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कहानियाँ

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के इस स्तंभ में प्रस्तुत है भारत से
राजी सेठ की कहानी— तुम भी


रात जब उसकी नींद खुली तो आज फिर वह बिस्तर पर नहीं था। दो क्षण अडोल पड़ी रही। बाथरूम की दिशा में कान दिए...रात खामोश थी...कोई आवाज़ न होने से उसे लगा, दिन होने में देरी है...बीच रात का पहर है...सन्नाटे से भरा।

दरवाज़े की साँकल हलकी-सी बजी...खिस्स-खिस्स की ध्वनि। पूर्व ज्ञान न होता तो शायद समझ न पाती कि बोरी घसीटी जाकर दरवाज़े के पीछे रख दी गई है। प्राण जैसे कहीं और बँधे हों, ऐसी सीने के भीतर टँगी जाती साँस,
...चुप पड़ी रही।

वह आया...सुराही से पानी उँड़ेला...गटगट पिया और धीरे, बहुत धीरे खाट पर बैठ गया।

''क्यों करते हो तुम यह पाप?'' पत्नी ने उठकर उसकी कलाई पकड़ ली। पर यह उसके अपने हाथ में अपनी ही कलाई थी। पति की कलाई पकड़कर यों कह डालने का साहस उसमें नहीं था...उस क्षण का सामना करने का...पति को लज्जित करने का...बीच चाहे अँधेरे का परदा था...पर अँधेरे में, सन्नाटे में यह सब अधिक साफ दिखता है, साफ सुना जाता है।

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