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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी— मोड़


मुकदमा दो साल तक चला।
आखिर पति-पत्नी में तलाक हो गया।
तलाक के पसःमंजर बहुत मामूली बातें थीं। इन मामूली बातों को बड़ी घटना में रिश्तेदारों ने बदला। हुआ यों कि पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए। पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका। सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।

मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहीन समझा। रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया। न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता। इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है। कुछेक रिश्तेदारों ने यह भी पश्चाताप जाहिर किया कि ऐसी औरतों का भ्रूण ही समाप्त कर देना चाहिए।

बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं। सो, दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का वॉलीबॉल खेल रहे हैं। चुनांचे, लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।

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