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मज़ेदार बात यह कि दोनों ने एक ही कॉलेज से बी.एड. किया, बस भावना जी एक साल पहले कर चुकी थीं, उस कॉलेज को खुलने का पहला साल, तब वह पूरी तरह व्यवस्थित नहीं था। हम अगले साल वहीं दाखिल हुए।

वार्डन -लेक्चरर प्रीफ़ेक्ट सबकी बातें। मिट्ठू,जो ऊपर के काम कर देता था- दोनों होस्टलों में उसकी पूँछ थी।
'मिट्ठू ?'
'हाँ -हाँ, था तो। पर ब्वाएज़ हॉस्टल में ज़्यादा रहता था। हमारे यहाँ तो कभी वार्डन के पास या किसी काम से नोटिस वगैरा ले कर आता था। '
'आपके सामने ब्वायजट हॉस्टल कहाँ था?'
'उधर चौबीस खंभा रोड पर जो धरमशालावाली बिल्डिंग है वही किराए पर चल रही थी, सुनने में आ रहा था कि अगले साल होस्टल शिफ्ट हो जाएगा।''
'हूँ।'
'ये मिट्ठू दोनों होस्टलों में काम करता था न,और एक मज़ेदार बात, हम मिट्ठू के लिए टियू-टियू शब्द स्तेमाल करते थे और खूब हँसते थे, पर उसके सामने नहीं।'
'हाँ, वो तो शुरू से ही दोनों होस्टलों के काम देखता था, पास में हैं न, हमारे वार्डन ने भी कह रखा ता,झाड़ू वगैरा लगा
कर उधर चले जाया करो। उन दिनों खाना तो इकट्ठा वहीं बनता था।'

'और वह सामने की दूधवाली दूध में वात्सल्य रसकी मात्रा बहुत कर देती थी।'
'हम लोगों ने तो अपना अलग इंतज़ाम कर लिया था।'
रूम मेट कैसे हमारा घी चाट कर स्वास्थ्य बनाती थी...
और फिर मिट्ठू !
'वही तो ...'
'क्या वही तो ?'
'कुछ नहीं यों ही।'
'सब टेम्परेरी इंतज़ाम थे तब, कोई ऐसा कमरा भी नहीं जहाँ यूनियन की मीटिंग कर लें।'
'वो तो हमारे सामने तक था। कैबिनेट की मीटिंग किसी के रूम में कर लेते थे और जनरल के लिए हॉल, बस।'
'अब तो बढ़िया होस्टल बन गया है। आप नहीं गईं कभी फिर ?'
'नहीं जा नहीं पाए। मन तो करता था पर बात कुछ ऐसी हो गई थी कि जाने की हिम्मत नहीं पड़ी।'
'ऐसा क्या हो गया ?''
वे चुप हैं
'आप मुस्करा रही हैं।'
'हाँ, एक बात मन में है। अब तक किसी से कहते नहीं बनी। पर अब उम्र के चौथे पहर में इच्छा होती है कि सब-कुछ। कह-सुन कर हल्की हो लूँ। '
'हम दोनों तो बराबरी की हैं एक दूसरे को समझने में मुश्किल नहीं होगी।'
'हाँ, हाँ, इसीलिए तो। आप भी तो वहीं पढ़ चुकी है ?'


थोड़ी भूमिका बाँधने के बाद बताने लगीं -
छात्र चुनाव में एक काफ़ी बड़ा-सा गंभीर सा लगनेवाला लड़का सेक्रेटरा बना। काफ़ी रिसोर्सफुल था।
उसने अपनी कैबिनेट में हमें भी ले लिया। कई क्षेत्रों में सक्रिय रहे थे न हम।
मैंने अपने होस्टल की दो लड़कियों और एक लड़के को, जिसे मेरी रूम-मेट जानती थीं बोलीं बहुत साहित्यिक रुचि का संस्कारी लड़का है - ले लिया।
'मैं चाहती थी मीटिंग्ज़ में अनुराग जाए, मुझे न जाना पड़े।'
'क्यों, जब इन्चार्ज आप थीं।'
'हाँ, थी, पर ...असल में जो सेक्रेटरी था वह मिट्ठू के हाथ मुझे पर्चियाँ भेजा करता था, अकेले में मुझे देने के लिए।'
'फिर?'
उत्तर वह माँगता था। मैंने कभी दिया नहीं।
'हाँ तो वो लड़का क्या नाम था उसका ?
'अब असली नाम बता कर क्या होगा समझ लो- आलोक।'
'और पर्ची में संबोधन क्या ?'
'इस सबसे क्या। बात तो कुछ और है जो बतानी है ...'

'नहीं,यह तो बताना ही पड़ेगा नहीं तो इमेज कैसे बनेगी ?'
'संबोधन कुछ खास नहीं डियर फ़्रेंड, या माई चम और अपने को क्वेशचन मार्क या ऐसे ही कुछ।'
'क्या लिखता था?'
'छोटी-छोटी बातें -तुम ध्यान में रहती हो वगैरा।'
'और क्या लिखा होता था।'
'बस साधारण सी बातें -कि तुम मुझे अच्छी लगती हो। कभी कोई परेशानी हो तो बताना।'
'बस यही ?'
'हाँ, कभी-कभी यह भी कि क्लास के बाद ऑफ़िस की तरफ़ आ जाना, कुछ छात्रसंघ के बारे में सलाह करनी है।'
'तुम लिखता था?'
'अरे, अंग्रेज़ी मे -क्या आप और क्या तुम!'
'सही कहा, जो हिन्दी में कहना शोभनीय नहीं लगता अंग्रेजी मे अच्छी तरह चल जाता हैं, कभी वे तीन शब्द लिखे थे उसने?'
'अच्छा ! अब आप मज़ा ले रही हैं? नहीं, ऐसा कभी कुछ नहीं?'
'हाँ तो और क्या ?'
'
यही कि सुबह-सुबह तुम्हें देख लेता हूँ तो दिन अच्छा बीतता है।'
'सुबह-सुबह कैसे?'
'सब लोग इकट्ठे प्रेयर करते थे सात बजे लड़कों के होस्टल में -फिर नाश्ता और फिर क्लासेज़ शुरू।'
'नाश्ते में क्या?'
'ज़्यादातर पोहे, चाय कभी-कभी और कुछ भी, जलेबी वगैरा।'
'वाह उज्जैन के पोहे !पानी आ गया मुँह में !'
' देवास गेट पर हम हमेशा खाते हैं। ऊपर से सेव डाल कर देता है।'
और आप क्या- क्या जवाब देती थीं?
मिट्ठू हमेशा जवाब माँगता पर हम क्या लिखें और क्यों लिखे?
कह देती मैं खुद बात कर लूँगी, और उसके जाते ही पर्ची फाड़ कर फेंक देती।'
'आप जाती थीं?'

हाँ, जिन दो को साथिनों को मैनें अपनी समिति में लिया था उन्हे भी बुला लेती,कि अच्छी सलाह हो जाए, एक तो साथ में होती ही थी। उसने एकाध बार कहा भी क्या मुझसे डरती हैं,कुछ बातें सबसे कहने की नहीं होती और ये लड़कियाँ ऐसी हैं ख़ुद मुझे रोक लेती हैं और सबसे कहती फिरती हैं कि मैं उन्हें बुलाता हूँ। मैंने आपके सिवा किसी को नहीं बुलाया।'

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