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दुकानदार बोली की भोली-भाली और गँवारू बात पर मन ही मन हंसा। उसने बोली के सामने रंग-बिरंगे पैक में लिपटे कई तरह के साबुन रख दिए -"देखो, यह दस रुपये का है, यह पंद्रह रुपये का है, यह आठ रुपये का है।"
लेकिन बोली की नजर नीचे वाले रैक पर रखे साबुन की ओर लगी हुई थी। उसने सोचा -"दुकानदार उस साबुन को नहीं निकाल रहा है। जरूर वह सस्ता और बढ़िया वाला साबुन होगा। मुझे मूर्ख समझता है। देहात की हंू तो क्या हुआ, मेरे पास भी दिमाग है! बोली ने उस साबुन की तरफ इशारा करते हुए पूछा -"वह साबुन कित्ते का है?"
दुकानदार बोली पर तरस खाता हुआ समझाने के लहजे में बोला -"अरे, यह तुम्हारी मालकिन का साबुन नहीं है। यह तो यहीं बनता है। यह विदेशी थोड़े ही है! इसे यहां की कोई मालकिन नहीं मँगाती। अगर ले गई तो जरूर मालकिन के हाथों पिटोगी।"
लेकिन देहाती सोच वाली उस लड़की को दुकानदार की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। जरूर यह मुझे मूर्ख बना रहा है। अब यह मुझे ही चराने चला है कि यह विदेशी नहीं है। अब साबुन भी देशी और विदेशी होने लगा! अगर पिटूँगी तो मैं पिटूँगी और अपनी बात से पिटूँगी। इसका क्या? बड़ा हमदर्द बनने चला है।
बोली ने कहा -"उसे वही साबुन चाहिए। कित्ते का है?"
दुकानदार बिना किसी पैक में लिपटे उस साबुन को निकाल लाया। उसने बोली को समझाने का आखिरी प्रयास करते हुए कहा -"यह बहुत सस्ता है। केवल दो रूपये का है। लेकिन तुम्हारी मालकिन के लिए नहीं है। ले जाना है तो ले जाओ। लेकिन देख लेना, आज तुम पिटकर रहोगी।"
बोली ने वह साबुन ले लिया। ऐसा ही तो साबुन उसके मामा ने उसे लगाने को दिया था। देखो तो कितना बड़ा और कितना कड़ा है। यह तो बहुत दिनों तक चलेगा होगा। मालकिन क्यों पीटेंगी! सस्ती चीज किसे पसंद नहीं आएगी? मालकिन के पास ज्यादा पैसे हैं क्या? पैसा तो सबको प्यार होता है। कौन नहीं चाहता कि दो पैसे बचें और उसका कोई और सामान आ जाए!
बोली वह साबुन और बाकी पैसे लेकर तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में वह सोचती जा रही थी कि आज मालकिन उससे जरूर खुश होंगी। कितने सस्ते में साबुन आ गया!
हालांकि उसके घरवालों की औकात में इतना सस्ता साबुन भी नहीं था। लेकिन कहां बीस रुपये और कहां दो रुपये! मालकिन के लिए यह साबुन कितना सस्ता पड़ेगा।
मालकिन को शायद इस साबुन के बारे में पता नहीं होगा। अगर वह इसके बारे में जानती होतीं तो वह भी यही साबुन खरीदतीं।
आखिर कौन आदमी ऐसा नहीं होगा जो सस्ती चीज नहीं खरीदना चाहेगा और वैसे भी इसका करना क्या है, देह में ही तो लगाना है!
बोली जैसे ही दरवाजा धकेलकर घर में घुसी वैसे ही उसके कानों में मालकिन की आवाज पड़ी। मालकिन शायद पहले भी पुकार चुकी हैं।
मालकिन ने टब में लेटे-लेटे ही चिल्लाकर कहा -"बोली, साबुन ले आई। जल्दी दो। एक साबुन लाने में कितना समय लगती है यह लड़की!"
मालकिन गुस्से में थीं। शायद काफी देर से उसका इंतजार कर रही थीं। आखिर कोई आदमी कितनी देर तक टब में नंगा लेटा रहेगा। कोई मिलने के लिए आ जाए तो!
बोली जोर से बोली -"हां, मालकिन!"
वह दौड़कर बाथरूम के दरवाजे के पास गई और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगी ताकि मालकिन को साबुन पकड़ा सके।
मालकिन ने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा खोला -"लाओ, दो।"
बोली ने साबुन मालकिन के हाथ में पकड़ा दिया। बोली को दरवाजे के सामने वाली दीवार में जड़े शीशे में मालकिन की नंगी छवि दिख गई।
मालकिन कितनी गोरी और सुंदर है! एकदम उजली! उजली मिट्टी से भी उजली! यह सोचकर बोली अपराध भाव या अन्य भाव से शरमा गई। बोली वहां से हटने ही वाली थी कि कठोर और जोरदार आवाज सुनकर कांप गई।
"बोली तुम यह क्या पत्थर उठा लाई हो? किसने तुम्हें यह लाने को कहा था।"
बोली जहां की तहां खड़ी रह गई। उसने तो सोचा था कि मालकिन यह साबुन देखकर ज्यादा से ज्यादा उसका दाम पूछेंगी और दाम सुनकर खुश हो जाएँगी। लेकिन लगता है कि आज उसकी खैर नहीं।
अगले ही क्षण दरवाजा खुला और मालकिन काँख में तौलिया दबाए प्रकट हुइंर्। मालकिन का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था।
मालकिन ने दरवाजा खोलते ही बोली के बाल पकड़कर दूसरे हाथ से अनगिनत तमाचे जड़ दिए -"यह पत्थर तुम्हें किसने लाने को कहा था! बाज़ार में तुम्हें केवल यही साबुन मिला!"
"और साबुन बहुत महँगे थे। मैंने सोचा, यह सस्ता होगा। दो रुपये का ही तो है।"
बोली केवल इतना ही बोल पाई। डर के मारे उसका कलेजा बैठा जा रहा था।
मालकिन का गुस्सा उसने आज पहली बार देखा था। पहले भी उससे छोटी-बड़ी ग़लतियाँ हुई हैं लेकिन मालकिन ने उस पर हाथ नहीं उठाया। आज पता नहीं, मालकिन इतना गुस्सा क्यों कर रही हैं!
लगता है, उससे भारी भूल हो गई। पता नहीं, वह घर से निकाल देंगी या मारते-मारते जान ले लेंगी।
"जंगली-गंवार! तुम्हें सस्ता साबुन लाने को किसने कहा था! बीस रुपये ले गई थी, उसका क्या किया? यह गंवार लड़की हमारी इज्जत डुबाकर रहेगी। किसी को पता चल गया कि मेरे घर में यह साबुन मंगाया गया है तो सोसाइटी में नाक बचानी मुश्किल हो जाएगी। यह गंवार लड़की क्या समझेगी।" मालकिन इतना कहकर दो-चार तमाचे और जड़ने के बाद थोड़ी शांत हुई।
"गलती हो गई, मालकिन! मैंने सोचा कि..." बोली आगे कुछ न बोल सकी।
"गलती की बच्ची! तुमने दुकानदार को यह तो नहीं बताया कि यह साबुन किसने मँगाया है? पता नहीं, दुकानदार भी क्या सोचता होगा!"
"नहीं मालकिन, मैंने कुछ नहीं बताया।" बोली ने सफाई दी।
"अब जाओ। इस साबुन को बदलकर दूसरा साबुन ले आओ। बोलना - यह नहीं, अमेरिका से जो साबुन आता है वह चाहिए। समझीं! टेबल क्लॉथ के नीचे दस रुपये का नोट रखा है, उसे भी लेती जा। पच्चीस रुपये में देगा।"
बोली की जान में जान आई। चलो, मालकिन से इतने सस्ते में मेरी जान छूटी। मालकिन कितनी नरमदिल हैं।
बोली और पैसे लेकर फिर से दुकान की ओर जाने लगी। रास्ते में पता नहीं क्या सोचकर उसकी रुलाई छूट गई। शायद उसे आदमी की तरह साबुन का भी फर्क समझ में आ गया था।

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(आजकल से साभार)

९ नवंबर २००३

 
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