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“दुश्मन का पहले पता करना है, फिर वार”, दोसाबीन महसूस करता कि वह बहुत ज्ञान की बात कह रहा है। परन्तु ये बेसिर पैर की बातें श़ाहनाज़ को सान्त्वना नहीं दे पा रही थीं।

“तुम पास रहकर मुझ जैसी भोली भाली मित्र को नहीं जान पा रहे हो तब दूर जाकर उस शख्स को दुश्मन कैसे कह सकते हो जिसे तुमने देखा नहीं।”

“तुम मुझे जान से ज्यादा अजीज हो बुलबुल! तुम मेरी हो चुकी हो। बस शादी करना ही तो बाकी है। बस दो चार दिन की ही तो बात है।” दूसरे दिन मदरसा बन्द था। श़ाहनाज़ अपने मंगेतर की बाहों में कब सोयी कब जागी उसे पता नहीं चला।

वह दोनो अपने मन में विवाह कर चुके थे।

वह वहाँ स्तब्ध खड़ी थी। तभी एक गधागाड़ी आयी। उसका ध्यान भंग हुआ। श़ाहनाज़ वापस मदरसे लौट आयी।

धार्मिक मदरसे में बच्चों ने आना शुरू कर दिया था। प्रायः  सुबह से ही समीप ही बसे सैनिक कैम्प से गोलाबारी का शोर जब श़ाहनाज के कानों तक आता वह सहम जाती थी। उसके मुख से निकल पड़ता,

“हाय अल्लाह! क्या होगा इस मुल्क का! ”

वह बाद में सोचती कि किसी ने सुन तो नहीं लिया। श़ाहनाज ने बुरके की जाली से आसपास देखा। वहाँ कोई नहीं था। दीवारों के भी कान होते हैं, वह भली भांति जानती थी। मदरसा  सैनिक कैम्प के पास था। कहा जाता है कि मदरसे के सैनिक ठिकानों के पास होने का कारण था कि आने वाले समय में यही बच्चे सैनिक बनेंगे। 

श़ाहनाज़ को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब उसकी सह अध्यापिका अफ़साना के पति को मृत्युदण्ड की सजा दी गयी थी। मृत्युदण्ड को देखने के लिए भरी बाजार में लोग जमा थे। श़ाहनाज़ अपनी सहेली अफ़साना के साथ गधेगाड़ी में बैठकर आयी थी। अफ़साना के पति के दोनो हाथ पीठ के पीछे बँधे थे। आँखों में पट्टी बँधी थी।

अनेकों गधेगाड़ियों में महिलायें बैठी थीं। कितना दर्दनाक था वह दृश्य। धर्मान्ध होकर वहाँ के शासक कैसे नरभक्षी बने जा रहे हैं। अफ़साना बुदबुदाई,

“जहाँ इनसान की कोई कीमत नहीं वह समाज, वह धर्म किस काम का”

साफा पहने लम्बी बढ़ी दाढ़ी में एक सैनिक ने अफ़साना के पति के पीठ पर गोली मारी। वह आगे की ओर लुढ़क गया।

अफ़साना चीखी और बेहोश हो गयी थी।  

°°°

श़ाहनाज़ को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब वह यहाँ बालिकाओं को  पढ़ा रही थी।

अफ़साना का बयान लेने सिपाही के साथ मुल्ला गुलरेज़ भी वहाँ आये थे। जांच पड़ताल के समय अफ़साना के साथ साथ–श़ाहनाज के सर से बुरका हटवाया गया था। जब मुल्ला गुलरेज़ की नजर श़ाहनाज़ के खूबसूरत चेहरे पर पड़ी थी तब उनका मन बेइमान हो उठा था। श़ाहनाज़ के लाख बताये जाने पर कि उसकी शादी की बात आत्मघाती गोरिल्ला दस्ते के सिपाही दोसाबीन के साथ हो चुकी है जो सीमा पार युद्ध में गया हुआ है,  मुल्ला गुलरेज़ न माने और आये दिन जोर जबरदस्ती करते। पिता गोरिल्ला युद्ध में मारे गये थे और माँ खुले शरणार्थी शिविर में शीत लहर में मारी गयी थीं। दुखों के पहाड़ एक एक करके उस पर ढह रहे थे।

दोसाबीन की भी बहुत दिनों से कोई खबर नहीं आयी। बारबार वह दोसाबीन द्वारा दिए गए उपहार स्वरूप रेडियो को द्वार बन्द करके सुना करती थी। कहीं किसी ने यह जान लिया कि श़ाहनाज़ रेडियो पर दूसरे देशों के चैनल सुनती है तो आफ़त आ जाती। दूसरे देशों के रेडियो और टी वी देखने की मनाही थी। मुल्ला गुलरेज़ की पहले से दो पत्नियाँ थीं। परन्तु कोई सन्तान नहीं थी। तब श़ाहनाज़ ने पूछा था, “जब पहले से ही दो पत्नियां हैं फिर क्यों तीसरी शादी करना चाहते है?”

“औरतें गुलदस्तों की तरह होती हैं। फिर इस्लाम में तो चार शादी की इजाजत है।” मुल्ला गुलरेज़ अपने जवाब से अपने आप में फूले नहीं समा रहे थे जैसे उन्होंने अपने बातूनी तीर से कोई शिकार मार दिया  हो। यह जानते हुए भी कि वह अब पिता नहीं बन सकते फिर भी अपने को फ़न्नेखाँ समझते थे।

श़ाहनाज़ भली भांति जानती थी कि आये दिन लोग धर्म के और इस्लाम के नाम की दुहाई देकर अपने बुरे इरादे पूरे करना चाहते हैं। मुल्ला गुलरेज़ इसके अपवाद न थे। अभी भी अफ़गानिस्तान और दूसरे देशों में औरतो को दूसरे दर्जे का शहरी समझा जाता है। श़ाहनाज़ मरती क्या न करती। असहाय अनाथ श़ाहनाज़ को लोग परेशान करने से नहीं चूकते। अपने पिता के हम उम्र गुलरेज़ के समाज में प्रभाव और जुल्म के कारण श़ाहनाज़ विवाह के लिए मजबूर हो गयी थी।

श़ाहनाज़ के पाँवों मे शादी की बेड़ियाँ पड़ गयी थीं। वह स्कूल के बच्चों में अपना पूरा ध्यान लगाती थी। कुछ महीने के लिए धर्म–प्रचार करने  मुल्ला गुलरेज़ विदेश चले गये। जैसे–जैसे समय व्यतीत होता श़ाहनाज़ अपने शरीर में भारीपन महसूस करती। उसे पेट में आये दिन दर्द भी होता। उसने अपनी सहेली अफ़साना को बताया। अफ़साना ने उसे एक दाई को दिखाया जिसने श़ाहनाज़ को माँ बनने की सूचना दी। कभी तो श़ाहनाज़ खुश होती कि उसका साथ देने वाला आने वाला है। और कभी यह सोचकर सहम–काँप जाती कि यदि मुल्ला गुलरेज़ ने यह नहीं स्वीकारा कि होने वाला बच्चा उसका नहीं है तब क्या होगा?  जो भी  हो वह बच्चे को जन्म देगी, उसने निश्चय कर लिया था।

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