प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित 
पुरालेख तिथि
अनुसारविषयानुसार हिंदी लिंक हमारे लेखक लेखकों से
SHUSHA HELP // UNICODE  HELP / पता-


पर्व पंचांग २१. ४. २००८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
राजेंद्र त्यागी की कहानी परमा परमजीत
फैक्टरी के सायरन ने मुँह आकाश की तरफ़ उठाया और भौ-भौ कर चिल्लाने लगा। मशीनों के चक्के कुछ देर के लिए थम गए। हाथ के औज़ार रख मज़दूरों ने खाने के डिब्बे उठाए और गेट की तरफ़ चल दिए। यह पाली समाप्त होने का सायरन था।
मुन्नालाल ने भी टाट के टुकड़े से चीकट हाथ रगड़े और थके-थके से अपने कदम गेट की तरफ़ बढ़ा दिए। मगर उसकी चाल में आज पहले जैसी वह गति नहीं थी। सायरन की आवाज़ आज उसे वैसा सुकून नहीं दे रही थी। जैसी की सात आठ घंटे मशक्कत करने के बाद किसी मज़दूर को देती है। सायरन की भौं-भौं उसे आज आसमान की तरफ़ मुँह उठा कर रोते किसी कुत्ते की तरह लग रही थीं। बाईं आँख भी यकायक हरकत करने लगी थी। इन अपशकुन संकेतों ने अजीब-सी एक आशंका उसके मन में ला धरी। उसे लगा कहीं माँ तो...! बहुत दिन से उसका कोई खत भी नहीं आया।

*

वीरेंद्र जैन का व्यंग्य
पानी बचाओ आंदोलन

*

मनोहर पुरी का आलेख-
भगवान महावीर

*

उमेश अग्निहोत्री का दृष्टिकोण
हिंदी मीडिया कहाँ जा रहा है

*

महेश कटरपंच की पर्यटन-कथा
अनोखा आकर्षण आम्बेर

*

 

पिछले सप्ताह

गुरमीत बेदी का व्यंग्य
नीलामी चालू रखिए

*

बैसाखी के अवसर पर कविता वाचक्नवी का
संस्मरण- बैसाखी यमुना और बच्चे

*

अर्बुदा ओहरी के सफ़ाई अभियान का प्रारंभ
रखरखाव रसोई का

*

बच्चों के लिए खोज कथाओं का अगला अंक
ऑस्ट्रेलिया की खोज

*

समकालीन कहानियों में
रवींद्र बत्रा की कहानी गुड्डा
वह एक कपड़े के अन्दर रूई भर कर बनाया गया गुड्डा है। एक गरीब और बूढ़ी औरत जो सालों से शहर से दूर अकेली रहती है, उसने इसे बनाया था। वह बूढ़ी औरत इस तरह के गुड्डे बना कर शहर के गिफ़्ट स्टोर पर बेचती है और उससे अपना गुज़ारा करती है। वह अक्सर दुकानदार से शिकायत करती है कि वह ठीक दाम नहीं देता। काफी देर तक अपने पोपले मुँह से बोलती हुई वह दुकानदार से मोल-भाव करती है और धमकी देती है कि वह इन शानदार गुड्डों को किसी दूसरे स्टोर वाले को बेच देगी। बेचने से पहले बड़ी हसरत से वह हर गुड्डे को निहारती, जिसे उसने बड़े अपनत्व और प्यार से बनाया था और फिर यह सोच कर कि ये गुड्डे किसी बच्चे के खेलने के ही काम आने वाले हैं, मन को समझाती और निश्चिंतता के साथ गुड्डा बेच कर चली जाती।

 

अनुभूति में- तसलीम अहमद, संजय पुरोहित, कृष्ण कुमार यादव, अजय कन्नूरकर निदान और भूपेंद्र सिंह कटाक्ष की रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
इमारात में दो तरह के समंदर हैं। एक पानी का और दूसरा रेत का। रेत समंदर जैसी क्यों और कैसे दिखाई देती है यह वही जान सकता है जिसने रेगिस्तान देखा हो। रेत में भी समंदर की तरह लहरें होती हैं, तूफ़ान होते हैं और जहाज़ होते हैं। रेगिस्तान के जहाज़ यानी ऊँट। दूर से देखने पर रेत में गुज़रता हुआ ऊँट, पानी में गुज़रते जहाज़ की तरह मद्धम डोलता है और धीरे-धीरे आँखों से ओझल हो जाता है, क्यों कि समंदर चाहे पानी का हो या रेत का दोनों ही होते हैं अंतहीन। समंदर में तूफ़ान आता है तो लहरे तट पर सर पटकती हैं पर रेत में तूफ़ान आता है तो यह पूरे शहर में बवाल करती फिरती है। कार के शीशे पर गुलाल की तरह बरसती है, चौड़ी सड़कों पर बवंडर की तरह दौड़ती है और घरों के बरामदों में ढेर की तरह आ जुटती है। यहाँ पानी का समंदर होता है हरा और रेत का समंदर लाल। दूर क्षितिज पर जब यह हरा समंदर नीले आसमान के साथ क्षितिज रेखा बनाता है तो मुझे क्षितिज के पार भारत का समंदर याद आता है, जो हरा नहीं नीला होता है और बहुत दूर तक आसमान के साथ बहते हुए उसमें विलीन हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे हम भारतवासी दूर दूर तक हर देश में उस देश के हवा पानी के साथ घुल-मिल जाते हैं। -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस माह विकिपीडिया पर
निर्वाचित लेख- होली

सप्ताह का विचार
पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है -महावीर

क्या आप जानते हैं? नील नदी की लंबाई पृथ्वी की त्रिज्या से अधिक है। नई खोजों में पता लगा है कि अमेज़ॉन इससे भी ज्यादा लंबी नदी है।
- अमित प्रभाकर

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की पाक्षिक
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

blog stats
 

१४ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०