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पर्व पंचांग २६. ५. २०८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
किरण राजपुरोहित नितिला की कहानी मशीन

गाड़ी में बैठ कर दीपांकर ने पास बैठी ममता को एक नज़र देखा। उदास ममता सूनी आँखों से दूर कहीं देख रही थी शून्य में। दीपांकर का मन हुआ उसको अपने सीने में भींच ले लेकिन वह जानता है ऐसे में वह फफक पड़ेगी। कुछ पल यों ही देखता रहा। हौले से कंधे को थपथपा दिया। गर्दन घुमा उसने दीपांकर को डबडबायी आँखों से देखा जिनमें कई प्रश्न आतुरता से जवाब के लिए तैर रहे थे। ''कोशिश करेंगे डॉक्टर'' यही कह पाया। वह खुद नहीं समझ पाया कि उन शब्दों में क्या है सूचना, सांत्वना या आशा? लेकिन ममता जानती है कि ये केवल सूचना है उसके जीवन में शनै: शनै: प्रवेश करते अंधकार के और निकट आने की। गाड़ी अपनी गति से चली जा रही थी। निस्तब्धता ने अपना अधिकार जमाए रखा।

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प्रेम जनमेजय का व्यंग्य
पानी डरा रहा है
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स्वाद और स्वास्थ्य में
ख़ास-उल-ख़ास खजूर
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ईमेल का खेल

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साहित्य समाचार में
साहित्यकार गुलशन मदान के सम्मान में ग़ज़ल गोष्ठी और नार्वे में स्वाधीनता दिवस,
वरिष्ठ कवियत्री प्रेमलता जैन तथा संगीतकार नरेन्द्र सिंघा नन्दी को स्व. प्रेम जी प्रेम स्मृति सम्मान
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति सम्मान से अलंकृत,

हाइकु-२००९ व हिन्द-युग्म के लिए रचनाएँ आमंत्रित

 

पिछले सप्ताह

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हास्य-व्यंग्य में वीरेन्द्र जैन लिख रहे हैं
गरमी के खिलाफ़ मौसम मंत्री का बयान

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सामयिकी में मनोहर पुरी का आलेख
बुद्ध पूर्णिमा

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डॉ अश्विनी केशरवानी का अमरकंटक यात्रा संस्मरण
चरो रे भैया, चलिहें नरबदा के तीर

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पूर्णिमा वर्मन का धारावाहिक
अंतरजाल पर लेखन की लगाम

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समकालीन कहानियों में
अरुण प्रकाश की कहानी नहान

मैं जब उस मकान में नया पड़ोसी बना तो मकान मालिक ने हिदायत दी थी - ''बस तुम नहान से बच कर रहना। उसके मुँह नहीं लगना। कुछ भी बोले तो ज़बान मत खोलना। नहान ज़बान की तेज़ है। इस मकान में कोई १८ सालों से रहती है। उसे नहाने की बीमारी है। सवेरे, दोपहर, शाम, रात। चार बार नहाती है। बाथरूम एक है। इसलिए बाकी पाँच किरायेदार उससे चिढ़ते हैं। उसे नहान कह कर बुलाते हैं। वैसे वह अच्छी है। बहुत साफ़ सफ़ाई से रहती है। मैंने मकान मालिक की बात गाँठ बाँध ली। मैंने सोचा मुझे नहान से क्या लेना देना! मुझे कितनी देर कमरे पर रहना है? दस बजे ट्रांसपोर्ट कंपनी के दफ्तर जाऊँगा फिर दस बजे रात में उधर ही से खाना खाकर लौटा करूँगा। मेरा परिवार गाँव में रहता है। वहाँ मेरे माता पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं।

 

अनुभूति में- सुमित्रानंदन पंत, रामेश्वर कांबोज हिमांशु, सुधीर विद्यार्थी, सतपाल ख्याल और राम निवास मानव की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
मौसम कुछ अजीब सा है। पिछले दो दिन सुहावने रहे उसके पहले दो दिन अच्छे गर्म रहे थे। इमारात में जून तक मौसम सुंदर रहता है। दोपहर की कड़क गरमी भूल जाएँ तो सुबह आराम से बिना पंखा चलाए लॉन में चाय पीते हुए बैठा जा सकता है। शुक्रवार छुट्टी की सुबह जब भारत से फ़ोन आते हैं तो लोग पूछते हैं कैसी गरमी हो रही है? और हम कहते हैं मौसम सुहावना है। अजीब सी बात है कि जब भारत में जुलाई अगस्त की बरसात गिर रही होती है, हम भयंकर गरमी और उमस से जूझ रहे होते हैं। हमारे घरों में खिड़कियों के काँच अंदर से ए.सी. की ठंड और बाहर से गरमी की मार खाकर धुँधले हो रहे होते हैं। शाम तक तो उनके भी पसीने छूट जाते हैं। ऐसे अगस्त के महीने में भारत से फोन आता है-- यहाँ खूब बारिश हो रही है वहाँ बरसात शुरू हुई या नहीं, तो हम चौंकते हैं बरसात? यहाँ बरसात नाम का कोई मौसम नहीं? सिर्फ दो मौसम होते हैं। पहला आरामदायक गरमी और दूसरा कष्टदायक गरमी। इसी कष्टदायक गरमी में मुझे लग गया सर्दी बुखार और मेरी कविताओं के रूसी अनुवादक गुराम ब्रौन भयंकर हैरान! पूछते हैं- "हे भगवान, आप तो इतने गरम देश में रहती हैं फिर भी आपको सर्दी कैसे हो गई?" अब मैं क्या जवाब दूँ? -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- सावित्री बाई खानोलकर

सप्ताह का विचार
यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देख सकेंगी?
— रवींद्रनाथ ठाकुर

क्या आप जानते हैं? सत्रहवीं शती में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के आक्रमण के बाद वृंदावन में कृष्ण की राधा-रमण नामक केवल यह एक प्रतिमा बची थी।

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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