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साहित्य संगम

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है इंदिरा गोस्वामी की कहानी वंशबेल। असमिया से हिंदी रूपांतर श्रवण कुमार का है


गाँव का महाजन पीतांबर अपने घर के सामने पेड़ के ठूँठ पर बैठा था। वह पचास को पार कर चुका था। कभी वह काफी हट्टा-कट्टा था, लेकिन अब उसे चिंता ने दुबला दिया था। उसकी ठुट्टी के नीचे की खाल ढीली पड़कर लटकने लगी थी। वह दूर निगाहें टिकाए एक बच्चे को देखे जा रहा था, जो अपनी बंसी की फंसी डोरी को छुड़ाने की कोशिश में था।
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एकाएक उसका ध्यान टूटा। गाँव का पुजारी अपनी खड़खड़ाती आवाज़ में उससे कह रहा था, "तुम्हारा अपना तो कोई बच्चा है नहीं। तब तुम उस बच्चे को भूखी निगाहों से क्यों देखे जा रहे हो, फिर रुककर पूछा, "अब तुम्हारी पत्नी कैसी है?"
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"कई बार उसे शहर के अस्पताल में ले जा चुका हूँ, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसके सारे शरीर पर सूजन आ गयी है।"
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"तब तो उससे बच्चा होने की कोई उम्मीद नहीं। लगता है पीतांबर, तुम्हारा वंश चलाने वाला कोई नहीं रहेगा।"
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थोड़ी देर तक चुप खड़े रहने के बाद अपनी छोटी-छोटी आँखों में धूर्तता की चमक लिये पुजारी ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा, "दूसरी शादी के बारे में क्या सोचा है तुमने?"

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