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                       मैंने देखा 
						है? मैराजुद्दीन टेलर मास्टर की दूकान पर बहुत से 
						उम्दा-उम्दा सूट लटके होते हैं। उन्हें देखकर अक्सर मेरे 
						दिल में ख़याल पैदा होता है कि मेरा अपना गरम कोट बिल्कुल 
						फट गया है और इस साल हाथ तंग होने के बावजूद मुझे एक नया 
						गरम कोट ज़रूर सिलवा लेना चाहिए। टेलर मास्टर की दूकान के 
						सामने से गुज़रने या अपने महकमे के तफरीह के क्लब में जाने 
						से गुरेज़ करूँ तो मुमकिन है मुझे गरम कोट का ख़याल भी न आए? 
						क्योंकि क्लब में जब संता सिंह और यजदानी के कोटों के नफीस 
						वर्सटेड मेरे भावनाओं के घोड़े पर कोड़े लगाते हैं तो मैं 
						अपने कोट की बोसीदगी को शदीद तौर पर महसूस करने लगता हूँ। 
						यानी वह पहले से कहीं ज़्यादा फट गया है। 
						
						बीवी-बच्चों को पेट भर रोटी खिलाने के लिए मुझसे मामूली 
						क्लर्क को अपनी बहुत-सी ज़रूरियात तर्क करना पड़ती हैं और 
						उन्हें जिगर तक पहुँचती हुई सर्दी से बचाने के लिए खुद 
						मोटा-झोटा पहनना पड़ता है...यह गरम कोट मैंने पारसाल 
						देहली दरवाज़े से बाहर पुराने कोटों की एक दूकान से मोल 
						लिया था। कोटों के सौदागर ने पुराने कोटों की सैकड़ों 
						गाँठें किसी मरानजा एंड मरानजा कंपनी कराची से मँगवाई थीं। 
						मेरे कोट में नकली सिल्क के अस्तर से बनी हुई अंदरूनी जेब 
						के नीचे मरानजा एंड मरानजा को. का लेबिल लगा हुआ था। मगर 
						कोट मुझे मिला बहुत सस्ता। महँगा रोए एक बार सस्ता रोए 
						बार-बार...और मेरा कोट हमेशा ही फटा रहता था। 
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