मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


"क्या आप का आप के पति के साथ प्रेम विवाह हुआ था?"
"नहीं, विवाहोत्तर प्रेम।" कितना सुकून भरा जवाब दिया था गौरी ने। " सिर्फ़ ६ साल ही साथ रहे थे, एक रात नींद में ही उनकी मृत्यु हो गई। गौरी अपने पति के बारे में ऐसी बात कर रही थी कि लगता था बीती बातें भूल पाना उसके बस का नहीं। थोड़ी देर पहले अपने पति की याद में खोई गौरी अब वर्तमान में माधव से जिस शालीनता से बात कर रही थी कि माधव उसके मोह में आए बिना नहीं रह पाया।

शाम होने को थी, दोनों वहाँ से उठे, गौरी रिक्शे से अपने घर के लिए रवाना हो गई लेकिन माधव अभी भी वहीं खड़ा गौरी के बारे में सोच रहा था।

----

"स्वप्ना" में शाम के समय कॉफी के कप हाथ में लिए बैठे थे... माधव और वसुमती।
"अपने तलाकशुदा होने का ज़िक्र मैं पहले ही कर चुकी हूँ, इससे आगे अगर आप कुछ पूछना चाहें तो..."

वसुमती शायद स्पष्ट जवाब माधव से चाहती थी। उसने खत में भी लिखा था..." मैंने तीन साल अपने पति के साथ निभाने की कोशिश की थी, लेकिन बात बिगड़ती ही गई। जब सारी बातें सहन शक्ति के बाहर जाने लगी तब तलाक़ की नौबत आ गई। उस बात को भी अब पाँच साल बीत चुके हैं। आज तक किसी सहारे की ज़रूरत मैंने महसूस नहीं की लेकिन आज " वसुमती ने सारी कहानी माधव के सामने रखी और अब वह किस लिए शादी करना चाहती हैं यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया। उमर बढ़ती जा रही थी, वह थोड़ी समझदार भी हो गई थी, अकेले जीना ज़रा मुश्किल और नीरस लगने लगा था। किसी को साथ ले कर वह समाज कार्य करना चाहती थी।

वसुमती देखने में बुरी नहीं थी। जीवन के बारे में उसकी निश्चित कल्पनाएँ और आकांक्षाएँ थी। उसका प्रेम विवाह हुआ था। उससे ज़्यादा और कुछ उसकी बीती ज़िन्दगी के बारे में पूछता हूँ तो शायद उसे अच्छा ना लगे। लेकिन उसी ने पहल करते हुए कहा, "यदि हम एक दूसरे के करीब आने या शादी के बंधन में बँधने की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं तो सब बातें खुल कर सामने रखनी ज़रूरी हैं। "मेरे एक दूर के रिश्तेदार का वह मित्र था। एक पिकनिक में मुलाकात हो गई। युनिवर्सिटी में मैं काम करती थी। वहाँ के इलेक्शन के समय ज़्यादा करीब आए। उसकी मीठी बातें मेरा मन मोह लेती थी। सौतेली माँ से दुखी हो कर मेरे दिल में उस समय शादी की बात आती ही थी, इसलिए हमने शादी का सोचा और जल्दी ही शादी के बंधन में बँध गए। लेकिन जल्दबाज़ी में की हुई शादी रास नहीं आई। प्राध्यापक होने के बावजूद वह अशिक्षित, असंस्कृत जैसा बर्ताव करता था। मेरे पति ने मेरी हर बात में प्रताड़ना की थी। मैंने बहुत दुख झेले हैं। उन यादों को मैं कभी प्रकट नहीं करना चाहती लेकिन आपको..."
"नहीं नहीं मैं समझ सकता हूँ।" माधव ने बीच में उसे टोक कर कहा।
शरीर और मन से वह जब पूरी तरह थक गई तभी इससे आज़ादी लेने की सोची थी।

अब वह दुबारा अपनी गृहस्थी शुरू करना चाहती थी। किसी पुरुष के साथ संबंध स्थापित करना चाहती थी। लेकिन क्या वह फिर से माधव के साथ एकरूप हो पाएगी? उसे प्रोफ़ेसर की यादें सताने लगी तो?
दोनों ही अपने अपने ख़यालों में खोए हुए थे।
जब अब कहने सुनने के लिए कुछ नहीं बचा तब दोनों अपने रास्ते अपने घर चले गए।

माधव ने थोड़े दिन राह देखी लेकिन छटा खत नहीं आया। और किसी से कोई रिश्ता आने की उम्मीद भी नज़र नहीं आ रही थी। यही तीन लड़कियाँ माधव के सामने थी। तीनों उससे शादी करने के लिए तैयार थी।

माधव को लगा, जब उसने शादी करने का सोचा था उस समय का जिन्दगी का खालीपन आज इस घड़ी में भी बरकरार हैं। लगता है, कहीं से भी रिश्ता आया हो, उन लड़कियों को देखने में ही और उनके बारे में सोचने में ही उमर बीत जाएगी ऐसे ही जीवन साथी के बिना।
उसे लगने लगा, जो भी कमी है वह उसी में ही हैं। आज तक के सारे रिश्तों में वह चिकित्सा ही करता रहा। इन तीन रिश्तों में तो अपने आप में एक समस्या मोल लेनेवाली बात लगती है। अंजली, गौरी या वसुमती के साथ शादी करने का आह्वान उसका मन यह आह्वान स्वीकारने के लिए तैयार नहीं था।

सत्यसाईबाबा से पूरी तरह घिरी हुई अंजली, पति की यादों को अभी भी ज़िन्दा रखने वाली गौरी या शादी कर के बाद में तलाक लेने वाली स्पष्टवक्ता वसुमती, इनमें से कौन, यह निर्णय माधव के लिए एक पहेली-सा बन गया था।

अंजली, गौरी और वसुमती उसके आँखों के सामने घूमने लगी। अंजली उसे अच्छी लगी थी उसका सीधापन, किसी पर भी दिल लगाने की आदत... गौरी उसे ठीक लग रही थी क्यों कि वह अच्छी गृहस्थी सँभालनेवाली थी, और वसुमती का जिद्दी स्वभाव माधव को उसकी ओर खींच रहा था।
अंजली जैसी लड़की जो साईबाबा के चंगुल में फँस कर मानसिक रोगी बनती जा रही हैं, उसे मेरी मदद की ज़रूरत हैं। वह किसी के साथ भी दिल लगा सकती है तो मेरी तरफ़ भी उसके प्यार का झुकाव कोई नामुमकिन बात नहीं है।

गौरी को भी तो आधार चाहिए। उसे ज़रूरत है ऐसे आदर्श पुरुष की जिसके सहारे वह जीवन में फल-फूल सकती है। वही आदर्श पत्नी और माता बन सकती हैं। लेकिन मैं तो वसुमती जैसी स्वतंत्र ख़यालों की पूरक और प्रेरक पत्नी चाहता हूँ।
वसुमती तलाकशुदा है लेकिन उसका पति अभी ज़िन्दा है। उससे तो अच्छा गौरी का है जो अब इस दुनिया में ही नहीं हैं। फिर तो गौरी ही ठीक रहेगी। लेकिन वसुमति को अपने पति से खूब नफ़रत है, सो वह तो उसके लिए मर ही चुका है। गौरी को उसके पति से ज़्यादा प्यार था, इसलिए वह उसकी स्मृति में खोई रहती है। फिर तो सब में अंजली सबसे अच्छी क्यों कि उसकी पहले शादी ही नहीं हुई है। लेकिन ऐसे साधु के चमत्कार से प्रभावित लड़की अपनी सहचरी बनाने लायक मैं नहीं समझता। कैसी यह दुविधाएँ हैं।

ऐसी दुविधा में फँसा हुआ माधव दिन रात सोच कर उसी में उलझता चला गया। ऐसी उलझन में डूब कर वह सोचते सोचते किनारे आ गया था। फिर उसने निर्णय किया। यही इन्हीं तीन में से एक। ऐसी ही जिसमें कुछ ऐब हो लेकिन मेरी जैसी कुछ अलग। ऐसी अलग कौन? उसने दिलो दिमाग दाँव पर लगा कर निर्णय ले ही डाला।

बस! उसका फ़ैसला हो गया। जो कुछ ऐब था वह अब ऐब नहीं रहा और रास्ता साफ़ नज़र आने लगा। "महल" की तरफ़ जाने वाली राह! "स्वप्ना" में भोजन के लिए और भावी जीवन के स्वप्न संजोने के लिए दावत देनेवाला खत वह अपनी भावी वधू को लिखने लगा।

पृष्ठ

१५ नवंबर २०००

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।