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साहित्य समाचार

नार्वे से सांस्कृतिक समाचार  
गुरू नानकदेव जी की जयन्ती बहुत धूमधाम से सम्पन्न

अलनाब्रू, ओसलो में गुरूद्वारा में दि .. . 19 से 23 नवम्बर तक श्री(राष्टॅपिता महात्मा गांधी जी के पोते) और उनकी पत्नी, ओसलो के मेयर पेर दितलेव सीमोनसेन, संसद सदस्य और रक्षा मन्त्रालय की अध्यक्ष मारित नीबाक, सिटी कौंसिल के सदस्य आमिर शेख, भारतीय रेस्टोरेन्ट के मालिक गुरूदयाल सिंह, स्पाइल–दर्पण के सम्पादक एंव सोसियलिस्तिक वेन्स्त्रे पार्टी के प्रतिनिधि सुरेशचन्द्र शुक्ल और अनेक गणमान्य उपस्थित थे।

गुरूद्वारा के प्रधान सन्तोख सिंह नें सभी का स्वागत किया और मुख्य मेहमानों को उपहार भेंट किया। रमनीत कौर ने सिख समाज की मुख्य मांगों को सभी के सामने रखा। ये मुख्य मांगे हैं– गुरूद्वारा के लिए नये बड़े स्थान का प्रबन्ध करना, सिख सन्तों और पुजारियों को भारत से आने के लिए वीजा में सहूलियत देना, स्कूलों में पुन: मात्र भाषा के रूप में पंजाबी भाषा को पुन: पढ़ाये जाने का प्रबन्ध करना। 

ओसलो के मेयर पेर दितलेव सीमोनसेन ने आश्वासन दिया कि वह गुरूद्वारा के लिए नये बड़े स्थान का प्रबन्ध करने में मदद करेंगे।

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज ने जिसमें सिख समाज भी सम्मिलित है, ने नार्वे में बहुत अच्छा कार्य किया हैं जो नार्वे के लिए सुखद है।

शिवमंगल सिंह सुमन और ओंकार नाथ श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि

आर्टिस्ट्स एन्ड राइटर्स अगेन्स्ट रेसिज्म, नार्वे के तत्वाधान में बेवेरवाइएन ओसलो में 2 दिसम्बर 2002 को कार्यकारिणी की बैठक में शिवमंगल सिंह सुमन और लन्दन में बसे साहित्यकार ओंकार नाथ श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।

शिवमंगल सिंह सुमन का निधन 87 वर्ष की अवस्था में 27 नवम्बर को उज्जैन मध्य प्रदेश में हुआ था।और लन्दन में बसे साहित्यकार ओंकार नाथ श्रीवास्तव का निधन  29 नवम्बर को 70 वर्ष की अवस्था में लन्दन में हुआ था। हरल्ड बूरवाल्द ने कहा कि नार्वे में भारत के  साहित्यकारों की जानकारी कम है। दोनो साहित्यकारों के निधन से हिन्दी साहित्य की बहुत क्षति हुई है। शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म 5 अगस्त 1915 को ग्राम झगरपुर जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ओंकार नाथ श्रीवास्तव का जन्म 18 जनवरी 1932 को रायबरेली, उत्तर प्रदेश  के एक गाँव में हुआ था।

शरद आलोक ने दोनो साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण सुनाये और ओंकार नाथ श्रीवास्तव के प्रति काव्यांजलि अर्पित की – 
“हे हिन्दी रत्न ओंकार नाथ!
विदेशों में हिन्दी दीप जला
साहित्य, स्वरों से भर सागर
कर दिया अमर नाम हिन्दी सेवी!
जो दूर देश में बैठ वहाँ
संगिनी उषा का साथ ज
ां
मिल गये जहाँ दो साहित्य वीर
कितनी रचनाओं का हुआ जन्म
श्रद्धांजलि के दो सुमन तुम्हें” –  
शरद आलोक ने शिवमंगल सिंह सुमन पर भी काव्यसुमन स्वरूप एक कविता सुनाई। कार्यकारिणी की बैठक में दो मिनट का मौन रखा गया।आनन्द लामेछाने और वासदेव भरत ने भी अपने विचार रखे।

– माया भारती

 

यूके से सांस्कृतिक समाचार

लंदन में एक सांझी कथागोष्ठी

कथा (यू के) द्वारा लंदन के उपनगर उतरी वेम्बले क्षेत्र में एक सार्थक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें उर्दू की जानी मानी कथाकार शाहिदा अहमद, एवं हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डा गौतम सचदेव ने अपनी कहानियों का पाठ किया।

कार्यक्रम की शुरूआत में डा शिवमंगल सिंह सुमन एवं डा ओकारनाथ श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। ओंकारनाथ श्रीवास्तव के बारे में बोलते हुए श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि "ओंकारनाथ श्रीवास्तव का नाम हिन्दी प्रसारकों की श्रेणी में सबसे अग्रिम पंक्ति में आएगा ­ जिनके प्रसारणों पर लाखों श्रोता हर रोज़ अपने कान लगाए रखते थे; जिन्होंने हिन्दी प्रसारण को और नए प्रसारकों को सर्वसाधारण तक पहुंचने की दिशा दिखाई।" दोनों दिवंगत साहित्यकारों की याद में एक मिनट का मौन रखा गया।

शाहिदा अहमद की कहानी एक परिवार के एक दिन के कुछ पलों की कहानी है जिसमें "जिगसॉ पज़ल" के खेल के प्रतीक का प्रयोग करके लेखिका ने संसार में एकता जुटाने का साहसिक स्वप्न देखा है। यह परिवार पूरे विश्व का "माइक्रोकॉस्म" बन कर उभरता है। विश्व की एकता का काम एक बच्ची की मासूमियत से हो पाता है। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण शाहिदा अहमद स्वयं कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाईं। उनकी कहानी का पाठ जाने माने पत्रकार एवं रंगकर्मी परवेज़ आलम ने किया।

सलमान आसिफ़ पंजाबी के जाने माने कथाकार के सी मोहन, विजय राणा, कैलाश बुधवार, मिनी सखूजा, नैना शर्मा,  डा गौतम सचदेव, अचला शर्मा ने कहानी पर अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत कीं।

डा गौतम सचदेव की कहानी भारत के विभाजन को केन्द्र बिन्दु बना कर लिखी गई रचना है। इस विषय पर बहुत मात्रा में साहित्य रचना की गई है। स्वयं गौतम सचदेव ने भी विभाजन के कई पहलुओं पर कहानियां लिखी हैं। फिर यह कहानी "बेचारा दरियाई शाह!" क्यों । बतर्ज गालिब, हैं और भी दुनियां में सुखनवर बहुत अच्छे--  डा सचदेव ने नये प्रतीकों और बिम्बों का सहारा लेकर भारत विभाजन की प्रक्रिया और उस समय की मानसिकता को अपनी कहानी का मुख्य बिन्दु बनाया है।

इस कहानी पर डा अचला शर्मा, सलमान आसिफ़  भारत से पधारे पत्रकार साहित्यकार राधाकांत भारती,  विजय राणा, के सी मोहन, कैलाश बुधवार, परवेज़ आलम तथा  मिनी सखूजा ने अपने अपने समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत किये।

कथा यू के  के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया। गोष्ठी में कैलाश बुधवार, अचला शर्मा, राधाकांत भारती, परवेज़ आलम, विजय राणा, सलमान आसिԊ अनिल शर्मा, के-सी-मोहन, मिनी सखूजा, दामिनी पटेल आदि शामिल थे। 

कथा यू-के- की उपाध्यक्ष श्रीमती नैना शर्मा ने स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध किया था । कार्यक्रम के मेज़बान थे स्मिता एवं सुनील पटेल।

आगे—

 
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