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मगर अमृता ने अपनी किश्ती लहरों के हवाले कर रखी थी। लहरें जहाँ चाहतीं, अमृता चली जाती और मजे की बात जहाँ लहरें ले जातीं, अमृता को वहीं अच्छा लगने लगता। अमृता जानती थी कि लहरें एक दिन उसे जरूर क्षितिज पर ले जाएँगी, जहाँ से वह आसमान को छूकर देख सकेगी। जहाँ से वह लोचदार मिट्टी लाकर घर बना सकेगी। दिन में अमृता सूरज का ताप लेती। ताप बढ़ने लगता, तो कोई बड़ी लहर आकर अमृता को अपने आँचल से पलभर के लिए ढकती, भिगोती और लौट जाती।

रात होती तो अमृता चाँद को देखा करती, चाँद से बातें करती और चाँदनी पिया करती। वह इतनी छककर चाँदनी पीती कि उसके हृदय का खाली घट अमृत से भरने लगता, भर-भरकर छलकने लगता, तब वह समंदर में देखती, तो लगता चाँदनी का अमृत समंदर की लहरों पर बिछ गया है। जब पंद्रह दिन चाँद नहीं होता, तब अमृता अपने छलकते अमृत घट में से चाँदनी पीती और ऐसे ही जीती।

एक दिन लहरों ने अमृता को एक दूसरी किश्ती के करीब पहुँचा दिया। किश्ती अकेली न थी, उस पर सवार भी था। जब अमृता ने किश्ती-सवार को देखा, तो देखती ही रह गयी। अमृता को लगा कि चाँद, आसमान से उतरकर किश्ती-सवार के चेहरे पर आ गया है। अब वह हाथ बढ़ाकर चाँद को छू सकती है, पर अमृता को हाथ बढ़ाने की जरूरत ही न पड़ी। चाँद खुद ही अमृता के करीब आ गया और अमृता करीब आए चाँद के होंठों से चाँदनी पीने लगी। दोनों मिले और पानी पर एकदम से जाने कैसे, जरा देर को घर बन गया।

ठीक उसी वक्त आसमान में स्वाति नक्षत्र चमका। अमृता ने देखा जल की सतह पर तैर रही एक सीपी की प्रतीक्षा सार्थक हुई। उसने स्वाति की बूँद को ग्रहण किया, अपने-आपको बंद किया और डुबकी लगाती हुई समुद्र तल में जाकर बूँद को मोती का रूप देने में लग गई।

अमृता सोचने लगी काश वह भी इस सीपी-सी स्वाति की बूँद पा ले और समंदर के अतल तल में जाकर कोई मोती गढ़े।
तभी लहरों ने अमृता को किश्ती-सवार से दूर ले जाकर पटक दिया।

किश्ती-सवार उसे फिर मिले-न-मिले, यह सोचकर अमृता बेचैन होने लगी, पर तभी उसने हवा में किश्ती-सवार की आवाज सुनी, अमृता ने भी कुछ कहा, जो किश्ती सवार ने हवा में सुना। ऐसा बार-बार होने लगा। हवा दोनों के प्यार को समझती थी, इसीलिए दोनों की आवाज एक-दूसरे तक पहुँचा देती थी।

फिर किश्ती सवार ने चाँद की चाँदनी पर अमृता को प्यारभरा खत लिखा। अमृता ने भी उसी प्यार से जवाब दिया। चाँदनी भी उन्हें प्यार करती थी और उनके खत पहुँचाया करती थी। कभी हवा के जरिये, तो कभी चाँदनी पर खत लिखकर दोनों बहुत कुछ कहते, बहुत कुछ सुनते। अब अमृता आसमान के चाँद को नहीं देखती, चाँदनी नहीं पीती। अब वह सिर्फ हवा में किश्ती-सवार की बातें सुनती, चाँदनी पर लिखे उसके खत पढ़ती और उसे खत लिखती।

कभी लहरों को उन पर प्यार आता, तो वे उन दोनों को मिला देतीं, तब वे दोनों जल्दी से पानी पर घर बना लेते, फिर जल्दी ही लहरें उन्हें अलग कर देतीं। अमृता फिर अकेली हो जाती और किश्ती-सवार उस टापू पर पहुँच जाता, जहाँ उसका अपना मिट्टी का घर था, जो अमृता के बिना लोचवाली रेत के घर की तरह ताप से टूटा नहीं था। वह तो लोचदार मिट्टी से बना घर था, जो ताप पाकर और पक्का हो गया था।

पर अमृता उसके मिट्टी के घर में न जा सकती थीं और न ही जाना चाहती थी, इसके दो कारण थे - एक तो अमृता को किश्ती में पानी पर तैरते-तैरते यों ही भटकने की आदत हो गई थी, उसे यही अच्छा लगता था और दूसरे रेत के टूटते-बिखरते घर देखकर उसे मिट्टी के घर में भी जाने से डर लगता था, फिर किश्ती-सवार के मिट्टी के घर में अमृता के रहने की गुंजाइश भी तो नहीं थी। आपस में मिलना ही दोनों को इतनी पूर्णता से भर देता था कि इस बारे में उन्हें कुछ सोचने की जरूरत ही न थी। इसीलिए दोनों ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं।

जब दोनों के मिलने से पानी पर घर बनता, तो अमृता इसी घर में सुख के कुछ पल पा लेती। जब लहरें उसे दूर ले जाकर पटक देतीं, तो अमृता घर बनाकर जीये हुए इन्हीं पलों को बार-बार जीती और आगे इन्हीं पलों के दुहराने की प्रतीक्षा मे रत रहती। इन्हीं दो-चार पलों के लिए अमृता सारे पल जिया करती और इंतजार के खामोश पल पिया करती।

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