मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


छठा भाग

उसकी आँखें मेरी आँखों में सीधे देख रही थीं। हेल्गा की आँखें हमेशा घने अंधेरे में दिप-दिप कर जलती हुई अग्नि शलाका-सी चुभती थीं उसने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, ''चुप क्यों हो गई? वह दूसरा कारण क्या है?''
''मेरी माँ मेरी कमाई से एक पैसा भी नहीं लेगी। हमारे समाज में बेटी दान की वस्तु है। इसलिए माँ, जीजी लोगों के घर यदि एक गिलास पानी भी पीना पड़े तो बदले में ग्यारह रुपए देकर आती है।''
''हाउ स्ट्रेंज! यह कैसी व्यवस्था? लड़की को दान की वस्तु समझना और फिर तुम उस देश में लौटने की बात कर रही हो?''
''हाँ ताकि मैं भी एक लड़ाई लड़ सकूँ। मेरी छोटी बहनों को, मेरी बेटियों को यह सब न सहना पड़े।''
''लड़ सकोगी? और यह तो पीढ़ियों की लड़ाई है। बहुत लंबी।''
''मेरी अपनी जो राय है यदि वही देकर जी सकूँ तो जीवन सार्थक मानूँगी।''
''तुम अमेरिका रह जाओ प्रभा! मैं फिर कह रही हूँ। मेरे बहुत रिसोर्सेस हैं।''
''लेकिन तुम तो इज़रायल जा रही रो।''
''तो क्या हुआ? हमारा अंडरग्राउंड वर्ल्ड, उसके सहयोग से तुम पाँच वर्ष में मिलियन डॉलर कमा लोगी, बिना अपने पैरों पर खड़े हुए तुम कोई भी लड़ाई नहीं लड़ सकतीं।''
''मैं तुम्हारी सद्भावना का सदा एहसान मानूँगी हेल्गा, पर मैं अपने देश वापस जाना चाहूँगी।''
''जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। तुम एक सुनहला मौका छोड़ रही हो और तुम्हारे उस गरीब देश में धन का अभाव नहीं मगर धन कमाने के साधनों का अभाव है।''
''तुम चिंता मत करो हेल्गा। मैं अपने साधन स्वयं जुटा लूँगी।''
''तुमको अपने पर भरोसा है?''
''उस ऊपरवाले पर तो है।''
''इसमें वह ऊपरवाला क्या करेगा?'' वह चिढ़कर बोली, ''क्या वह तुम्हारे ऊपर डॉलरों की वर्षा कर देगा?''
मैंने हँसते हुए कहा, ''देखो कर ही रहा है ना? तुम मुझे पार्टनर बनाना चाहती हो। दो वर्ष में मिलियन डालर की बात कर रही हो।''
''पर तुमको काम तो करना होगा? तुम क्या सोचती हो कि पलंग पर सोये-सोये डालर आ जाते हैं?''
''नहीं मगर साधना तो वही ऊपरवाला चुटाता है न? अब इसका उपयोग करना न करना व्यक्ति का अपना निर्णय होता है।''
''तुम बहुत बेवकूफ़ हो और साथ ही भावुक भी।''
''मुझे तुम बेवकूफ़ लगती हो औऱ हद से अधिक संवेदनशील जा अपनी निजता को। एक व्यापक कार्य में प्रसारित कर रही है।''
वह हँसने लगी, ''मुझे तुम हमेशा याद रहोगी।''
तब तक कोई धमाधम सीढ़ियाँ चढता हुआ कमरे में आया, ''ममा, मुझे तुमसे बातें करनी हैं।''

अचानक मानो ज़ोर के तूफ़ान ने सारे खिड़की दरवाज़ों के पल्ले खड़खड़ाकर रख दिए हों।
''मैं प्रभा से बातें कर रही हूँ।''
''वह तो तुम पिछले दो घंटों से कर रही हो।'' बिटिना की आवाज़ तीखी थी।
''बिटिना सभ्यता से बातें करो।''
''नहीं, मैं असभ्य होना चाहती हूँ। मुझे तुमसे बात करनी है, अभी और इसी वक्त।''
''क्या खाने की मेज़ पर चम्मच पटककर तुमने काफी कुछ नहीं कह दिया?''

हेल्गा अड़तालीस की उम्र में चार बच्चों की माँ होकर भी पैंतीस से ज़्यादा की नहीं लगती थी। मक्खन-सी पीली चमकती हुई त्वचा चौड़ा ललाट, बड़ी-बड़ी आँखें जिनसे हमेशा चिंगारियाँ फूटती रहतीं। उन्नत नासिका, गुलाबी होंठ, कसे हुए जबड़े, चौड़ा कंधा, उठते-गिरते वक्षस्थल का सुडौल उभार, पतली कमर, कंधे तक लहराते भूरे बाल! आज शायद मैंने पहली बार उसे भरपूर नज़रों से देखा। पाँच फुट सात इंच का लंबा कद्दावर शरीर, मैंने मन ही मन कहा- अरे यह इतनी सुंदर है इस ओर मेरा ध्यान अब तक क्यों नहीं गया? हेल्गा को मैंने कभी मेकअप में नहीं देखा, न कभी चेहरा रगड़ते हुए, आज उसने काले रंग का घेरवाला स्कर्ट पहन रखा था और उसपर सफ़ेद सिल्क का लेसवाला ढीला-सा ब्लाउज़, कानों में एक मोती, गले में मोती की लड़, लंबी पतली उँगलियों में हीरे का छल्ला। बायें हाथ की मध्यमा में एक बड़ा-सा हीरे का नग।
''बैठो।'' बर्फ़-सी ठंडी आवाज़।
मैं उठने लगी।
''नहीं। तुम भी बैठी रहो प्रभा! तुम मेरी ज़्यादा आत्मीय हो बनिस्बत मेरे इस अपने खून के...''
''ममा! प्रभा के सामने मेरा अपमान मत करो। मैं तुमसे एकांत में बातें करना चाहती हूँ।''

मैं फिर उठने लगी। हेल्गा ने बाहें पकड़कर लगभग ज़बरदस्ती बैठा दिया। ओह उसकी वह लौह पकड़ और लाल लोहें से तपते हुए गाल! बिटिना के स्वर में थरथराहट थी। सूजी हुई आँखें, उतरा हुआ चेहरा।
''आई एम सॉरी ममा! डैड के सामने मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मुझे माफ़ कर दो ममा! प्लीज ममा!'' बिटिना सुबकने लगी।
''बिटिना? यदि रोना है तो अपने कमरे में जाओ और कुछ कहना है तो कह डालो। मेरे पास बकवास के लिए वक्त नहीं।''
बिटिना फिर तड़प उठी...
''तुम इतनी पत्थर दिल क्यों हो? ममा तुम जानती हो कि मैं अगले सप्ताह से न्यूयार्क कॉलेज में चली जाऊँगी और उसके बाद से मेरी अपनी अलग ज़िंदगी होगी, तुम लोगों से अलग! ''
''हाँ मालूम है तो!''
''जिमी भी एक साल में स्कूल की पढ़ाई ख़त्म कर लेगा और वह भी अपने कॉलेज में चला जाएगा या फिर नेवी में...''
''बिटिना! मेरे बच्चों में से कौन कब क्या करेगा यह मैं तुमसे अधिक जानती हूँ। तुम असल मुद्दे पर बात करो। बात की धुरी पर आओ बेकार बाहर चक्कर लगाते हुए वक्त मत बरबाद करो।''

तब डैड का क्या होगा, हम सब चले जाएँगे उनकी देखरेख कौन करेगा? ममा आप जानती हैं कि वे आपसे कितना प्यार करते हैं। उन्होंने हमें कितने प्यार से सबकुछ दिया एक पैसा भी डैड ने अपने लिए नहीं रखा।''
''तुम्हें डैड की वकालत करनी है या अपनी बात कहनी है?''
''ममा! हमलोग इतने अलग-अलग कैसे हैं? हम सबने आपको प्यार किया है ख़ासकर डैड ने। ओह!  डैड का क्या होगा? बुढ़ापे में उनके पास कोई नहीं होगा?''
''सुनो बिटिना! तुम वयस्क हो। अप्रैल में तुम इक्कीस साल की हो जाओगी। मैंने सोचा था कि तुमसे बिना कुछ कहे जाऊँ क्यों कि मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हारा दिल किसी कड़वे सच से आजीवन झुलसता रहे। तुम मेरी बेटी हो, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।''
''मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ, बहुत अधिक।'' बिटिना पलंग से उठकर हेल्गा की कुर्सी के हत्थे पर बैठ गई।

पृष्ठ- . . . . . . . .

क्रमशः

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।