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                        असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में 
                        छिपाए, गढ़वाल हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य, सनातन 
                        संस्कृति का शाश्वत संदेश देनेवाले, अडिग विश्वास के 
                        प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों सहित, इसे पंचकेदार के 
                        नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु तीर्थयात्री, सदियों से इन 
                        पावन स्थलों के दर्शन कर, कृतकृत्य और सफल मनोरथ होते रहे 
                        हैं। जनश्रुति है कि पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध से 
                        विजयश्री प्राप्त करने के पश्चात अपने ही संबंधियों की 
                        हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर, शिव आशीर्वाद की 
                        कामना की, किंतु शिव इस हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों 
                        से पीछा छुड़ाने हेतु केदारनाथ में शरण ली, जहाँ कि 
                        पांडवों के पहुँचने का आभास होते ही, उन्होंने बैल रूप में 
                        प्राण त्याग दिए। उस स्थान से पीठ के अतिरिक्त शेष भाग 
                        लुप्त हो गया। अन्य चार स्थलों पर शेष भाग दिखाई दिए, जो 
                        कि शिव के उन रूपों के आराधना स्थल बने। मुख - रुद्रनाथ, 
                        जटा-सिर - कल्पेश्वर, पेट का भाग - मध्यमेश्वर और हाथ - 
                        तुंगनाथ में पूजे जाते हैं। केदारनाथ सहित ये चार स्थल ही 
                        पंचकेदार के नाम से जाने जाते हैं। 
						
                        मध्यमहेश्वर अन्य चार केदारों के मध्य 
                        स्थित है। मध्यमहेश्वर व तुंगनाथ दक्षिण में और कल्पेश्वर 
                        पूर्व में स्थित है। ये तीनों केदार एक समद्विबाहु त्रिभुज 
                        के शीर्षों पर स्थित हैं। केदारनाथ और कल्पेश्वर नदी घाटी 
                        में स्थित हैं, जबकि रुद्रनाथ, मंदाकिनी-अलकनंदा जल-विभाजक 
                        पर स्थित है। मंदाकिनी घाटी से चार केदारों को संबंध होने 
                        के कारण इसे केदारघाटी के नाम से जाना जाता है। 
                        कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित 
                        केदारनाथ 
                        चौरीबारी हिमनद के तुंड 
                        से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के 
                        पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, विश्व प्रसिद्ध 
                        केदारनाथ मंदिर (३५६२ मीटर) अवस्थित है। इसे १९९९ वर्ष से 
                        भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। जनश्रुति है कि इसका 
                        निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया 
                        था। साथ ही यह भी प्रचलित है कि मंदिर का जीर्णोद्धार 
                        जगद्गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के पृष्ठभाग में 
                        शंकराचार्य जी की समाधि है। राहुल सांकृत्यायन द्वारा इस 
                        मंदिर का निर्माणकाल १९वीं व १२वीं शताब्दी के मध्य बताया 
                        गया है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। 
                        मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव 
                        रूप में पूजी जाती है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष 
                        संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन 
                        संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों  
                        पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री 
                        केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट 
                        बंद हो जाते हैं। 
                        केदारनाथ के निकट ही 
                        गाँधी सरोवर व वासुकीताल है। केदारनाथ 
                        पहुँचने के लिए, रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी होकर, २९ किमी. 
                        आगे गौरीकुंड तक, मोटरमार्ग से और १४ किमी. की यात्रा, 
                        मध्यम व तीव्र ढाल से होकर गुज़रनेवाले, पैदल मार्ग द्वारा 
                        करनी पड़ती है।  
                        गुहा मंदिर - रुद्रनाथ 
                        मंदाकिनी व अलकनंदा जल-विभाजक की सीधी 
                        खड़ी चट्टान के पाद स्थल पर अवस्थित रुद्रनाथ गुहा मंदिर 
                        है। जहाँ कि गुहा को एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है। 
                        आंतरिक भाग में मुखाकृतिक लिंग है, जिस पर गुहा से जल की 
                        बूँदें टपकती रहती हैं। यह शिव की भयावह आकृति है, जिसे 
                        वस्त्र द्वारा ढककर रख गया है, इसमें चाँदी की दो आँखें 
                        लगी हुई हैं। साथ ही लंबे केश व मूँछें बनाई गई हैं। सिर पर 
                        चाँदी का विशाल छत्र सुशोभित है। 
                        रुद्रनाथ, गोपेश्वर से उत्तर पश्चिम 
                        दिशा में अवस्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए दो मुख्य मार्ग 
                        हैं। एक गोपेश्वर से व दूसरा मंडल होकर जाता है। गोपेश्वर 
                        से १६ किमी खड़ी चढ़ाई के पैदल मार्ग पर चलकर रुद्रनाथ 
						पहुँचा जाता है। दूसरा रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ, चोपटा होकर 
						मंडल पहुँचा जाता है, तत्पश्चात २१ किमी. की पदयात्रा कर 
                        रुद्रनाथ पहुँचा जाता है। 
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