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रचना प्रसंग

अंतरजाल पर लेखन

अंतरजाल पर लेखन की लगाम
--पूर्णिमा वर्मन

यह लेख क्यों—
जिस तरह ईमेल में रोज़ रचनाएँ आती हैं उसे देखकर लगता है कि लिखने की सामर्थ्य और इच्छा कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करने वालों में भरी हुई है। लेकिन ये रचनाएँ पढ़ने के बाद उनको डिलीट के कचरे में डालते हुए दर्द भी काफ़ी होता है।

लेखन में वह क्या है जिसके बिना लेखन की सार्थकता नहीं, जिसके बिना लेखन रचना नहीं, जिसके बिना साहित्य या पत्रकारिता की दुनिया में कोई मूल्य नहीं यह बहुत ही कम लोग जानते हैं। बहुत से लोग जानना भी नहीं चाहते। बहुत से लोग अलग अलग चिट्ठे लिखते हैं चैट कार्यक्रमों पर लेख का विज्ञापन करते हैं अपने दोस्तों को प्रतिक्रिया लिखने के लिए आग्रह करते हैं और जो २० से ३० लोग अपनी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं उसी में खुश हो जाते हैं। विश्वजाल पर आज ऐसे लेखकों की एक समांतर श्रेणी बन चुकी है। ऐसा नहीं कि चिट्ठे लिखना कोई बुरी बात है, अनेक विश्व प्रसिद्ध लेखकों और पत्रकारों के चिट्ठे हैं पर अगर चिट्ठे पर ३० प्रतिक्रियाएँ ही लेखन का लक्ष्य है तो यह लेख कुछ काम का नहीं है।

यह लेख उन लोगों के लिए है जो यह जानते हैं कि उनमें प्रतिभा है फिर भी वे साहित्य और पत्रकारिता की प्रमुख धारा से नहीं जुड़ सके हैं। न जाने क्यों प्रथम श्रेणी की पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं को स्थान नहीं मिल पाता। यह लेख उन लोगों के लिए है जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सही दिशा की तलाश में हैं और यह लेख उन लोगों के लिए है जिन्हें लगता है कि उनके अंदर कोई साहित्यकार और पत्रकार सोया हुआ है पर वे जगा नहीं पा रहे हैं। यह लेख उन लोगों के लिए है जिन्होंने लिखना तो शुरू किया है पर लेखन में वह ठहराव और तीखापन नहीं जिससे वे संपादकों का दिल जीत कर पाठकों की दुनिया पर राज कर सकें। यह लेख उन लोगों के लिए है जिन्हें साहित्य पढ़ने का शौक है, लिखने की सामर्थ्य है, हिन्दी के विकास में एकजुट होने की इच्छा है।

स्वतंत्र लेखक और पत्रकार होने के लिए कुछ विशेष तकनीक और कौशल की आवश्यकता होती है। सबसे पहला पाठ यह है कि जब कोई रचना संपादक के पास पहुँचती है तो उसकी रुचि इसमें नहीं होती कि आप कौन हैं। उसके मन में केवल एक बात होती है कि क्या इस रचना का स्तर ऐसा है कि उसका उपयोग पत्रिका में किया जाए और क्या यह उसके पाठकों को रिझा सकती है। इस स्तर तक पहुँचना मुश्किल नहीं है बशर्ते कुछ निर्देशों का सावधानी से पालन किया जाए और लेखन को व्यवस्थित किया जाए।

व्यापक दृष्टि की आवश्यकता
लेखन तकनीक को ठीक से जानने और उसका विकास करने के लिए व्यापक दृष्टि की आवश्यकता होती है। व्यापक का अर्थ यह नहीं कि अपने गाँव के विषय में सोचना छोड़ कर विदेश की धरती पर उड़ना शुरू कर दें बल्कि यह है कि किसी भी वस्तु के विषय में गहरी जानकारी प्राप्त करने की और उसके विभिन्न पहलुओं को समझने की इच्छा का विकास करें। स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं के निरंतर अध्ययन से इसे विकसित किया जा सकता है। अपने आसपास की दुनिया का ठीक से अवलोकन करने, दूसरे के पक्ष व विचारों को समीक्षात्मक दृष्टि से देखने और समझने की कोशिश करने तथा उनके पीछे छुपे तथ्यों को जानकर सच और झूठ की पहचान करने से दृष्टि में व्यापकता का विकास किया जा सकता है।

लेखक और पत्रकार बनने की इच्छा रखने वालों के लिए पहला नियम है पढ़ो- पढ़ो- पढ़ो। अच्छा लेखन पढ़ते हुए हमारी लेखन शक्ति का भी विकास होता है। हमें यह भी पता चलता है कि दूसरों की तुलना में हम कैसा लिख रहे हैं। पढ़ने की आदत हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर भी देती है। संसार के बड़े से बड़े लेखक और पत्रकार भी कुछ न कुछ पढ़ने का समय नियमित रूप से निकालते हैं। अपनी प्रकृति से मिलता जुलता लेखक अपना सबसे बड़ा दोस्त होता है इसलिए सबसे पहले पढ़ें- पढ़ें- पढ़ें। जिसका पढ़ना रुक गया उसका विकास भी रुक गया। इसलिए पढ़ना लेखक और पत्रकार की पहली ज़रूरत है।

लेखन की ओर कदम बढ़ाते हुए यह ठीक से जान लेना चाहिए कि चाहे कितनी भी स्वाभाविक लेखन प्रतिभा और क्षमता किसी में हो, बिना अभ्यास और सही मार्गदर्शन के न तो उसका सही उपयोग किया जा सकता है और न ही किसी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। जबतक आप किसी ऐसी संस्था या वातावरण में काम न कर रहे हों जहाँ प्रतिभा और क्षमता के विकास का भरपूर अवसर हो, सारी प्रतिभा और क्षमता सदा के लिए सोती ही रहेगी। इसलिए अकेले झख मारने की बजाय किसी न किसी के साथ जुड़ें और अपना लक्ष्य तलाशें। वेब इसके हज़ारों अवसर देता है।

विविध विषयों में शोध और अभ्यास
अपनी क्षमता के सर्वांगीण विकास के लिए यह जानना ज़रूरी है कि पत्रकारिता कितने प्रकार की हो सकती है। जबतक यह न मालूम हो कि क्या क्या लिखा जा सकता है और किस दिशा को अपनाया जा सकता है, यह नहीं जाना जा सकता कि हमारी रुचि किस किस विषय में हो सकती है। अधिकतर लोगों के लेखन की शुरुआत कविताओं से ही होती है। उस समय हम समझने लगते हैं कि हम विशेष है फिर देखा देखी कहानियाँ लिखना शुरू होता है। बिना यह जाने हुए कि हमने वनस्पति शास्त्र में एम.ए. किया है तो हम कहानी लेखक से बेहतर वनस्पति शास्त्र के लेखक हो सकते हैं, कई साल तक लोग अपना हाथ कहानियों में आज़माते ही रहते हैं। अगर आपके पास कोई विशेष ज्ञान है जैसे समाजशास्त्र, इतिहास, पर्यावरण, वनस्पति-शास्त्र, मेडिकल साइंस, इंजीनियरिंग या विज्ञान की डिग्री तो आप उसके अद्वितीय लेखक हो सकते हैं। वनस्पति शास्त्र में लेखक यह नहीं लिखता कि फूल के कितने अंग होते हैं बल्कि यह लिखता है कि किस फूल का साहित्य या समाज में क्या महत्व है, वैज्ञानिक दृष्टि से वह हमारे कितने काम का है और वह घरों और सड़कों की शोभा बढ़ाने में किस प्रकार उपयोगी हो सकता है। इसी प्रकार इतिहास लेखक यह नहीं लिखता कि सिकंदर ने पोरस से किस सन में किस जगह युद्ध किया था बल्कि वह ऐसी वस्तुओं के इतिहास के रोचक तथ्य निकाल सकता है जिसकी आम पाठक को जानकारी नहीं। उदाहरण के लिए “मौरावां की रामलीला जहाँ रावण कभी नहीं मरता।” इस प्रकार के रोचक तथा शोधपूर्ण विषय लेखक को विशेषज्ञ का स्तर प्रदान करते हैं।

तो बिलकुल शुरू में अपने को किसी एक विषय में सीमित कर लेने की बजाय बहुत सी दिशाओं में कुछ न कुछ काम करना बेहतर रहता है। लेखन में व्यापक दृष्टिकोण के बाद दूसरा कदम शोध का होता है। यह लेखक के अपने ज्ञान और अनुभव का विस्तार तो करता ही है लेख को भी पठनीय बनाता है। यह लेखक में वह आत्मविश्वास उत्पन्न करता है जिससे हर नए विषय पर लेख को लिखने का उत्साह और हिम्मत मिलती है।

वेब के लिए विशेष
ऊपर जो कुछ भी कहा गया वह तो बहुत साधारण बाते हैं और वेब के सिवा अन्य लेखन पर भी लागू होती हैं पर जब हम वेब की बात करते हैं तो सबसे पहले वेब के उपकरणों का ध्यान रखना ज़रूरी है। अपना कंप्यूटर, अच्छा नेट कनेक्शन, वेब पर हिन्दी टाइप करने का अभ्यास, अपने लेखन को विषयवार फोलडरों में सहेजने की समझ, ईमेल भेजने की जानकारी, ईमेल में कौन सी ग़लतियाँ हो सकती हैं उसकी सावधानी रखना ज़रूरी है। इनके विषय में अगले अंक में।

१९ मई २००८

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