों पंडित जी?
हां जजमान, चंदन पर सांप लिपटे रहें तो भी उस पर विष नहीं व्याप्तता।
सांप का विष भी चंदन नहीं होता पंडित जी!
मुझे विलंब हो रहा है, आपके कल्याण के लिए देवी की पूजा भी . . 
.(पंडित से) और पूजा समय पर ना हुई तो अनिष्ट हो सकता है . . .यह आपका अनिष्ट वाला डंडा हम पुलिस वालों के डंडे से भी तगड़ा होता है। (रूपए देते हुए) यह लो अपने महीने की दक्षिणा। 
(पंडित रूपए को जैसे झपटता है और जय श्री राम कहता हुआ तेजी से प्रस्थान करता है।)
बहुत जल्दी में है आज तुम्हारा पंडित, लगता है कोई मोटी असामी फंसी हुई है। आज तो मुफ्त की भी नहीं खाकर गया और साला दस रूपल्ली का आशीर्वाद भी नहीं देकर गया।
आप भी वैसे ही बेचारे के पीछे लगे रहते हो . . .आप को कुछ पता तो है नहीं, मैंने कितनी बार कहा कि धर्म–कर्म के मामले में बोला मत करो जी . . .

(तोता मैना स्टाइल में दोनों पास–पास बैठ जाते हैं। आंखों में आंखें मिलाकर, युवा प्रेमियों की तरह लय में कहते हैं)।
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :

पत्नी : 

थानेदार :
पत्नी : 
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
दोनों :
बिल्कुल ठीक है जी . . .तुम्हें जो करना हो करो जी, मैंने कभी मना किया है जी?
नहीं जी।
तो पूजा पाठ के इन कांडों के चक्करों में मुझे मत घसीटा करो जी . . .तेरी पूजा में एक आध घंटे बैठता हूं तो तेरे ऊपर वाले के चक्कर में मुझे हो जाती है बवासीर जी।
ऐसा नहीं कहना जी . . .ऊपर वाले की मेहरबानी से हमारा घर भरा–पूरा है जी . . .उसका शुक्र तो अदा करना ही होता है जी . . .!
तो तुम करो जी . . .मैंने तुम्हें खड़ताल बजाने से कभी रोका है जी . . .?
नहीं जी . . .मैंने आपको मीट–मांस खाने से रोका जी?
नहीं जी . . .मैंने तुम्हें चरणामृत पीने से रोका जी?
नहीं जी . . .मैंने आपको शराब पीने से रोका जी?
नहीं जी . . .मैंने तुम्हें मंदिर–गुरूद्वारे जाने पर रोका जी . . .
नहीं जी . . .मैंने आपको इधर–उधर मुंह मारने पर टोका जी . . .?
नहीं जी . . .इसलिए हमारी गाड़ी अलग–अलग पटरियों पर चलती हुई साथ–साथ चल रही है जी . . .
इसलिए हमारे दिलों में प्यार का पवित्र सागर हिलोरे मार रहा है जी।
इसलिए हमारे दिलों में प्यार की शराब बह रही है जी।
मैं ऊपर वाले के गुणगान में झूमती रहती हूं।
मैं ऊपर की कमाई में झूमता रहता हूं।
हम दोनों झूम रहे हैं . . .ज़िंदगी के मज़े लूट रहे हैं, इसी को कहते हैं सह–अस्तित्व।


(दोनों प्यार से झूमते हैं। प्रकाश गोलाकार उन पर पड़ता है, दोनों नृत्य की मुद्रा में स्थिर)

                                                     
दृश्य – 3

(थानेदार का ड्राईंग कम डाइनिंग रूम। ड्राईंग इसलिए क्योंकि इसमें एक सोफा, सेंटर टेबल, और डाइनिंग टेबल है। सोफे पर जो समान बिखरा पड़ा है, वो बहुमूल्य सोफे को कबाड़ बना रहा है। डाइनिंग टेबल पर खाने का सामान कम, मैले कपड़े अधिक हैं। थानेदार की पत्नी भजन गुनगुनाते हुए डाइनिंग टेबल पर पड़े मैले कपड़े हटाती जा रही है और नाश्ता लगाती जा रही है। पास ही धीमे स्वर में फ़िल्मी गाना आ रहा है। मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई . . .
(थानेदार का प्रवेश, हाथ में बेल्ट पकड़ी है। आते ही रेडियो की नॉब छेड़ता है, तेज़ स्वर में गाना बजता है–जब तक रहेगा समोसे में आलू।)
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :


पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :

थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
पत्नी :
थानेदार :
(थानेदार की ओर से देखती हैं। हाथ के इशारे से वाल्यूम धीरे करने को कहती हैं। थानेदार धीरे करता है।)
यह क्या कर रही हो . . .मेरे पास नाश्ते का टाईम नहीं है।
देखो जी . . .तुम्हें कत्ल की तफ़तीश पर जाना है। न जाने कितना टाईम लगे।
कत्ल की तफ़तीश पर जाना है इसलिए घर से खाकर नहीं जाना है . . .साले इतना ठूंस–ठूंस कर खिलाएंगे . . .अपना ससुराल याद आ जाएगा। ऐसी वैसी पार्टी नहीं है . . .कपड़े फाड़–फाड़कर खिलाएगी . . .इशारा कर दिया तो होम डिलिवरी भी कर देगी।
चलो आपकी मरज़ी मेरा तो आज व्रत है . . .यह नाश्ता मंदिर में ग़रीबों को बांट दूंगी . . .
एक ग़रीब दास हमारे घर में भी तो है . . .
कौन?
ओई महापंडित, महाज्ञानी, महाकवि 'कलंक' . . .तुम्हारा भाई।
कलंक नही मयंक है उसका नाम . . .आप तो ऐसे ही उसके पीछे पड़े रहते हैं . . .वो बेचारा ग़रीब आपके घर का क्या खाता है?
यही तो अफ़सोस है साला खाता कम है पीता ज्यादा है . . .बिना बोतल गटके साले की कविता नहीं उतरती है।
बहुत नाम है उसका . . .जगह–जगह से बुलावे आते हैं उसको . . .बड़ी सोणी कविता लिखता है।
आजतक उसकी कोई सोणी कविता समझ आई है . . .न कोई सिर होता है न पैर . . .
बड़े दिमाग़ वाली कविता लिखता है।
अपने जैसों के दिमाग़ में तो आती नहीं है, परसों मेरे पीछे ही पड़ गया, जीजाजी एक पटियाला बनाओ। मैं आपको कविता सुनाऊंगा। मेरी तो घिग्गी बंध गई। मैंने कहा ज़रूरी काम से जाना है . . .पर वो तो पूरा बेशर्म है। जेब से कविता निकाल ही ली। इस बीच फ़ोन बज उठा। मुझे लगा जैसे तंगहाली के मौसम में कत्ल का केस फंस गया हो। मैंने साले को कितना कहा, कविता रख जा मैं फ़ोन के बाद पढ़ लूंगा पर वो भी साला ढीठ, बोला आप काम कर लें . . .साला पंद्रह मिनट तक इंतज़ार करता रहा कब मैं फ़ोन रखूं और वह मेरे भेजे में कविता घुसेड़े। साला इतना चिपकू तो फेवीकोल भी नहीं होता है। जब तक मैंने फ़ोन रखा नहीं वो हाथ में कविता लिए खड़ा रहा। मेरे फ़ोन रखते ही पता नहीं पंद्रह मिनट क्या बोल गया . . .और कुछ देर बोलता तो मुझे ब्रेन हेमरेज ही हो जाता। कविता भी ऐसी बोलता है जैसे कब्जी हो गई हो। मेज़ पर से एक कागज़ उठाता है। उसे पढ़ता है . . .ले सुन अपने भाई की करतूत।
चिड़िया
ठंडे खून वाली चिड़िया
मेरे पेट से उगा एक पेड़
उस पर बैठी चिड़िया
आंखें सूने में ढूंढ़ती है
मुर्दे के पेट पर जा बैठी चिड़िया
मेरे सिर पर बैठा एक कौआ
ओ मेरे प्रभु
मुझे इतने कौए मत देना
कि मेरी लाश के नीचे
मेरे मरने पर करे कांव–कांव।
इस साली कविता का कुछ समझ आया तो मुझे भी समझा दे।
पत्नी :
थानेदार :


पत्नी :


थानेदार :


पत्नी :


थानेदार :
आजकल की कविता ऐसे ही होती है . . .पढे़–लिखों के लिए होती हैं।
तो भई हम अनपढ़ों के पीछे क्यों पड़ते हैं . . .हम तो यह जानते हैं कि कविता तो वो जो समझ आ जाए, गुनगुनाने का मन करे . . .दिल को छू जाए। गालिब के बचपन में पढ़े शेर आज भी याद हैं मुझे . . .तुझे भी तो भजन याद हैं। बुल्ले शाह . . .क्या बात है। पुराने टैम के ही हैं न . . .आज की कौन सी कविता तुझे याद है सोनयो।
कविता–शविता छोड़ो जी, हमें कौन–सी गोष्ठी करनी है। आप तो अपनी डयूटी पर ध्यान दो, कत्ल के केस पर ध्यान दो। लो एक बात तो मैं बताना भूल गई . . .सुबह आप सो रहे थे तो नेता जी का फ़ोन आया था, आने की कह रहा था . . . थोड़ी देर में।
साला ज़रूर कातिल की सिफ़ारिश लेकर अपना हिस्सा बनाएगा। (जूता पहनते हुए) मैं निकल रहा हूं। आए तो बोल देना सुबह–सुबह निकल गए।

(दरवाज़े की घंटी बजती है।)
लगता है शैतान हाज़िर हो गया है।

(थानेदार एक जूता पहने दूसरे में जुराब पहने और हाथ में जूता पकड़े बेडरूम की ओर जाते हुए)
मैं दूसरे कमरे में जा रहा हूं ... हरामजादे को टरका देना . . .(दोबारा घंटी बजती है)
साला आता भी फायर ब्रिगेड के इंजन की तरह है . . .

पृष्ठ : 1. 2.3.4.5                                                                                                                       आगे

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।