मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


एक पड़ोसी ने सूरज से बच्चा गोद लेने की बात छेड़ी तो उसने पान चबाते हुए कहा था, ''अभी तो हम दोनों कमाते हैं। पोस्ट ऑफ़िस के खाते में काफी कुछ जोड़ कर रखा है। एक बीमार भी हो गया तो दूसरे की कमाई से काम चल जाएगा। चिड़िया के बच्चे उसके पास हमेशा कहाँ रहते हैं? बच्चा गोद लेकर क्या होगा? दूसरी शादी मैं क्यों करूँ? ऐसी बीवी मुझे सात जनम न मिलेगी...

एक दिन एक तांत्रिक आया। उसके काले चोंगे की आस्तीन का कपड़ा हाथ के ऊपर उठाते ही लहराने लगता और उसकी मुट्ठी में कभी चॉकलेट तो कभी काजू प्रकट हो जाता। इस हाथ की सफ़ाई का जादू हमारे मकान की औरतों पर चल गया। मुरादों की गठरी तांत्रिक के सामने खोली जाने लगी। नहान चूड़ी बेच कर लौटी थी। एक पड़ोसन ने तांत्रिक से कह दिया, ''इसका कोई जतन कर दो महाराज! इसकी कोख हरियाती नहीं। जे बांझ है। बांझ शब्द सुनते ही नहान बिफर पड़ी और पड़ोसन को एक झापड़ लगा दिया। ''जो मुझे फिर बांझ कहा तो तेरी ज़बान कतर दूँगी। मैं जनम से बांझ नहीं हूँ।'' पड़ोसनों को साँप सूँघ गया। वे अब तक नहान को बांझ समझ रही थीं। बांझ न होने की बात जानकर किसम-किसम के संदेह और अनुमान का सिलसिला चल निकला। बहरहाल, निष्कर्ष यह निकला कि खोट सूरज में है, वरना नहान के गर्भ क्यों नहीं ठहरता?

पड़ोस में सब नहान की पीठ पीछे उसके बारे में सूचना देने को उत्सुक रहते थे। बस नंदू ड्राइवर नहान का नाम लेते ही मुँह सी लिया करता। नंदू क्रेन चलाता था। हाइवे पर कोई ट्रक, कार पलटती तो नंदू क्रेन ले जाकर उसे खींचता और गैराज तक पहुँचा देता। उसके काम का कोई समय बँधा न था। अकेला रहता था। उसका कोई परिवार नहीं था। नंदू रात में दारू चढ़ा, खाना खाकर कमरे पर लौटता था। उसका कमरा मेरे बगल में था। अगर मैं जाग रहा होता तो वह दुआ सलाम करता, वरना सो जाता। नंदू कपड़े धोने का काम शाम के तीन चार बजे करता। तब नल खाली रहता। नहान उसी समय फेरी लगाकर लौटती थी। टकराव का कोई अवसर न होता फिर भी वह नंदू से उलझती। कभी अलगनी पर लटके गीले कपड़े बदन से सट जाने की शिकायत करती, कभी रास्ते पर पानी छलकाने के लिए कोसती। लगे हाथ नंदू को दो चार गालियाँ सुना देती। नंदू यों तो गबरू था पर वह नहान की गालियाँ चुपचाप सुन लेता। कभी सिर उठाकर दीनहीन याचक वाली मुद्रा में देख लेता। इस पर नहान और बमकती फिर पैर पटकती अपने कमरे में चली जाती। उसके बाद नंदू जैसे ही नल से हिलता, नहान बाथरूम में घुस जाती मानो वह नंदू की छाया से अपवित्र हो गई हो।
अजीब यह कि नंदू कोई सोलह साल से नहान की गालियाँ बर्दाश्त कर रहा था। नंदू की क्रेन मेरे ऑफ़िस के पास ही खड़ी रहती थी। उसके मालिक का ऑफ़िस भी वहीं था। इसलिए मैं धीरे-धीरे जान गया था कि नंदू सहनशील नहीं है। ट्रक, क्रेन जैसे सड़कछाप धंधे में दयनीय बने रहने से काम नहीं चलता। फिर वह इतने सालों से नहान को क्यों झेल रहा है? वह चाहता तो किसी और मकान में कमरा ले लेता।

तांत्रिक के आगमन से स्थिति विस्फोटक हो उठी थी। मेरे तीनों पड़ोसियों ने मिल कर नहान को पीट दिया। रोती कलपती नहान सूरज के ढाबे पर पहुँची। उस दिन मनहूस सूरज ताव खा गया। वह हाथों में लंबा करछुल लिए रिक्शे पर नहान के साथ आया। सूरज और पड़ोसियों में घमासान हो गया। दो पड़ोसियों के सर फूटे। एक का हाथ टूटा। इस घटना के बाद सूरज तो भाग गया पर नहान अपने कमरे में ही थी। आखिर पुलिस आई और नहान को गिरफ्तार करके ले गई। नहान पर हिंसा का नहीं, हाँ एक पड़ोसन को झापड़ मारने का इलज़ाम था।

मैं रात कमरे पर पहुँचा तो उस घटना के बारे में मुझे पता चला। तभी मैंने देखा कि नहान रिक्शे से उतर रही है। नंदू उसे उतरने में सहारा दे रहा था। नहान अपने कमरे में चली गई। नंदू अपने कमरे में। घंटे भर बाद मैंने देखा कि नंदू के कमरे की बत्ती अभी भी जल रही है तो मैंने उसका दरवाज़ा खटखटाया। इस बीच मुझे कुछ और जानकारी मिल गई थी। नंदू नशे में था फिर भी मैंने पूछ लिया, ''तुमने नहान की जमानत क्यों दी?''

नंदू रहस्यमय तरीके से हँस पड़ा, ''सूरज के बाद मेरे अलावा उसका है ही कौन? बाबू तुम्हें हैरत हो रही है न? रोज़ गरियाने और दुतकारने वाली औरत की ज़मानत मैंने क्यों दी? मैं तो उस पर जान भी दे दूँ। बड़ी ज़िद्दी औरत है। बच्चा न होगा, फिर भी रहेगी सूरज के ही साथ। उसकी ज़िद तो मेरी भी ज़िद।... मैं सूरज और माला के साथ नशा पानी किया करता। एक रात नशे का फ़ायदा उठा कर मैं माला के साथ गलत काम कर बैठा। गर्भ भी रहा। मैंने सोचा अब इसकी जिंदगी बन जाएगी। पर उस ज़िद्दी ने गर्भाघात कर लिया। बस यही ज़िद - ''ये कोख तो सांवरे की है। मैंने हैरत भरे स्वर में उससे पूछा, ''नहान उस मनहूस सूरज को इतना प्यार क्यों करती है?''
नंदू लडखड़ाती आवाज़ और बिखरे शब्दों में लगा, ''प्यार नहीं, एहसान। बाबू, वह एहसान चुका रही है। माला का बाप नहान को एक बूढ़े के साथ बाँध रहा था। तब यही सूरज रोती कलपती माला को छिपाकर यहाँ ले आया था। इसी एहसान को पगली प्यार समझती है और साथ रहने को शादी।
''क्या? इनकी शादी नहीं हुई?''
नंदू मुझ पर ही तंज करने लगा, ''तुम भी बौड़म हो बाबू! दोनों जात एक होती तभी तो शादी होती इसलिए मैं उससे कहता हूँ - सूरज को छोड़। मेरे साथ सगाई कर ले। हमारी तो जात भी एक है।''
नंदू मुझे और रहस्यमय लगने लगा था। नहान - नंदू और सूरज के संबंधों में रहस्य की इतनी परते होंगी, यह मैंने सोचा नहीं था। इतनी मामूली ज़िन्दगी और इतनी गहराई। अब तक मैं इन लोगों से खुद को श्रेष्ठ समझता था। अब मुझे खुद पर शर्म आ रही थी।
मैं बामुश्किल बोल सका, ''बहुत ऊँची औरत है, मगर इतना नहाती क्यों है?''
मेरे सवाल पर नंदू ज़ोर से हँसा, ''मेरे छुने से वह जूठी हो गई सो नहाती रहती है। मैं उसका रास्ता भी लांघ दूँ तो नहाने पर ही उसे चैन आएगा।''
''लेकिन थोड़ी देर पहले तो तुमने उसको सहारा देकर रिक्शे से नीचे उतारा था। क्या वह अभी नहाएगी?''
नंदू हँसने लगा। उसे हँसता छोड़ मैं कमरे से बाहर निकला तो देखा कि नहान बाथरूम से नहाकर निकल रही थी। नहान का रहस्य मेरी समझ में आ गया था।
लेकिन नहान के लिए नंदू का इंतज़ार मुझे और रहस्यमय लगने लगा।

पृष्ठ : १. . .

१९ मई २००८

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।